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गरीबों पर कब तक राजनीति होते रहेगी?

गरीब शब्द सुनते ही हमे एक ही चीज़ समझ आती है कि जिसके पास कुछ भी नहीं है, उसे गरीबी कहते हैं। गरीबी यानि संसाधनों की कमी! और ये कमी  पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ती जाती है।

खाने की कमी, कपड़ो की कमी, रहने की सुविधा का अभाव, शिक्षा की कमी, रोज़गार की कमी। साथ ही किसी भी सरकार द्वारा उचित मदद ना मिलना। वो खुशी, वो बड़े साहब लोगो की तरह आराम ना मिलना।

क्या कहता है संयुक्त राष्ट्र का अनुमान?

वहीं संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2019 में देश में गरीबों की संख्या 36.4 करोड़ यानी आबादी का 28 फीसदी है।  28 फीसदी भी कम लगती है क्या?

नहीं! ये तो एक अनुमानित सर्वे है असल में ना जाने ये फीसदी कितने भाग में आए। गरीबों के घाव जाते ही नहीं, ऊपर से कोरोना जैसी महामारी ने दुखो का पहाड़ सा टूट पड़ा है।

वे कुछ लोग जो ठेला लगा कर समोसे, चाउमिन, लिटी चोखा, पुचका (गुपचुप) ना जाने कितने प्रकार के खाने की चीज़ें। जिन्हें खाने के लिए हम जब-तब उनके ठेले खोमचों पर जाकर खड़े नज़र आते हैं मगर आज उन्ही के पास खुद अपने पेट भरने के लिए ना तो खाना है ना ही पैसा।

गरीबी, चुनावों का प्रिय सिलेब्स क्यों?

गरीबी देश की एक पुरानी किताब की तरह है, जिसमें धूल जम गई है और पढ़ने वाला कोई नहीं, जैसे हमारी परीक्षा होने पर ही किताब निकलती है, वैसे ही चुनाव आते ही ये गरीबों की किताब खुल जाती।

नेता तरह-तरह के वादों वादों से इन गरीबों को लुभाकर चले जाते हैं और जीत के जश्न के बाद इनकी सुध भी नहीं लेते हैं लेकिन  मैं राजनीति पर ज़्यादा चर्चा नहीं करूंगा, क्योंकि ये सिर्फ राजनेताओं का ही दोष नहीं है, बल्कि पूरे देश की आम जनता का दोष भी है।

गरीबों से पक्की सड़कों की कच्ची बयानबाज़ी

जिसे अगर ऐसे समझें  कि पहले राजनेताओं की प्रशंसा करते है, जैसे की हम सभी भारतीय नागरिक चुनाव के वक्त तरह तरह के राजनीतिक दलों के नेताओ एवं उनके डब्लू-बबलू यानी की कार्यकर्ताओं के चुनावी वादे सुनते हैं, बेचारे गरीबों को मक्खन लगाते हैं और कहते हैं, आपको रोज़गार मिलेगा, आपको पक्की सड़कें मिलेंगी, आपके बच्चों का भविष्य बदलेंगे, रोज़गार लाएंगे।

साथ ही तरह-तरह कि योजनाएं लाएंगे। हर घर में चूल्हा जलेगा, घर-घर सीधे पानी पहुंचेगा।  विस्थापितों को उनका हक मिलेगा, ना जाने कितने वादे।  गुब्बारे भी फुल के फट जाएं, तो आम गरीबों को तो फूलना ही है।

बस इसी तरह वोट लेकर अपने एसी कमरों में सो जाते हैं और जब आप इन्ही लोगो से मदद लेने जाते हैं, तब घर के बाहर से आपको उल्टे पैर लौटा दिया जाता है।

गरीबों के विकास के लिए गरीबों की ज़मीन लेकर उन्हें नौकरी दिलाने के वादे पर उनसे ज़मीन लेकर नौकरी तो दूर की बात, उचित सुविधा भी उपलब्ध कराना उचित नहीं समझते। भले ही पार्टियों द्वारा मदद दी भी गई हो मगर जीवन भर तक मदद नहीं चलती, अगर वो ज़मीन रहती तो कम से कम जीवित रहने के लिए खाने का तो बंदोबस्त हो सकता था

कर्ज़ और विस्थापन झेलते गरीबों की कोई सुनवाई नहीं

लेकिन बात ज़मीन और खाने की नहीं है बल्कि बात उन गरीब परिवारों की है, जिन्हें धोका देकर अपनी पॉकेट भर रहे हो। गरीब वर्ग पहले से गरीब है और किसान जो खेती करते हैं उनपर भी अत्याचार! फसल के  सही दाम ना मिलना। आखिरकार ये गरीब जाएं तो किधर जाएं?

अगर कुछ मदद मिल भी जाती है तो उसमे भी जो नेता उस ज़िले का होगा उनके इर्द गिर्द घुमाएगा तभी कुछ हो सकता है वरना डब्लू बबलू के आगे-पीछे मंडराने से गरीब के पॉकेट से बचा-कुचा भी निकल जाएगा  और उनके पॉकेट भरते जाएंगे।  आप गरीब से और गरीब होते जाएंगे।

बात इतनी सी है की जनता ने आपको खड़ा किया है, तब आपका भी फर्ज़ है कि हमारी मदद करने का, ना की बातो को अनसुना करने और फिर चुनाव आते ही गरीबों को खयाली पुलाओ दिखाने का।

गरीबों के लिए शिक्षा महज़ एक प्रचारवाद

बात अब छोटे संगठनों एवं समाज सेवको की करें, तब वे अपने हिसाब से कुछ अपने अनुसार मदद करते हैं लेकिन बड़ा चेहरा ना होने के कारण उतनी मदद नही कर पाते हैं। कुछ एक जगहों पर एनजीओ मिल जाएंगे लेकिन वे भी अपने हिसाब से मदद करते हैं मगर इतने से गरीबी नहीं हट सकती।

कुछ गांवों में अभी तक भी बिजली नही पहुंची है औरअगर पहुंच भी गई हो तो आते-जाते रहती है, जैसे लुका छुपी खेल रही हो। वहीं रास्ते बन तो जाते हैं, फोटो खिंचवाकर  पेपर में छप तो जाती है मगर कुछ महीनो में रोड गड्ढों में बदल जाता है।

शिक्षा जो हर बच्चो के लिए बहुत ज़रूरी है।गांवों को आंगनबाड़ी शिक्षा केंद्र मिल भी गए लेकिन पढ़ाने वाला कोई नहीं। योजनाएं और घोषणाएं ही दी जाती हैं, कोई उचित सुविधा नहीं दी जाती इन जगहों पर, फिर बड़े-बड़े लोग आकर कहंगे हमने ये दिया, वो दिया। 

 

गरीबी राजनीति का सबसे बड़ा हथियार

योजनाएं दीं लेकिन कभी इन चीज़ों का सही इस्तेमाल, सही सुविधाएं मिल रहीं हैं या कि नहीं इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है।  सिर्फ इमारत खड़ी कर देने से देश का विकास हो जाता तब हमारा देश गरीबों का देश नहीं होता। हम अपने देश को गरीब नहीं कह रहे बल्कि हम उन लोगों की बात कर रहे हैं, जिन्हे मूलभूत सुविधाएं नही मिल रही आखिर उनका क्या दोष है?

मेरा मानना है भारत में गरीबी को प्रभावी समाधानों के साथ कम किया जा सकता है लेकिन सभी नागरिकों के व्यक्तिगत प्रयासों की आवश्यकता है। अगर हम सभी गरीबों के लिए कुछ करें,तब काफी कुछ हो सकता है, एक आम जनता की ताकत ही सबसे बड़ी ताकत होती है।

सिस्टम ने सिस्टम को नही बिगाड़ा बल्कि हमने खुद सिस्टम को बिगाड़ दिया है। नेता, जनता से चुन कर आते  हैं, तभी एसी और हवाई जहाज़ के मजे ले रहे हैं जबकि उन्हें   जनता की सेवा करनी चाहिए ना की राजनीति की रोटियां सैंकनी चाहिए।

 

खबरों से पूरी तरह नदारद गरीबों की आवाज़

पहले न्यूज़ चैनलों में गरीबों के मुद्दे को दिखाया भी जाता मगर अब व्यक्ति विशेष दिखते हैं, आखिर गरीबों की आवाज़ जाए तो जाए कहां?  कोई बीमार है तो कोई लोन से परेशान। आखिरकार उनकी सुने कौन? उन्हें  तो बस आश्वासन दिए जाते है।

गरीबी के सबसे महत्वपूर्ण कारण अशिक्षा, भ्रष्टाचार, बढ़ती जनसंख्या, खराब कृषि, गरीबों और अमीरों के बीच अंतर आदि हैं। जिस दिन ये सब सुधर जाए हमारा देश एक खुशहाल देश होगा और एक शिक्षित एवं गरीब मुक्त देश होगा। मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि  सरकार द्वारा गरीबी को कम करने के लिए कई तरह के कदम उठाए गए हैं लेकिन कोई स्पष्ट परिणाम नहीं दिख रहे हैं।

गरीबी के मुख्य कारणों को समझना होगा

आगे हमे ये सोचना चाहिए की अगर हमें विकास चाहिए!  देश से गरीबी को मिटाना है, तब सभी भारतीय नागरिकों को आगे आना होगा और आवाज़ को बुलंद रख कर अपने हक के लिए लड़ना होगा।

वो  कितने ही बड़े पद पर ही क्यों ना हो, हम आम जनता, गरीब भले ही हों मगर दिल से गरीब नहीं होते। कहने को तो बहुत कुछ है पर मेरी कलम यही थक चुकी है इन गरीबों की तरह जो दिन रात मेहनत करते है मगर तब भी इनका जीवन में खुशी देने वाला कोई नहीं, मदद करने वाला कोई नहीं।

वो कहते है ना ऐ सियासत तूने भी इस दौर में कमाल कर दिया,गरीबों को गरीब अमीरों को माला-माल कर दिया। बस हमारे देश में यही चल रहा और हमे इसे बदलना होगा। उन गरीबों के चेहरों पर मुस्कान लानी होगी।

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