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कारगिल विजय दिवसः कारगिल योद्धाओं की अनसुनी कहानियां

 

कारगिल युद्ध में हुए कुछ अनछुए पहलू और उसकी यादें

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कारगिल के सैनिक और उनकी आपबीती

22 साल पहले दुनिया के सबसे अधिक उंचाई और विकट परिस्थितियों वाले क्षेत्रों में से एक कारगिल में लड़े गए भारत-पाक युद्ध में देवभूमि हिमाचल के वीरों अपनी शहादत का सर्वाेच्च बलिदान देकर भारत को एक एतिहासिक जीत दर्ज करवाई। लगभग तीन माह तक चले इस युद्ध का अंत 26 जुलाई को हुआ और इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। कारगिल युद्ध को हुए आज 22 साल हो चुके हैं। इस युद्ध की जीत में अहम योगदान देने वाले हिमाचल के वीर जाबांजों के यादों के झरोखों में अभी भी वो युद्ध का मंजर कैद है। जिसे याद करते कई बार ये जाबांज कभी गौरव महसूस करते हैं, तो कभी अपने साथियों के खोने की याद में इनकी आंखें नम हो जाती हैं।

 

कारगिल युद्ध में शहादत देने वाले सबसे बड़े रैंक के अफसर कर्नल विश्वनाथ सिंह के साथ लड़ाई में साथ देने वाले ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर अपनी बटालियन के वीर शहिदों को याद करने के लिए हर साल कारगिल जाते हैं और वहां बने कारगिल वाॅर मैमोरियल में उन्हें श्रद्धाजंलि अर्पित करते हैं। कारगिल विजय दिवस के मौके पर ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर बताते हैं कि कारगिल में उनकी बटालियन 18 ग्रेनेडियर को सबसे प्रमुख दो चोटियों तोलोलिंग और टाइगर हिल को पुनः कब्जे में लेना की अहम जिम्मेवारी सौंपी गई। कर्नल विश्वनाथन सिंह और मैं अपनी सेना को लेकर आगे बढ़ने लगे। लेकिन दुश्मनों के उंचाई पर होने और पूरे क्षेत्र में उनकी पैनी नजर के चलते उन्होंने हमें देख लिया और हैवी फायरिंग के कारण कर्नल विश्वनाथन सिंह को गोली लगी। घायल कर्नल विश्वनाथन सिंह मेरी गोद में थे, हमने उन्हें फर्स्ट ऐड दिया, उनका दर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा था। मैंने कहा इन्हें नीचे बेस कैंप पर लेकर जाना होगा। इस पर कर्नल झट से बोले, इससे हमारी बटालियन कमज़ोर हो जाएगी। मुझे कहीं नहीं जाना है। बस अब थोड़ा सा रह गया है, सर इन्हें नहीं छोड़ना हैं। हमें अपनी जमीन नहीं छोड़नी है। ऐसा कहते ही उनका शरीर ठंडा पड़ गया और वे शहीद हो गए। अपने साहब को खोने के बाद जवानों में और जोश भर गया और इसके बाद हमारे जाबांज सैनिकों ने हमें सौंपे हुए काम को पूरा किया और तोलोलिंग और टाइगर हिल पर फतेह हासिल कर इस युद्ध में भारत की जीत का मार्ग प्रशस्त किया।


कारगिल वार में जीत की अहम भूमिका निभाने वाले ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर 2010 में रिटायर हो गए। उन्हें राष्ट्रपति की ओर से युद्ध सेवा मेडल से भी नवाजा गया है। ठाकुर कहते हैं कि सरकार की ओर से 26 जुलाई को युद्ध में पूरी तरह जीत हासिल करने की घोषणा तो की गई थी, लेकिन इस खुशी से ज्यादा हमें अपने साथियों को खोने का गम था। वे बड़े ही दुख के साथ बताते हैं कि 18 ग्रेनेडियर ने इस युद्ध में 34 बहादुर सैनिक खोए, जिनमें से 25 जवान द्रास सेक्टर के तोलोलिंग पहाड़ी को फतह करते समय 9 सैनिक टाइगर हिल में खोए। खुशहाल ठाकुर को मलाल है कि वे अपने साथ 900 जवानों को लेकर गए थे लेकिन उन सबको वापस नहीं ला पाए, इसका उन्हें खेद है। वे विभिन्न मंचों में लोगों को कारगिल वार में भारत के वीर सैनिकों की वीर गांथाएं सुनाते हैं, ताकि उनमें भी भारतीय सेना के प्रति सम्मान बढ़े और युवा सेना में शामिल होने के लिए प्ररित हों।

कारगिल युद्ध में भारत के 527 वीर सैनिकों ने शहादत दी थी जिनमें से 53 हिमाचल की भूमि में से थे। छोटा सा पहाड़ी राज्य हिमाचल सेना में वीर सैनिक देने के मामले में अव्वल राज्यों में से एक है।

 

ऐसे में हिमाचल के सोलन जिले के हरपाल शर्मा जिन्हें अभी सेना में शामिल हुए एक साल भी पूरा नहीं हुआ था, कि उन्हें भी अपनी सेना की टुकड़ी के साथ युद्ध में जाना पड़ा। हरपाल शर्मा आज भी अपने सेना के साहस और मनोबल को याद करते हुए अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हैं कि उन्होंने ऐसे युद्ध में अपने देश की सेवा की जहां परिस्थितियां बिल्कुल उनके पक्ष में नहीं थी। हरपाल शर्मा बताते हैं कि दुश्मनों ने पहाड़ों की चोटियों में स्थित पोस्टों में कब्जा कर लिया था। इसलिए ऊपर चढऩे के लिए उन्हें रात के समय ही चढ़ाई शुरू करनी पड़ती थी। उन्होंने बताया कि वे शाम 7 बजे के करीब चलना शुरू करते थे और सुबह पांच बजे के करीब अपने आप को किसी पत्थर या बड़ी चट्टान के पीछे छुपा लेते थे। इसके बाद अगली रात को फिर से चढ़ाई शुरू कर देते। उन्होंने बताया कि रात के समय पूरी घाटी में माहौल लड़ाई वाला होता था जबकि सूरज निकलते ही सब शांत हो जाता था।
हरपाल बताते हैं कि लड़ाई के दौरान उनका खाने का सामान लगभग खत्म हो गया था और इस दौरान उन्होंने और उनके साथियों ने कई-कई दिन दो-दो चम्मच मैगी और ड्राई फ्रूट्स खाकर गुजारा किया। उन्होंने बताया कि 17 दिन बाद वे अपनी टुकडी के साथियों के साथ खाना लाने के लिए दो किलोमीटर नीचे आए और इस सफर को तय करने के लिए उन्हें 5 घंटे लगे। नीचे आने पर उन्होंने कैंप में बचे हुए चावल और सूखी रोटियां खाई। वे उस मंजर को याद करते हुए कहते हैं कि मैं वो आधे जले हुए चावलों को कभी भुला नहीं सकता, क्योंकि वो हमें दो सप्ताह के बाद खाने को मिले थे। इसके बाद वापस अपनी पोस्ट पर राशन लेकर चले गए इसके बाद उनके साथियों ने पेट भरकर खाना खाया।

भारतीय सेना में हर दसवां सैनिक हिमाचली

देश की सेवा के लिए मिले सम्मान जब देश पर मर मिटने की बात आती है तो इसमें हिमाचल का कोई सानी नहीं। भारतीय सेना को हिमाचल ने एक से बढ़कर एक शूरवीर दिए हैं। भारतीय सेना में हर दसवां सैनिक हिमाचली होता है। कारगिल युद्ध में चाहे वह शहीद कैप्टन विक्रम बतरा और सौरभ कालिया हो या पहला परमवीर चक्र हासिल करने वाले मेजर सोमनाथ शर्मा। हिमाचल के सपूतों को कुल 998 वीरता चक्र मिल चुके हैं। अभी तक चार सर्वाेच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र, 2 अशोक चक्र, 10 महावीर चक्र, 21 कीर्ति चक्र, 55 वीर चक्र, 92 शौर्य चक्र, 453 सेना, वायुसेना और नौसेना मैडल, 164 बहादुरी पुरस्कार और अन्य 197 मेडल मिल चुके हैं। इसके अलावा आजादी से पहले भी हिमाचल के वीर जवानों को दो विक्टोरिया क्रास और जाॅर्ज क्रास सम्मान प्राप्त हो चुका है। इन्होंने बढ़ाया है वीरभूमि हिमाचल का नाम देश के पहला परमवीर चक्र मेजर सोमनाथ शर्मा को मिला था, जबकि इसके बाद कारगिल वार में कैप्टन विक्रम बतरा और राइफल मैन संजय कुमार को भी यह सम्मान मिल चुका है। इसके अलावा भंडारीराम और लाला राम को विक्टोरिया क्रास और नायक किरपा राम को जाॅज क्रास सम्मान मिल चुका है। कारगिल युद्ध में हिमाचल के 52 जवानों ने देश के लिए सर्वाेच्च बलिदान दिया है जिसके लिए देश उनका हमेशा ऋणी रहेगा। इतना ही नहीं हर साल देश की सेना को अफसर देने में भी हिमाचल प्रदेश प्रथम पांच राज्यों में से एक है। भारतीय सेनाओं में अपनी भारी मौजूदगी के बावजूद अभी भी हिमाचल प्रदेश भारतीय सेना में हिमाचल की अलग से बटालियन नहीं बन पाई है। इस बात का मलाल हिमाचल के सैनिकों को आज भी है।

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