195 वर्ष पहले 30 मई 1826 को शुरू हुई हिंदी पत्रकारिता की स्वर्णिम यात्रा निंरतर जारी है। दो सदियों से चली आ रही, इस लंबी यात्रा के दौरान हिंदी पत्रकारिता ने कई ऐसे उतार-चढ़ाव देखे, एक दौर ऐसा भी आया जब पत्रकारिता में इलेक्ट्रोनिक मीडिया और अंग्रेज़ी भाषा का बोलबाला बढ़ा।
ऐसे समय में माना जाने लगा कि अब हिंदी पत्रकारिता का अंत नज़दीक आ गया है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और हिंदी पत्रकारिता के पहिए भले ही थोड़े से समय के लिए डगमगाए ज़रूर, लेकिन ये थमे नहीं और अभी भी निंरतर घूम रहे हैं।
हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत
हमारे देश में हिंदी पत्रकारिता का इतिहास 30 मई 1826 को कोलकाता में पंडित जुगल किशोर शुक्ल द्वारा शुरू किए गए पहले हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र उदन्त मार्तड की शुरूआत के साथ मानी जाती है। हिंदी पत्रकारिता की राह शुरू से ही बहुत संघर्षाें से भरी रही है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जुगल किशोर शुक्ल की ओर से की गई नई पहल को ना ही, तो तात्कालिन अंग्रेज़ी सरकार की ओर से सहयोग मिला और पाठकों की कमी के चलते उन्हें इसे डेढ साल बाद दिसंबर 1827 को बंद करना पड़ा।
इसके बाद महान समाज सुधारक राजा राम मोहन राय ने हिंदी पत्रकारिता को नई पहचान दिलवाई और इसे सामाजिक उदेश्य से जोड़कर आम जनमानस के बीच पहुंचाया। उन्होंने पत्रकारिता के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियों के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाई।
जुगल किशोर और राजा राममोहन राय की ओर से सामाजिक सरोकार और निष्पक्ष पत्रकारिता का यह मिशन समय के साथ अपना मूल स्वरूप खोता जा रहा है। जो कि एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है। आज के दौर में स्पष्ट पता लगाया जा सकता है कि कौन सा मीडिया कौन से राजनीतिक दल या राजनीतिक विचारधारा के प्रति झुकाव रखता है।
वर्तमान में पत्रकारिता का स्वरूप एवं उसका महत्व बदल गया है
अब सूचना देने वाले विभिन्न माध्यमों में सामाजिक सरोकार की खबरें लगातार कम होती जा रही हैं और इनके स्थान पर या तो सरकारों का गुणगान हो रहा होता है या फिर ज़्यादातर हिस्सा खबरों की जगह विज्ञापनों से पटा हुआ होता है।
रही बात खबरों की, तो आज के दौर में केवल सनसनी भरी खबरों को परोसने की होड़ सी चली है। एक समय था, जब किसी भी समाचार पत्र में संपादकीय उस पत्र की पहचान और जान होती थी, लेकिन जब से पत्रकारिता की बागडोर बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों के मालिकों के हाथों में गई है, तब से पत्रकारिता धीरे-धीरे सामाजिक सरोकार से दूर होते हुए एक व्यवसाय बनने की ओर अग्रसर है और आज के दौर में संपादकीय की ओर इतना ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जितना हमें देने की ज़रूरत समझी जा रही है।
हिंदी माध्यम से जुड़े समाचारपत्रों और डिजिटल माध्यमों में अब हिंग्लिश का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है। जिसे शायद वर्तमान आधुनिक दौर में अपने आप को बचाए रखने और पाठकों को अपने साथ जोड़े रखने के संघर्ष के साथ देखा जा रहा है, लेकिन यह बात सत्य है कि यह हिंदी पत्रकारिता के धीरे-धीरे गिरते स्तरे को भी दर्शा रहा है।
भारत में पत्रकारिता का इतिहास और उसके सिद्धांत
भारत में पत्रकारिता का इतिहास 240 वर्ष पुराना है और इस समय के साथ ना सिर्फ पत्रकारिता का स्वरूप प्रिंट से इलेक्ट्रोनिक और अब डिजिटल माध्यम के रूप में बदलता जा रहा है। इसके साथ ही मीडिया संस्थानों के मालिकों और पत्रकारों में भी समय के साथ बदलाव आते गए। जहां पहले पत्रकार और मालिक सामाजिक सरोकार से जुड़े हुए होते थे, वहीं अब वे अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने और अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने के लिए उनकी खुशामद करने में लंबे-लंबे प्रोग्राम और लेख लिखने से नहीं चूकते हैं।
आज के दौर पर देखा जा रहा है कि पत्रकारिता को निजी हितों की पूर्ति का साधन बनाया गया है। ऐसे समय में अब सिर्फ पत्रकारिता का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। गौर रहे कि पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है और निष्पक्ष पत्रकारिता ही लोकतंत्र की मज़बूती होती है।
पत्रकारिता जन-जन तक सूचनात्मक, शिक्षात्मक एवं मनोरंजनात्मक संदेश पहुंचाने की कला एवं विधा है। समाचार पत्र या सूचनाओं के अन्य माध्यम हमारे सामने एक ऐसी उत्तर पुस्तिका के सम्मान होते हैं, जिनके लाखों परीक्षक एवं अनगिनत समीक्षक होते हैं।
आजकल की पत्रकारिता में पत्रकारिता के सिद्धांतों का नितांत अभाव है
तथ्यपरकता, यथार्थवादिता, स्पष्टता, सटीकता, संतुलन एवं वस्तुनिष्ठता इसके आधारभूत तत्व हैं। लेकिन, सबसे पहले सूचनाएं पहुंचाने की आपाधापी और होड़ में निरंतर इन तत्वों की कमी देखी जा रही है, जो आज पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुत बड़ी त्रासदी साबित होने लगी है।
पत्रकार चाहे हिंदी पत्रकारिता से जुड़ा हो या अंग्रेज़ी से, वह प्रशिक्षित हो या गैर-प्रशिक्षित सबको पता है कि पत्रकारिता में तथ्यपरकता होनी चाहिए। परंतु, तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर, बढ़ा-चढ़ा कर या घटाकर सनसनी बनाने की प्रवृति आज प्रत्रकारिता में बढ़ने लगी है। ऐसे समय में सबसे पहले और तथ्यों के साथ खिलवाड़ की प्रवृति को त्यागकर सबसे सटीक और विश्वसनीयता की ओर पत्रकारों और समाचार संप्रेषन से जुडे़ संस्थानों को इस दिशा में सोचने की ज़रूरत है।
पत्रकारिता की लोकतंत्र में महत्ता और ताकत
अपनी पत्रकारिता के दम पर दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के राष्ट्र प्रमुख को पद से हटाने वाले पुलित्जर की ओर से पत्रकारों को लेकर दी गई परिभाषा को आज दौर में आत्मसात करने की भारी ज़रूरत देखी जा रही है। पुलित्जर ने कहा था कि पत्रकार राज्यरूपी जहाज पर खड़ा एक पहरेदार है, जो समुद्र में दूर-दूर तक हर संभावित छोटे-बड़े खतरे पर नज़र रखता है।
वह लहरों में बह रहे उन डूबतों पर भी नज़र रखता है, जिन्हें बचाया जा सकता है। वह धुंध और तूफान के परे छिपे खतरों के बारे में भी आगाह करता है। उस समय वह अपनी पगार या अपने मालिकों के मुनाफे के बारे में नहीं सोच रहा होता है। वह वहां उन लोगों की सुरक्षा और भले के लिए सोच रहा होता है, जो उस पर भरोसा करते हैं। लेकिन, आज के दौर में ये पहरेदार राजनीतिक आकाओं के सलाहकार बनते जा रहे हैं।
महान इतिहासकार जॉन सीली ने कहा था, इतिहास, अतीत की राजनीति है और वर्तमान राजनीति भविष्य का इतिहास। यदि सीली की बात का विश्लेषण किया जाए तो, पत्रकार अपने लेखन के ज़रिये अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए इतिहास लिख रहे होते हैं।
इसलिए पत्रकारों की यह नैतिक ज़िम्मेदारी बनती है कि वे वर्तमान में घट रही सभी घटनाओं को तथ्यपरकता के साथ सही विश्लेषण करते हुए लिखें। जिसे भविष्य की पीढ़ियों को सही तथ्यात्मक जानकारियां उपलब्ध हो सकें। पत्रकारिता, सीखने की एक ऐसी प्रक्रिया है, जो पूरी उम्र निरंतर चलती रहती है।
कोई भी पत्रकार यह नहीं कह सकता कि उसे इतने वर्षों का अनुभव हो गया है और अब वह सब कुछ सीख गया है और भविष्य में कुछ जानना शेष नहीं रह गया है। इसलिए पत्रकारों को निरंतर सीखते रहना चाहिए ताकि वे मालिकों और संपादकों के द्वारा नौकरी से निकाले जाने के भय से बचे रहें।
यदि आप निष्पक्ष पत्रकारिता कर रहे हैं या करना चाहते हैं और अपने आप को किसी प्रतिष्ठित संस्थान में कायम रखना चाहते हैं, तो इसका एक ही मंत्र है, आपको एक हरफनमौला पत्रकार होना होगा। आपकी कम से कम इतिहास, कानून, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र और समाजशास्त्र विषय में महारत होनी चाहिए। इसके अलावा लेखनी और सूत्र बनाना और उन्हें कायम रखने में भी महारत हासिल करनी चाहिए। संक्षेप में अपने आप को संस्थान की ज़रूरत बना देना चाहिए ताकि आप संस्थान के निकाले जाने के दबाव से बच सकें और अपनी निष्पक्ष पत्रकारिता जारी रख सकें।
हमें हिंदी पत्रकारिता का संरक्षण करने की ज़रूरत है
वर्तमान में हिंदी पत्रकारिता से जुडे़ हिंदी पत्रकारों से जुड़ा एक पहलू यह भी देखा जा रहा है कि अंग्रेज़ी पत्रकारों के मुकाबले हिंदी पत्रकारों को उतना वेतन नहीं मिल पा रहा है। जिससे अब भविष्य की पीढियां हिंदी पत्रकारिता से किनारा कर रही हैं।
ऐसे समय में हिंदी पत्रकारिता से जुड़े संस्थानों को उदारीकरण की राह पर चलते हुए हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं से जुड़े अपने पत्रकारों को सम्मानजनक पगार प्रदान करनी चाहिए ताकि हिंदी सहित अन्य स्थानीय भाषाओं से जुड़ी संस्थाएं इन्हें आगे निरंतर जारी रख सकें।
आज के दौर में अब जब डिजिटल मीडिया का दौर शुरू हुआ है। ऐसे समय में हिंदी पत्रकारिता का महत्व कम नहीं हुआ है और सभी छोटे-बड़े संस्थानों ने अपने डिजीटल पोर्टल हिंदी में शुरू किए हैं और ऐसे सैकडों पोर्टल हिंदी में लोगों को सूचनाएं परोस रहे हैं। जिससे यह प्रतीत होता है कि समय के साथ हिंदी पत्रकारिता ने स्वयं को ढ़ाल लिया है।