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संविधान के सिद्धांतों के रक्षक ज़िम्मेदार नागरिकों और धार्मिक कट्टरपंथियों की भीड़ में अंतर – एक मूल्यांकन

संविधान के सिद्धांतों के रक्षक ज़िम्मेदार नागरिकों और धार्मिक कट्टरपंथियों की भीड़ में अंतर - एक मूल्यांकन 

आज हमारा मुल्क सत्ता की जनविरोधी नीतियों के कारण अशांति के दौर से गुज़र रहा है। मुल्क की सत्ता, हमारे पूर्वजों द्वारा 70 साल में अर्जित की गई सार्वजनिक सम्पति को नमक के भाव में देशी-विदेशी लुटेरे पूंजीपतियों को बेच रही है। 

हमारे मुल्क की प्राकृतिक धन-सम्पदा जल-जंगल-ज़मीन-पहाड़-खान को कार्पोरेट के हवाले कर रही है। मुल्क के अंदर इस लूट के खिलाफ आवाम आवाज़ ना उठा सके इसके लिए सत्ता आम जनता को धर्म और जाति पर लड़ा रही है। 

सत्ता ने एक ऐसी धार्मिक भीड़ का निर्माण किया है, जो हॉलीवुड फिल्मों में जॉम्बी जैसी होती है। जो सत्ता के खिलाफ उठने वाली प्रत्येक आवाज़ को दफन कर देना चाहती है। इस धार्मिक कट्टरपंथी भीड़ के निशाने पर प्रगतिशील लेखक, कलाकार, छात्र, शिक्षक, नाटककार, दलित, आदिवासी और मुख्य पैमाने पर मुस्लिम समुदाय है। 

आज मुल्क का प्रत्येक नागरिक दो खेमों में बंट चुका है

एक खेमा है, जो मुल्क के संविधान को बचाने व सत्ता और कार्पोरेट की लूट के खिलाफ सड़कों पर लड़ाई लड़ रहा है। दूसरा खेमा है, जो संविधान को खत्म करके मुल्क को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहता है। 

दूसरा खेमा जो हिंदुत्ववादी विचारधारा के तहत काम कर रहा है, जो वर्तमान में मुल्क की सत्ता पर भी काबिज है। ये खेमा संविधान को खत्म करने के लिए सत्ता का और उन्मादी भीड़ का सहारा ले रहा है। 2014 में, सत्ता में आने के बाद इस खेमे ने देश के बहुमत नौजवानों को ऐसी भीड़ में तब्दील किया है, जो धर्म के नाम पर दूसरे धर्म के लोगों का कत्ल करती है। 

यह भीड़ कत्ल करने वालो के पक्ष में हिंसक प्रदर्शन करती है। बलात्कारियों को बचाने के लिए कभी भगवा, तो कभी तिरंगा झंडा उठाकर बलात्कर पीड़ित को ही धमकाती है। सत्ता के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले छात्रों पर यूनिवर्सिटी में घुस कर हमले करती है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, रोटी, कपड़ा और मकान के लिए बोलने वालों की आवाज़ बन्द करने के लिए हिंसा करती है। 

 इस खेमे की भीड़ ने मुल्क के अलग-अलग हिस्सों में सैंकड़ो लोगो की हत्याएं की हैं। उत्तर प्रदेश में अखलाक, पुलिस ऑफिसर सुबोध की हत्या से शुरू होकर अलवर में गाय के लिए पहलू खान की हत्या, झारखंड में बच्चा चोर गिरोह के नाम पर तबरेज अंसारी की हत्या, राजस्थान में शम्भू रैगर द्वारा मुस्लिम मज़दूर की हत्या, जयपुर में कश्मीरी लड़के की हत्या, मध्यप्रदेश के धार में भीड़ द्वारा हत्याएं। ये सब हत्याएं भीड़ द्वारा सुनियोजित तरीके से की गई थीं। इन सभी हत्याओं के बाद हत्यारों के पक्ष में प्रदर्शन किए गए। हत्यारों का जेल से बाहर आने पर फूल-मालाओं से स्वागत किया गया था। 

ऐसे ही कठुआ बलात्कार के आरोपियों के पक्ष में और उत्तर प्रदेश में बलात्कारी विधायक कुलदीप सेंगर व चिनमयानन्द के पक्ष में विशाल धरने-प्रदर्शन किए गए थे। चिनमयानन्द को जब जमानत मिली, तो उसका जय श्रीराम व भारत माता की जय के नारों से स्वागत किया गया था और उसको नैशनल कैडट कोर (NCC)  से सलामी भी दिलवाई गई थी। 

धर्म के नाम पर धार्मिक उन्माद की हिंसा में तब्दील होती जनता

ये धार्मिक उन्मादी भीड़ अल्पसंख्यक मुस्लिमों, दलितों, आदिवासियों व अपने ही वर्ग के उन लोगों को अपना दुश्मन समझती है, जो सत्ता और उसके साझेदार लुटेरों के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं। 

इसके विपरीत जो मानवतावादी खेमा है, जो अभी बहुमत में बहुत कमज़ोर है। जो अलग-अलग मुद्दों पर बिखरा हुआ है, लेकिन वो मज़बूती से सत्ता के संविधान विरोधी कृत्यों के खिलाफ लड़ रहा है। यह खेमा संविधान की मूल भावना धर्मनिरपेक्षता व समानता को बचाने के लिए अपनी आवाज़ बुलन्द कर रहा है। यह खेमा संसाधनों की लूट के खिलाफ सत्ता को ललकार रहा है।
शाहीन बाग में नागरिक संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय रजिस्टर नागरिकता (NRC) के विरोध में हुए प्रदर्शन की एक तस्वीर

सत्ता द्वारा संविधान विरोधी नागरिक संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय रजिस्टर नागरिकता (NRC) नामक दो कानून लाए गए थे। इस कानून के तहत मुल्क के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को तोड़ कर हिन्दू राष्ट्र की तरफ ले जाने की कोशिश सत्ता कर रही थी। मुल्क का अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय,जो इस सत्ता के मुख्य निशाने पर है लेकिन प्रगतिशील लेखक, छात्र, पत्रकार, शिक्षक, वैज्ञानिक, कलाकार सत्ता के इस जनविरोधी कानून के खिलाफ पिछले लम्बे समय से मुस्लिमों के साथ मिलकर लड़ाई लड़ रहे हैं। 

मुल्क के सभी हिस्सों में लाखों-लाख लोगों ने सरकार के खिलाफ धरने-प्रदर्शन किए थे। उत्तर प्रदेश में सत्ता के भयंकर दमन के खिलाफ 19 से 20 क्रांतिकारी साथियों ने शहादत दी थी। सैकडों लोगों ने जेल की अमानवीय यातनाएं सही हैं। उस समय पिछले 50 से भी ज़्यादा दिनों तक दिल्ली के शाहीन बाग में सरकार के खिलाफ धरना हुआ था, जिसकी कमान महिलाओं ने ही सम्भाली थी।

शाहीन बाग अब देश में धर्मनिरपेक्षता और संविधान को बचाने का प्रतीक बन गया है

इसी शाहीन बाग से प्रेरणा लेते हुए मुल्क के अलग-अलग हिस्सों में शाहीन बाग की तर्ज़ पर धरने हुए थे। इन धरनों में हज़ारों से लेकर लाखों लोगों की भीड़ शामिल हुई थी। पंजाब से आए हुए हज़ारों सिख धर्म के अनुयायियों ने एक बार फिर अपने गुरु साहिबान के सन्देश अन्याय के खिलाफ युद्ध लड़ो पर चलते हुए सत्ता के खिलाफ हुंकार भरी थी। वो यहां धरने में शामिल हुए और यहां लंगर भी सम्भाला था।  

 सत्ता समर्थक मीडिया, जो इन क्रांतिकारियों की भीड़ को कभी पाकिस्तानी समर्थक बता रही थी, तो कभी पैसों और बिरयानी के लिए इकठ्ठा हुई भीड़ बता रही थी। लाख प्रयास करने के बाद भी मीडिया इस भीड़ को पाकिस्तान समर्थक व हिंसक जानवरों की भीड़ साबित करने में पूर्णतया नाकाम रही। 

 भीड़ को उकसाने के लिए ताकि वो हिंसक बन जाए, इसके लिए सत्ता ने अपने आदमी भेज कर भीड़ पर गोलियां भी चलवाई थीं, लेकिन भीड़ एक मज़बूत अनुशासन में काम कर रही थी। उस समय पूरे देश में हो रहे धरने- प्रदर्शनों से किसी भी धरने से एक भी अराजकता की खबर नहीं सुनाई पड़ रही थी। 

उस समय गुंजा कूपर नाम की महिला जो सत्ता के खेमे के लिए काम करती थी। जो अपना एक यूट्यूब चैनल भी चलाती थी, जिसका काम सुबह से शाम तक बस लोगों में धार्मिक नफरत फैलाना था। वो बुर्का पहन कर शाहीन बाग के धरने पर शामिल हुई थी। वो वहां पर अपने तय कार्यक्रम के तहत महिलाओं से ऐसे सवाल पूछती थी कि जिनके जवाब पाकिस्तान समर्थन में दिखें। गुंजा कपूर, अपने कैमरे से ये सब रिकॉर्ड भी करती थी। आंदोलनकारी महिलाओं को गुंजा के ऐसे आपत्तिजनक सवालों से उस पर शक हो गया था और उन्होंने उससे पूछताछ की, तो जब उसकी असल सच्चाई सामने आई थी।

शाहीन बाग में नागरिक संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय रजिस्टर नागरिकता (NRC) के विरोध में हुए प्रदर्शन की एक तस्वीर  

आंदोलनकारी महिलाओं ने गुंजा कूपर से मारपीट नहीं की, उन्होंने गुंजा से बदतमीजी तक नहीं की, उन्होंने उससे सभ्य तरीके से बात की उसके बाद गुंजा कपूर को पुलिस के हवाले कर दिया था। 

ऐसे ही दूसरी घटना में सत्ता अपने 2 गुर्गों को शाहीन बाग भेजती है, वो वहां सेल्फी ले रहे थे। उन्होंने सेल्फी लेकर अपने दोस्तों को वट्सएप्प पर भेजी और इसके साथ ही शाहीन बाग के बारे में आपत्तिजनक पोस्ट किया था। उन्होंने कुछ गालियां भी शाहीन बाग के बारे में दी थीं। उन दोनों लड़कों को मौके से ही पकड़ लिया गया था, लेकिन किसी ने भी उनके साथ मारपीट नहीं की थी।  

मानवता से बड़ा कोई धर्म और जाति नहीं है 

आन्दोलनकारी भीड़ की इस तहजीब ने उस समय पूरे मुल्क का दिल जीत लिया था। शायद ही विश्व में ऐसी सभ्य और मानवतावादी भीड़ के उदाहरण आपको कहीं मिले। दुश्मन खेमा अपने गुंडे-बदमाशों को भेज रहा था, आपकी भीड़ में आपके खिलाफ आप पर हमला करने के लिए, लेकिन आप यह सब जानते हुए भी उन गुंडे-बदमाशों को माफ कर दें। शाहीन बाग की जनता ने विश्व में भारत की जो मानवतावादी छवि पेश की थी, उसको इतिहास में याद रखा जाएगा। 

 शाहीन बाग की क्रांतिकारी भीड़ ने एक बार फिर साबित कर दिया था कि मानवतावादी भीड़ कभी कत्ल नहीं करती, इंसाफ और इंसानियत के लिए लड़ने वाली भीड़ कभी मानवीय मूल्यों के खिलाफ नहीं होती है। 

धार्मिक कट्टरपंथी जॉम्बी भीड़ के विपरीत मानवतावादी भीड़ ने धार्मिक भीड़ की अगुवाई करने वाली गुंजा कपूर को सही सलामत छोड़ कर जो मिशाल कायम की थी, ये इंसाफ की इस लड़ाई को मंज़िल तक ले जाने के लिए एक मज़बूत ढांचे का काम करेगी। 

मुझे लीबिया के महान क्रांतिकारी ओमर मुख्तार की वो घटना याद आ रही है, जिसमें वो एक मुठभेड़ में दुश्मन खेमे के दो सैनिकों को ज़िन्दा पकड़ लेते हैं। ओमर के साथी जब दुश्मन सैनिकों के साथ क्या किया जाए? पूछते हैं, तो ओमर मुख्तार उनको ज़िंदा छोड़ देने का हुक्म देते हैं। उनके साथी ओमर को कहते हैं कि ये दुश्मन, तो हमारे साथ ऐसा बर्ताव नहीं करते हैं, ये तो हमारे साथियों को मार देते हैं।

 इसके जवाब में ओमर मुख्तार का जवाब लाजवाब था, ओमर कहते हैं  

“वो खूनी हैं, लेकिन हम खूनी नहीं क्रांतिकारी हैं।” 

“वो जानवर हैं हम नहीं”

एक बार फिर शाहीन बाग की क्रांतिकारी भीड़ ने ओमर मुख्तार के उन शब्दों को साबित कर दिया था किवो जानवर हैं, हम नहीं ”

शाहीन बाग की इस भीड़ ने साबित कर दिया था कि सत्ता निर्मित भीड़ खूनी भीड़ थी, अपनी लूट को जारी रखने के लिए निर्दोष लोगों का खून बहा रही थी, लेकिन हम खूनी भीड़ नहीं हैं, हम इंसाफ के लिए, अन्याय के खिलाफ लड़ने वाले क्रांतिकारियों की भीड़ हैं। 

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