हमारे भारत देश में छह ऋतुएं हैं, वर्षा ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, शरद ऋतु, हेमंत ऋतु, शीत ऋतु और बसंत ऋतु। इन सभी ऋतुओं का अपना अलग-अलग महत्व होता है। हमारे छत्तीसगढ़ में वर्षा ऋतु का इंतज़ार बड़ी बेसब्री से किया जाता है, क्योंकि धान की खेती के लिए बहुत सारा पानी चाहिए रहता है, जो केवल वर्षा ऋतु में ही मिल पाता है। इसलिए छत्तीसगढ़ के किसान बंधु मानसून का इंतज़ार बड़ी बेसब्री से करते हैं ताकि वे अपनी खेती शुरू कर सकें। हमारा छत्तीसगढ़ किसानों का राज्य है और हमारे छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा भी कहा जाता है।
वर्षा ऋतु के आगमन से पहले आदिवासी समुदाय के लोगों को अनेक तैयारियां करनी पड़ती हैं। बरसात का मौसम 3 महीने का होता है। इन तीन महीनों के लिए छत्तीसगढ़ के आदिवासी लोग उन सभी महत्वपूर्ण कार्यों को संपन्न करते हैं, जो उनकी मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है।
बरसात लगने से पहले आदिवासी महिलाएं, पुरुष और बच्चे सभी 1 महीने पहले से तैयारी करते हुए नज़र आते हैं, क्योंकि यह कुछ ऐसा कार्य होता है, जो केवल बरसात से पहले ही किया जा सकता है। अतः आइए जानते हैं, उन कार्यों को जो आदिवासी क्षेत्र में वहां के लोगों द्वारा बारिश से पूर्व किए जाते हैं।
घुरुआ (एक गड्ढा) से गोबर खाद निकालना
छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी हैं, नरवा, गरवा, घुरवा, और बारी। ऐसा कहा जाता है कि यह चार शब्द हमारे छत्तीसगढ़ की पहचान हैं। इन चार शब्दों में से एक शब्द घुरूवा है, जिसका अर्थ जो ज़मीन में खुदा हुआ एक गड्ढा होता है।
यह 3 से 4 फीट तक गहरा होता है। इसी गड्ढे में हर रोज़ आदिवासी महिलाएं अपनी गली या अपने घर में बनाए हुए तबेले से गोबर एकत्रित करके डालती हैं। इस गड्ढे में साल भर से इकट्ठा किया हुए गोबर को आदिवासी लोग बरसात से पहले अपने खेतों में डालते हैं ताकि फसल की पैदावार अच्छी हो।
लकड़ी इकट्ठा करना
छत्तीसगढ़ के आदिवासी महिलाओं और पुरुषों द्वारा बारिश से पूर्व अपने घर में सूखी लकड़ियों को इकट्ठा किया जाता है। वे जंगलों से लकड़ी प्राप्त करते हैं, जहां से वे गिरे हुए पेड़ों और उसकी शाखाओं को इकट्ठा करते हैं। जो पेड़-पौधे किसी कारणवश गिर जाते हैं, उनको छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर अपने सिर के बल महिलाएं अपने घर लाती हैं और पुरुष अपने कंधे पर उठाकर लाते हैं।
फिर उन्हें कुछ दिन धूप में सुखाया जाता है। बरसात के दिनों में काफी ठंड पड़ती है। इसलिए इन सूखी हुई लकड़ियों के सहारे लोग ठंड से अपनी रक्षा करते हैं। लकड़ी सूखी ही रहे इसलिए लकड़ियों को घर के अंदर संभाल कर ही रखा जाता है।
खेत और बाड़ी की सफाई
ग्रामीण क्षेत्रों में आदिवासी लोग बरसात से पहले अपने खेत और बाड़ी को झाड़ू से साफ करते हैं। खेतों या बाड़ी में जितने भी प्लास्टिक या कांटे होते हैं, उनको एकत्रित करके जला दिया जाता है। यह कार्य इसलिए किया जाता है ताकि बारिश होने पर खेती में कोई कचरा ना हो और फसल अच्छी हो। उसी तरह से अपने घर के पास जो बाड़ी होती हैं, उसे भी अच्छे से साफ कर लिया जाता है, उस बाड़ी में मक्का की फसल उगाई जाती है।
बाड़ी का बांस से घेराव करना
मानसून के आने से पहले ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी बाड़ी या खेतों को झाड़ियों या बांस के ढांचे से घेराव किया जाता है। गाय और बकरियों जैसे जानवरों से फसलों की रक्षा के लिए यह दीवार खड़ी की जाती है।
इसको बनाने के लिए ग्रामीण जंगलों से छोटी-छोटी कांटेदार झाड़ियां बटोर कर लाते हैं या फिर अपने ही बाड़ी में उगे हुए बांस का प्रयोग करते हैं। इसमें कुछ मोटी लकड़ियों का भी प्रयोग खम्बे के रूप में किया जाता है। इन मोटी लकड़ियों को दो-दो फीट की दूरी में ज़मीन पर गड्ढा खोदकर डाला जाता है।
नए और छोटे बैलों को हल चलाने के लिए प्रशिक्षित करना
हमारे छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण कार्यों में से एक कार्य यह है कि नए बैलों को खेतों की जुताई का प्रशिक्षण देना। हर साल कुछ किसान नए मवेशी खरीदते हैं। इन नए बैलों को पैदल ही गांव लाया जाता है फिर उन्हें खेत की जुताई करने के लिए कई दिनों तक प्रशिक्षित किया जाता है।
बरसात से पहले एक बार खेतों की जुताई
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर खेत की जुताई के लिए लोग बैल या भैंस का प्रयोग करते हैं। इसलिए मानसून आने से पहले सभी किसान अपने खेतों की एक माह पहले जुताई करना प्रारंभ कर देते हैं और उनके द्वारा खेतों की जुताई इसलिए की जाती है, ताकि मिट्टी भुरभुरा हो सके और जैसे ही बारिश शुरू हो उन खेतों में पानी जमा हो सके, जिससे उन्हें फसल बोने में या रोपा लगाने में आसानी हो। अतः यह कार्य किसानों के द्वारा मानसून आने से पहले संपन्न कर लिए जाते हैं।
कोरबा ज़िले के आदिवासियों की कृषि उपज को मानसून ही नियंत्रित करता है, इसलिए ,बारिश से पहले घर और खेत तैयार करना उनके वार्षिक कर्तव्यों का एक अनिवार्य हिस्सा है।