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दैनिक जीवन की आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती महंगाई से निम्न-मध्यम वर्ग की रीढ़ टूटी, ज़िम्मेदार कौन?

दैनिक जीवन की आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती महंगाई से निम्न-मध्यम वर्ग की रीढ़ टूटी, ज़िम्मेदार कौन?

आज कुछ लोग महंगाई को समस्या ना मानकर निम्न-मध्यम वर्ग को चुनौतियों से जूझता देख बड़ा खुश हो रहे हैं। कल को यह घंटे कि तरह बजने वाला वर्ग मानवता के प्रति उदासीन हो गया ना, तो तुम्हीं यह कहते फिरोगे कि आजकल लोगों की संवेदनाएं ही मर चुकी हैं।

एक होता है मध्यम वर्ग, जिसकी आय भी महंगाई के साथ-साथ एक रेशियो मे बढ़ती रहती है या ऐसे परिवार जहां अच्छी कमाई करने वाले एक से अधिक लोग हों और जिनके मल्टीपल सोर्स ऑफ इनकम हों और जो अपने बच्चों की पढ़ाई प्राईवेट स्कूलों में करा सकते हैं, ज़रूरत पड़ने पर इलाज भी प्राईवेट अस्पताल में करा सकते हैं। 

दूसरा है निम्न वर्ग, इनमें भी एक ही परिवार के एक से अधिक लोग कमाई करने जाते हैं पर इनकी आय तुलनात्मक रूप से बहुत कम होती है, ये गरीबी रेखा के नीचे होते हैं। इस बावत इन्हें कुछ सरकारी सुविधाएं भी मिल जाती हैं, ये बच्चों की पढ़ाई और इलाज जैसी आधारभूत सुविधाओं के लिए सरकारी तंत्र पर ही पूर्णतः निर्भर होते हैं। 

हमारी देश की आबादी का एक बड़ा तबका आज भी आधारभूत सुविधाओं से वंचित है 

इस मध्यमवर्ग और निम्न वर्ग के बीच के बीच जो वर्ग होता है, वो होता है निम्न-मध्यम वर्ग, जो गरीबी रेखा से तो ऊपर है, परंतु होता तो यह भी गरीब ही है, अपनी सीमित आय के कारण आधारभूत सुविधाओं के लिए सरकारी तंत्र से ही उपेक्षा करता है।

इस वर्ग की एक ही उम्मीद होती है कि यह अपने परिवार का ठीक से पालन कर सके, बुनियादी सुविधाओं का समय पर जुगाड़ कर के परिवार को या खुद को गरीब होने के एहसास से बचा सके। बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवा सके, किसी बीमारी में अच्छे अस्पताल मे इलाज करवा सके, कुल मिलाकर चुनौती यह है कि अपना आर्थिक और रहन-सहन का स्तर थोड़ा-थोड़ा कर के बढ़ा सके, जो कि ज़रूरी भी है और प्रत्येक व्यक्ति का हक भी है।

यह वर्ग खाने-पीने का सामान और दैनिक उपयोग की चीज़ें बजट रेट मे खरीद कर खुश हो लेता है और आने वाले समय में कुछ बेहतर होने कि उम्मीद करता है, परंतु निरंतर और असामान्य रूप से बढ़ते दामों के कारण रहन-सहन का स्तर उठना, तो दूर दैनिक उपयोग कि चीज़ों में भी इसे कटौती करनी पड़ती है।

यह वर्ग नही चाहता कि वो AC गाड़ी से चले पर बस या रेल मे उचित किराया देकर सुरक्षित और आरामदायक यात्रा कि उम्मीद ज़रूर रखता है। यह वर्ग नहीं चाहता कि रोज रेस्त्रां में या होटल में खा सके, पर घर के 4 सदस्यों और दूर गाँव से पधारे 2 मेहमानों को भरपेट भोजन और मिठाई खिला सके।

यह वर्ग नहीं चाहता कि घर मे प्रत्येक कमरे मे एयर कंडीशनर हो, परंतु भीषण गर्मी से बचने लिए बिजली बिल का खौफ किए बगैर 2 कूलर तो चला सके। यह वर्ग नहीं चाहता कि उसके बच्चे की डिलीवरी किसी बड़े प्राईवेट अस्पताल में हो, पर ज़िला अस्पताल में इमरजेन्सी की स्थिति मे बिना देर किए अच्छा इलाज तो मिल सके, यह उम्मीद अवश्य करता है। 

पर यह सब कहां संभव हो पाया है ! यात्रा करे, तो टिकट महंगा ऊपर से भीड़ इतनी कि पूरे सफर में एक टांग पर खड़े होना पड़े, दैनिक आवश्यकताओं का राशन इतना मंहगा कि खुद के खान-पान मे कटौती करनी पड़े, मेहमान बुलाना तो दूर की बात है, घरेलू बिजली बिल भी इतना लगता है जैसे घर में कोई बड़ी फैक्ट्री लगा रखी हो और इलाज और अस्पतालों पर, तो यहां बात ही ना करें तो बेहतर है।

देश का निम्न-मध्यम वर्ग महंगाई की मार और बढ़ती गरीबी का शिकार है  

यह वर्ग हमेशा से ही महंगाई और भीड़भाड़ के बीच कुचला गया है, मसला गया है और अब तो कुछ समृद्ध लोगों ने महंगाई को मंहगाई मानने से ही इनकार कर दिया है और उन्हें इस निम्न-मध्यम वर्ग की चिंता नज़र ही नहीं आती है। अब तो यह समृद्ध लोग बढ़ती महंगाई से निपटने के लिए गरीब वर्ग को स्वयं के खान-पान मे कटौती करने और भूखे रहने की सलाह भी देने लगे हैं। 

इन्हें लगता है कि इस तरह महंगाई की मार झेल कर गरीब सारी ज़िन्दगी बिना शिकायत किए निकाल ले और गरीब के बच्चे भी इसे सहज रूप से स्वीकार कर लें और अपनी आंखों पर पट्टी बांधे चुपचाप इस जुल्म को सहने की कला भी विकसित कर लें।

परंतु क्या किसी ने कभी यह सोचा है कि इस वर्ग के सब्र का बांध जिस दिन टूट गया, क्या उस दिन किसी अमीर को नुकसान नहीं पहुंचेगा? आपने जो निरंतर इनके प्रति उदासीनता दिखाई है, क्या इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप इन गरीबों की संवेदनाएं सम्पूर्ण मानवता के लिए खत्म नहीं हो जाएंगी?

आज गरीब होते हुए भी जो साफ दिल से आपकी किसी भी प्रकार की मदद करने को तत्पर हो जाता है। क्या वह आपके इस धूर्त और कठोर रवैयै को देखते हुए आपके प्रति नफरत का भाव उत्पन्न नहीं करेगा? यह वर्ग कब तक धर्म और राजनीतिक पार्टियों के नाम पर खुद का पेट काटते हुए भी आपसे जुड़ा रहेगा? क्या कल के दिन कुंठित होकर यह आपको आर्थिक या शारीरिक हानि पहुंचाने का प्रयास नहीं करेगा?

कुछ लोगों को तो अभी भी ये महत्वपूर्ण सवाल शायद बेमतलब और फिजूल लग रहे होंगे, इसका सीधा मतलब यही है कि आपकी संवेदनाएं दूसरों के प्रति खत्म हो चुकी हैं और आप सिर्फ और सिर्फ अपना भला सोच रहे हैं, पर यह ज़्यादा दिन नहीं चलने वाला, क्योंकि किसी ना किसी रूप मे इस कुव्यवस्था को बदलना ही होगा लोगों की नियत से या मानवता की नियति से। 

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