सम्पूर्ण विश्व मनुष्य द्वारा बनाए हुए समाज में रहता है। मनुष्य ने समाज का निर्माण किया है। वहीं मनुष्य ही सबसे पहले मानवता का संदेश देता है। समाज के हर हिस्से और हर तबके के लोगों ने समानता को हमेशा से अपने साथ रखने की कोशिश की है। हम हर ओर देख सकते हैं, जो आस्तिक हैं और उनके धार्मिक ग्रन्थों में भी मानवता का संदेश है, जो नास्तिक हैं, वो खुद को असमानता और अमानवता का विरोधी करार देते हैं। अक्सर हमको कई संस्थाएं मिल जाएंगी, जो धर्म, जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव के लिए अपने आप को सशक्त किए हुए खड़ी हैं।
वहीं हम अगर बात करें हमारे समाज में लैंगिक भेदभाव की, तो पाएंगे कि महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव वास्तव में बहुत ही अन्यायपूर्ण हैं। इन समस्याओं के समाधान के हल को ढूंढने के लिए कई समूह आगे आते हैं। वहीं अगर हम समलैंगिक समुदाय के अधिकारों की बात करते हैं, तो सभी को सांप सूंघ जाता है। ऐसा किसलिए है? क्या कोई इस बात का उत्तर दे सकता है? यह एक कोरी और अनैतिक विडम्बना है, जहां ऐसा होता है।
जहां कहीं समाज यह सुनता है कि वो लड़का या लड़की समलैंगिक है या ट्रांसजेंडर है। वहीं से उसके साथ भेदभाव शुरू कर दिया जाता है। लोग उसको भूत-पिशाच से जोड़ना शुरू कर देते हैं। यह कितनी असभ्य बात है। आप किसी के लिंग से या उसकी पसंद से उसको नापेंगे या उसके साथ व्यवहार करेंगे।
ट्रांसजेंडर्स को हमारे समाज में एक बीमारी या उन्हें अप्राकृतिक माना जाता है
समाज में इस संदर्भ में दो प्रकार के लोग मिलते हैं। एक वो जिनके लिए काला अक्षर भैंस बराबर और दूसरे वो जो खुद को इंटेलेक्चुअल बताते हैं। चलिए उनकी बात मान भी लेते हैं, तो उनकी धारणा में जानते हैं समलैंगिकता क्या होती है? दो लोगों से इंटरव्यू लेने के बाद लोगों की सोच को छानने की कोशिश करते हैं।
यूथ की आवाज़ ने इस विषय में दो लोगों से बात की, एक तो वो जिन्होंने कभी स्कूल का चेहरा ही नहीं देखा और एक थे, वो जिनका बचपन, जवानी और बुढ़ापा सब स्कूल में ही गुज़रा।
62 वर्षीय गुलजारी लाल, 3 सरकारी स्कूलों में उप समिति अध्यक्ष और प्रिंसिपल रहे हैं। 5 साल लगातार उनके नेतृत्व में उनका स्कूल बारहवीं कक्षा में 100% रिजल्ट लाने में अव्वल रहा। उन्होंने हमको बताया कि समलैंगिकता आखिर क्या होती है? इंसान ऐसा क्यों बन जाता है?
समलैंगिकता माता-पिता द्वारा किया गया अपराध है। जिस दौरान किसी बच्चे के माता-पिता रति क्रिया के दौरान जानवरों जैसा व्यवहार करते हैं, तो उनके बच्चे इस प्रकार ही पैदा होते हैं। मैं 28 साल तक शिक्षक रहा हूं, मुझे पता है, मेरे विद्यालय में भी ऐसे बच्चे पढ़ते थे।
मैं उनके माता-पिता को देख कर बता देता था कि इनका बच्चा ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है? कोई लड़का-लड़की की भांति क्यों सोच रहा है? यह पूरी तरह से अप्राकृतिक है। प्रकृति से अलग हटोगे, तो ऐसा ही होगा, जो लोग आज समलैंगिक होने को समानता से जोड़ते हैं उनसे मेरा निवेदन है कि पहले समस्या को समझें फिर उस पर अपनी प्रतिक्रिया दें।
हमारे समाज में ट्रांसजेंडर्स के प्रति हिंसा, असमानता और तिरस्कार की भावना है
ये तो विचार थे, एक पढ़े-लिखे इंसान के अब हम बात करते हैं यमुना खादर में काम करने वाले एक किसान की, जिन्होंने अपने जीवन में बचपन से अब तक अपने पैर सिर्फ खेत की मिट्टी में सने हुए देखे हैं।
मुझे, तो अभी तक ऐसा कोई यहां दिल्ली में मिला ही नहीं, हां, मगर हमारे गाँव में एक लड़का ऐसा था, जो जनानियों की तरह व्यवहार करता था। लाली-पाउडर लगाता था। ये सब देख कर गाँव वाले उसको मंदिर में ओझा के पास ले गए, तो पता लगा, उस पर किसी देवी का वास है। उसके माता-पिता जी से बरसों पहले कोई देवी नाराज़ हो गईं थीं, तो उन्होंने इनके बच्चे पर अपना अधिकार कर लिया है।
तभी उस लड़के को सारे औरतों वाले खेल पसंद आते थे, कपड़े भी ऐसे ही पहनता था। वहीं उनसे ट्रांसजेंडर्स के बारे में बात की गई, तो जिनमें किन्नर समाज आता है, तो उनके बोल थे, लोगों ने यह सब उनके कमाने का ज़रिया बना रखा है और कई बार किसी बच्चे के जननांग नहीं बने होते हैं, तो वो भूत या पिशाच होते हैं, जिनको हमारे गाँव में पैदा होते ही मार दिया जाता है।
ये महज़ दो उदाहरण नहीं हैं, हमारे समाज को प्रतिबिंबित करने के लिए, बल्कि यह सोच है, उस समाज की जहां अंबेडकर के भारत की बातें होती हैं। यह वह भारत है, जहां महात्मा गांधी जी अहिंसा की बातें करते थे।
यह वही भारत है, जहां बुद्ध ने जन्म लिया और सत्य के मार्ग पर चलते हुए मानवता का संदेश दिया। आज के भारत को देखते हैं, तो ना तो मानव दिखते हैं और ना ही मानवता।
ऐसे समाज पर और उसकी सोच पर मैं कटाक्ष करते हुए यही समझाना चाहता हूं कि आप मानव हैं और आप अपनी मानवता के लिए जाने जाते हैं। यदि आप समाज में समानता लाने में सक्षम नहीं हुए हैं, तो आप जंगली हैं। आपके लिए पृथ्वी पर कोई जगह ही नहीं है।
बहरहाल, आप रह रहे हैं और अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। मगर कहीं-ना-कहीं आपको इस बात का कोई अधिकार नहीं कि आप समाज में पिछड़े हुए समुदाय के एक गुट को ईश्वर का पाप या अनर्थ समझें।