किसी भी व्यक्ति के जीवनयापन के लिए रोज़गार उसकी मुख्य आवश्यक ज़रूरत होती है। इसके अभाव में कोई भी व्यक्ति अपना नैतिक और आध्यात्मिक विकास नहीं कर पाता है। इसके साथ ही एक व्यक्ति, जो बेरोजगार है, वह देश और समाज के विकास में योगदान देने की बजाय अपराध, निराशा और अवसाद की स्थिति में चला जाता है।
ऐसे में व्यक्ति को प्रकृति द्वारा प्रदत्त अपनी समस्त शक्तियों का सदुपयोग करने के लिए स्वयं को किसी ना किसी कार्य में संलग्न करना पड़ता है। अन्यथा उसके सामने कई प्रकार की सामाजिक और आर्थिक समस्याएं खड़ी हो जाती हैं।
भारत जैसे विकासशील देश में रोज़गार की समस्या दिन-प्रतिदिन और जटिल होती जा रही है। यहां बढ़ती जनसंख्या और लंगड़ी शिक्षा व्यवस्था ने देश में पढ़े-लिखे बेरोजगारों की संख्या में इजाफा कर दिया है और आज 21वीं सदी के इस युग में भी हम देश के युवाओं को रोज़गारपरक शिक्षा प्रदान नहीं कर पाएं हैं।
जिस कारण भारत में बेरोजगारी की समस्या के वर्तमान आंकड़े चौंका देने वाले हैं। ऐसे में आज हम देश में बेरोजगारी के मुख्य कारणों पर चर्चा करेंगे कि आखिर क्या कारण हैं, जिसकी वजह से भारत में हर दूसरा व्यक्ति रोज़गार की तलाश में दर-दर भटक रहा है।
1 . शिक्षा का व्यवसायीकरण
आज़ादी के बाद भारत में नागरिकों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया और शिक्षा को भारतीयों का मौलिक अधिकार घोषित कर दिया गया लेकिन जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा, वैसे-वैसे शिक्षा के ठेकेदारों ने शिक्षा के निजीकरण को बढ़ावा देना आरंभ कर दिया और जिसका परिणाम यह हुआ कि शिक्षा हर जगह पैसों में तोली जाने लगी।
जिसके कारण वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में जिसकी जेब में अधिक पैसा होगा उसे ही गुणवत्ता युक्त शिक्षा पाने का अधिकार होगा। दूसरी तरफ, बड़े-बड़े अमीर व्यक्तियों ने कॉलेजों और स्कूलों को अपनी कमाई का बड़ा माध्यम बना लिया है, जहां प्रत्येक डिग्री की एक कीमत निर्धारित कर दी गई है। इसके साथ ही बच्चों के स्कूलों में किताबें, ड्रेस यहां तक कि स्कूल के निर्माण से जुड़े व्यय भी अभिभावकों से लिए जाते हैं और शिक्षा के नाम पर उनको सिर्फ कागज के पन्ने थमा दिए जाते हैं।
यदि हम सरकारी शिक्षण संस्थानों की बात करें, तो उनकी हालत तो इस समय बद से बदतर है, जहां विद्यार्थी प्रवेश परीक्षाओं और आरक्षण आदि को पार करके पहुंचते हैं लेकिन जब बात नौकरी की आती है, तब उनके पास उचित प्रशिक्षण और योग्यता की कमी होती है, जिस कारण वे शिक्षित होने के बावजूद भी रोज़गार से वंचित हो जाते हैं।
इसके पीछे हमारे निजी और सरकारी शिक्षण संस्थानों की शिक्षा व्यवस्था है, जो उन्हें केवल किताबी ज्ञान तक सीमित रखती है और उन्हें उद्योग और भविष्य की संभावनाओं से रूबरू होने का मौका नहीं देती है। इसके साथ ही निजी क्षेत्र के शिक्षण संस्थानों का उद्देश्य सिर्फ लाभार्जन करना होता है। इसलिए कहीं ना कहीं शिक्षा प्रदान करने वाले ये शिक्षण संस्थान भी भारत में बेरोजगारी के प्रमुख कारण हैं।
2. सरकारी नौकरियों में धांधली
हमारे समाज में आरंभ से ही सरकारी नौकरियों को बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। ऐसे में आज प्रत्येक युवा सरकारी नौकरी पाना चाहता है, जिसके लिए वह जी-जान से मेहनत भी करता है, लेकिन नेतागण अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के उद्देश्य से सरकारी नौकरियों के समय धांधलेबाजी पर उतर आते हैं।
जिसके कारण तमाम योग्य युवा मेहनत के बावजूद भी सरकारी नौकरी हासिल नहीं कर पाते हैं और इसमें उनका काफी समय भी बर्बाद हो जाता है। अधिकतर देखा गया है कि सरकारें कभी-कभार वोट के लालच में आकर पहले, तो बंपर सरकारी भर्तियों के विज्ञापन निकालती हैं और सत्ता में आ जाने के बाद उन भर्तियों पर किसी कारणवश रोक लगा देती हैं।
जिससे हताश और निराश होकर अधिकांश युवा सरकारी नौकरी का सपना भूल जाते हैं और वह बेरोजगार ही रह जाते हैं। दूसरा सरकारी नौकरियों में आरक्षण के चलते भी अयोग्य व्यक्ति को नौकरी मिल जाती है, जिससे भी सरकारी तंत्र अस्त-व्यस्त हो जाता है। ऐसे में सरकारी नौकरियों में सरकार का मनमाना हस्तक्षेप और पारदर्शिता की कमी भी देश में बेरोजगारी का प्रमुख कारण है।
3. कुटीर उद्योग धंधों की सुस्ती
हमारे देश में बेरोजगारी का एक अन्य कारण कुटीर उद्योगों का धीमा विकास भी है, जो कि बड़े-बड़े उद्योगपतियों के स्वार्थों के कारण प्रगति नहीं कर पाते हैं। दूसरा, सरकारें भी कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के प्रति उदासीन रही हैं।
ऐसे में कुटीर उद्योगों को आगे ले जाने के लिए सरकार द्वारा युवाओं को उचित प्रोत्साहन नहीं मिलता है, जिसके कारण वह अपनी सारी सामर्थ्य नौकरी की तलाश में लगा देता है। दूसरा किसी भी प्रकार के कारोबार में पैसा लगाने के लिए आजकल युवाओं के पास अधिक मात्रा में पूंजी नही होती है और युवाओं को बैंकों के माध्यम से ऋण पाने में काफी जटिलताओं का सामना करना पड़ता है।
जिस कारण आजकल के युवा किसी नए कारोबार को करने में अधिक दिलचस्पी नहीं लेते हैं। इसके कारण कहीं ना कहीं समाज में रोज़गार सृजन की तुलना में रोज़गार की कमी उत्पन्न होने लग जाती है, जो कि हमारे देश में बेरोजगारी का एक अन्य महत्वपूर्ण कारक है।
4. तकनीकी ज्ञान की कमी
वर्तमान में जो शिक्षा पद्धति हमारे समाज में प्रचलित है। इसमें बच्चों की तार्किक क्षमता से अधिक बौद्धिक क्षमता पर ध्यान दिया जाता है यानि यहां आपको परीक्षा में नम्बर कितने मिले हैं? उससे आपकी योग्यता का निर्धारण किया जाता है।
आज की शिक्षा पद्धति में युवाओं के नवीन विचारों और उनकी सोच से अधिक तवज्जो उनके परीक्षा परिणामों को दी जाती है। जिस कारण से भी आजकल बच्चों में प्रोगात्मक और तकनीकी शिक्षा की कमी है और इसी वजह से वह भविष्य में अपने लिए बेहतर विकल्प की खोज नही कर पाते हैं।
वह अपने किताबी ज्ञान पर आधारित शिक्षा के माध्यम से किसी स्कूल या कॉलेज में दाखिला तो ले लेते हैं, लेकिन उनके पास व्यावहारिक ज्ञान की कमी के चलते वह किसी औद्योगिक संस्थान में सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते हैं, जो कि कहीं ना कहीं हमारे समाज में बेरोजगारी को बढ़ावा देने के लिए ज़िम्मेदार कारकों में से एक है।
5. बढ़ती जनसंख्या और रोज़गार सृजन की धीमी गति
यदि बात की जाए देश की जनसंख्या के बारे में, तो चीन के बाद हमारा देश भारत विश्व का दूसरा अधिक जनसंख्या वाला देश है। जहां प्रति व्यक्ति रोज़गार की गारंटी देना सरकार के भी नियंत्रण में नहीं है। ऐसे में जनसंख्या के हिसाब से रोज़गार की संभावनाएं सृजित ना होने के कारण भी देश में बेरोजगारी की समस्या बढ़ गई है।
ऐसे में यदि हमें रोज़गार चाहिए, तो केवल सरकार को इसकी ज़िम्मेदारी ना देकर हमें अपनी भी ज़िम्मेदारी समझनी होगी और जनसंख्या नियंत्रण में अपनी भी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी।
इस प्रकार उपरोक्त कारणों की वजह से देश में बेरोजगारी की समस्या धीरे-धीरे विकराल रूप धारण करती जा रही। यदि सरकार और जनता दोनों ने मिलकर प्रयास नहीं किए, तो बेरोजगारी वर्तमान पीढ़ी के साथ आने वाली पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य को भी चूर-चूर कर देगी। इसलिए हमें हमारी शिक्षा व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन करके और स्वरोज़गार को बढ़ावा देकर बेरोजगारी की समस्या को दूर करना होगा, तभी हम एक विकसित देश की कल्पना कर सकते हैं।