इस अफलातूनी ‘ओ’ यानी ओर्गाज़्म को ढूंढने का जादुई सफर कैसा होता है? क्या अपने ओर्गाज़्म को ढूंढते हुए हरमाईनी दिल-ओ-बदन को हिला देने वाले उस एहसास को महसूस कर पाएगी? या फिर जितना सुख मिल रहा है, उस के मज़े लेकर, उस बड़े धमाकेदार अंदाज़ वाले उन्माद की तलाश छोड़ देगी? वो, शायद थोड़ा ये भी करेगी, थोड़ा वो भी करेगी।
दोस्तों के मामले में, मैं हमेशा ही काफी लकी रही हूं। चाहे स्कूल हो या कॉलेज अपने दिल की बात खुल कर बोलनी हो, कोई एडवाइस चाहिए हो, मेरे दोस्त हमेशा हाज़िर रहते हैं। वैसे, दो बोल सुनाने भर के लिए ही, जो बस दिल को ठंडक दे दे। हम आपस में हर तरह की बातें करते हैं जैसे- जब मैं हस्तमैथुन करती हूं, तो ओर्गाज़्म (चरम सुख) का मज़ा नहीं मिलता। पर जब वो उंगली करता है, तो बाई गॉड, ओर्गाज़्म का मज़ा आ जाता है।
ओ तेरी, तुमको कैसे नहीं पता चलता जब तुमको ओर्गाज़्म होता है, ऐसा करो तुम हेयरब्रश का पिछला भाग अपने अन्दर डालो और उसी वक्त अपने भगशेफ के जादुई मटर को भी रगड़ते रहो और अपने पैरों की उंगलियों पर नज़र रखना वो मुड़ीं और सुकड़ीं, तो तेरे अन्दर भी कुछ-कुछ हुआ समझो, ऐसा मैंने एक आर्टिकल में पढ़ा था।
हम ग्यारवीं कक्षा में थे और आपस में हस्तमैथुन और अपने पहले ओर्गाज़्म के बारे में बात कर रहे थे और यह पहली बार नहीं कर रहे थे। मैं चुपचाप अपने दोस्तों की बातें सुन रही थी। उनके मज़ेदार आपबीती पर हंस रही थी और बीच-बीच में सुनाने वाले की टांग भी खींच रही थी।
मैंने अपनी बेस्ट फ्रेंड एस की तरफ देखा, वो भी मुझे देख रही थी। वो और मैं एक ही नाव पर सवार थे। दोनों पक्की तरह से तय नहीं कर पा रहे थे कि उन्हें कभी ओर्गाज़्म /उन्माद हुआ है या नहीं। यह तो पता था कि मुझे किस तरह छुआ जाना पसंद आ रहा था, पर जिस धमाके पटाखे की सब बात कर रहे थे, मैं उससे चकरा जाती थी। वो ओर्गाज़्म जिससे शरीर में करंट दौड़ जाता है!
उस रात मैंने अपने सबसे अच्छी सलाह देने वाले दोस्त, गूगल से पूछा कि खुद को कैसे पता चलेगा कि मुझे ओर्गाज़्म हुआ है? गूगल ने गुगली फेंकी और बताया कि जब होगा, तो पता चल जाएगा। गूगल की बात, तो मान ली पर जवाब तो अब भी नहीं मिला था।
उस वक्त मुझे सेक्स, हस्तमैथुन और उस छलिये ओर्गाज़्म के बारे में जो भी पता था, वो सब मेरी ज़्यादा अनुभवी दोस्तों की मेहरबानी थी। हम एक-दूसरे से हर एक चीज़ के बारे में बातें करते थे। लोगों के पहले रोमांटिक और सेक्स के अनुभव के बारे में बात करना, हमारा सबसे पसंदीदा काम था।
इन सब ज्ञानियों में से एक एम थी। जिसने कुछ समय अमेरिका में पढ़ाई की थी। जहां उसे सेक्स एजुकेशन का ज्ञान भी मिला था और वो वही ज्ञान हम अज्ञानियों की झोली में बड़े प्यार से डालती थी। हमारे ग्रुप में जो भी जानकारी मिलती थी, हम सब उसे घुट्टी की तरह पी जाते थे। चाहे वो सांस रोक देने वाले हस्तमैथुन वाली कहानियां हों या किसी की जोखिमों से भरी रोमांटिक दास्तां।
हम सब हर कहानी को फील करते थे। कभी-कभी इकरार तक की सारी दास्तां की आपस में एक्टिंग भी करते थे। भले ही मैंने अब तक ओर्गाज़्म का सुख ना भोगा हो, पर उन सबकी बातें सुनकर एक बात, तो पता चल गई थी कि जब ओर्गाज़्म होगा, तो कैसा फील होगा।
तो, जब मैंने हस्तमैथुन किया, तो मुझे वो खुश कर देने वाली धमाकेदार फीलिंग क्यों नहीं आई? जिसका ज़िक्र मेरे दोस्तों से लेकर गूगल तक, सबने किया था? और ये बात, इस तरह से, मैं उन दोनों को क्यों नहीं बता पाई?
हम आपस में काफी क्लोज थे, पर फिर भी ओर्गाज़्म को लेकर अपनी उलझन के बारे में, मैं अपने दोस्तों से बात ही नहीं कर पा रही थी। मैंने इस समस्या का हल खुद ही ढूंढने का फैसला किया। मैंने पोर्न देखा, मैंने ध्यान लगा कर सेक्स करने और ओर्गाज़्म फील करने के बारे में सोचने की बहुत कोशिश की।
मैंने अपने बदन पर वो स्पॉट ढूंढने की कोशिश की, जो मुझे स्वर्ग की सैर करा दे। मेरे दोस्तों के अनुसार उंगली करने के साथ-साथ, भगशेफ के जादुई मटर को रगड़ना, तो 100 प्रतिशत फीलिंग आएगी। ऐसा करने पर मुझे अच्छा, तो बहुत लगा पर इतना नहीं कि उन्माद की मेरी चीखें सुनकर, बाजू वाली आंटी पुलिस बुला ले और ना ही मेरे अन्दर, अपने योनि के अन्दर कुछ डालने की कोई इच्छा हुई।
जैसा एक बार मेरे स्कूल की एक अनाम लड़की ने किया था। उसने केमिस्ट्री लैब में से टेस्ट ट्यूब चुरा कर गर्ल्स टॉयलेट में हस्तमैथुन किया था। सुनी सुनाई बात को सच मानें, तो कहते थे कि वो टेस्ट ट्यूब भी उसकी प्यास ना बुझा पाया और टूट गया। जिसकी वजह से वो बेहोश हो गई थी और बाद में स्कूल से ससपेंड भी, बाद में पता चला की यह टेस्ट ट्यूब वाली अफवाह और भी स्कूलों में फैली हुई थी।
टेस्ट ट्यूबों और बदबूदार पब्लिक टॉयलेट्स से बचते हुए, मैं उस पल की तलाश करती रही, जब सेक्स की अपनी खोज के दौरान, एक बेकाबू तड़प महसूस करूं। मेरी मदद के लिए तैयार मेरे दोस्तों के पास सुझावों का भण्डार था, जो कि तकनीकी रूप से सही था पर उनके कोई भी टिप्स काम ना आए।
तो, मैंने एस की ओर मदद का हाथ बढ़ाया। मेरे सभी दोस्तों में से वो सबसे अलग थी। वो उनके जैसा खुलकर बात नहीं करती थी। वह बहुत सी बातें अपने अंदर ही दबा कर रखती थी और कुछ होने के बहुत टाइम बाद, हमारे साथ कोई बात साझा करती थी। वो मेरी बेस्ट फ्रेंड थी और वो एक लड़की को डेट कर रही थी, इसका मतलब मेरे सवालों के जवाब मिलने की उम्मीद, दुगनी हो गई थी।
मैं दोनों से अपने सवाल कर सकती थी। मैंने एस से ए के साथ उसके अनुभव के बारे में पूछा कि जब ए तुम्हें छू रही थी, तो क्या तुमको ओर्गाज़्म के करीब पहुंचने का एहसास हुआ था? तुम्हें पता कैसे पता चलता है कि रुकना कब है? मुझे बड़ा अचम्भा हुआ, वो तो मेरी ही तरह कंफ्यूज निकली। उसके मुताबिक़, जब वो दोनों थक जाते हैं या बहुत हो जाता है, तो वो रुक जाते हैं यानी वो धमाकेदार ओर्गाज़्म इनको भी अभी तक नसीब नहीं हुआ था।
गूगल ने पहले मुझे मेरी राह से भटका दिया था, पर अब गूगल स्कॉलर ने हमारी तरफ नए एंगल पर बॉल मारी। एक सेक्सुअलिटी की मैन्युअल में, एक गूगल स्कॉलर से हमारी मुलाकात हुई। उसके अनुसार, ऐसी बहुत सारी महिलाएं होती हैं, जो बिना ओर्गाज़्म के ही अपना सारा जीवन बिता देती हैं। उस मैन्युअल के अनुसार, यह कोई बड़ी बात नहीं थी, पर इस नई खोज ने हमें सोच में डाल दिया शायद हम एनोर्गाज़मिक (ऐसा कोई जिसे उत्तेजित किए जाने के बावजूद, उसे उन्माद ना हो) हैं?
लगभग इसी दौरान, मुझे मेरा बॉयफ्रेंड मिला। हम मेक आउट करते और मज़ा भी आता था, पर मुझे कुछ खास दिलचस्पी नहीं थी, जब भी मेरे हाथ उसको ओर्गाज़्म तक पहुंचाते थे, मुझे बड़ी उत्सुकता और जलन होती थी। जो हाल उसके तन-बदन में होता है, वैसे ही मेरे शरीर में भी क्यों नहीं होता? उसने अपनी तरफ से काफी मेहनत की। वो बड़े इत्मिनान से मेरे चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश करता।
मैं कभी-कभी झूठ-मूठ की एक्टिंग करती थी, ताकि उसे यह ना लगे कि मैं उसे उतना नहीं पसंद करती थी, जितना वो मुझे। मुझे बेशक मज़ा आ रहा था पर मुझे वो उन्माद नहीं मिल रहा था, जो मुझे उसके चेहरे पर दिख रहा था, कि उसे मिल रहा है। मुझे उस परफेक्ट पल की खोज थी। मैं देख रही थी कि क्या उसके टच में वो जादू है, जो मेरे खुद के टच में नहीं है।
हमने ऐसी कई मस्ती वाली रोमांटिक कहानियां सुनी हैं, जिसमें बताया जाता है कि कहीं से एक सपनों का राजकुमार आएगा, जो हमारे अन्दर की आग को जगाएगा भी, बुझाएगा भी, पर सच बोलूं, तो मुझे खुद को छूना ज़्यादा पसंद आता था और इस तरह की सोच रखने वाली मैं अकेली लड़की नहीं थी। मेरी कई दोस्त भी खुद के बारे में ऐसा ही फील करती थीं।
कुछ महीनों बाद, हमारा ब्रेक अप हो गया। मैं आगे की पढ़ाई करने दूसरे शहर के कॉलेज जा रही थी, तो मैंने ब्रेकअप का यही कारण बताया था, पर असल में, मेरा मन उस रिलेशनशिप से उठ चुका था। ब्रेकअप से पहले ही मैंने उसके नज़दीक जाना बंद कर दिया था। ब्रेकअप की बात मैंने अपने दोस्तों को भी नहीं बताई, पता नहीं क्यों? मुझे उनको नहीं बताना था।
ऐसा नहीं था कि वो मुझे कुछ बुरा भला कहतीं या करती, पर मुझे खुद ही नहीं मालूम था कि जो मैं महसूस कर रही थी, उन्हें कैसे समझाऊं? वैसे, तो मैं ठीक थी, पर कुछ तो था, जो मेरे अन्दर खटक रहा था और उसके बारे में मुझे सोचना था और सोचने के बाद ही बात करनी थी। मुझे अपने दोस्तों की हमदर्दी नहीं चाहिए थी और ना ही मुझे दिखावा करना था कि मेरी लाइफ एकदम सेट है, तो मैं ब्रेकअप की बात दिल में छुपाए, कॉलेज को चली गई।
अब तक मुझे यकीन हो गया था कि या तो मैं एसेक्सुअल हूं (यानी जिसे सेक्स में रुचि ना हो, भले रोमांस में हो सकती है) या ये ओर्गाज़्म सिर्फ कहानियों में ही होता है। मेरी बेस्ट फ्रेंड एस भी इस बात पर राजी थी। हमने सोचा कि हो सकता है कि हमारी बाकी दोस्त भी सिर्फ दिखावा करती हैं और असल में उन्होंने ऐसा कुछ ओर्गाज़्म जैसा कुछ महसूस ही नहीं किया होगा।
कॉलेज में भी मुझे बेहतरीन दोस्त मिल गए थे और थोड़ी नशे से झूमती हुई रात में, अपने हॉस्टल के कमरे की सुकून में, मैंने अपने चार कॉलेज बेस्ट फ्रेंड्स के सामने, ओर्गाज़्म का पिटारा खोल दिया। हम सब इसलिए इकट्ठा हुए थे, क्योंकि वी ने सेक्स के मैदान में अपनी पारी की शुरुआत की थी यानी वो हमारे लिए सारे राज खोलने वाली सच की आवाज़ से कम नहीं थी।
पर वो असली बात करती थी,नो बकवास। उसने बताया कि उसे मज़ा, तो काफी आया, पर उसके और उसके पार्टनर के लिए यह पहली बार था। इसीलिए वो कह नहीं सकती कि उन्होंने सही तरीके से सेक्स किया था या नहीं, आर और एन ने उसकी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, कि यह बहुत कॉमन चीज़ है। उनके जिन दोस्तों ने सेक्स किया था, उनके अनुसार सेक्स का स्वाद धीरे-धीरे चढ़ता है, बिल्कुल बियर की तरह और बियर की तरह ही, पहली बार उतना अच्छा नहीं लगता है।
मैंने थोड़ा संकोच कर के पूछा, “तो फिर ये तो हस्तमैथुन जैसा ही हुआ ना?”
“क्या मतलब?”
“मतलब, मुझे नहीं लगता कि मुझे कभी असली ओर्गाज़्म हुआ है। मुझे बस इतना पता है कि जब होगा, तो मुझे पता लग जाएगा पर मुझे यकीन है कि मुझे कभी ओर्गाज़्म नहीं हुआ है।”
यह कोई ब्रेकिंग न्यूज़ नहीं थी। मेरी दो दूसरी दोस्तों ने भी इसके समर्थन में हामी में गर्दन हिला दी।
“रगड़ते जाओ, रगड़ते जाओ, पर कुछ होता ही नहीं है। ”
यह सुनकर, बिना किसी कण्ट्रोल के, हम सब की हंसी निकल गई।
इस हंसी के ठहाके के बाद, जब माहौल थोड़ा शांत हुआ, तो सेक्स से नई-नई पहचान बनाकर आई हमारी सेक्स गुरु ने कहा, कि उसके साथ भी ऐसा हुआ है और ओर्गाज़्म को इतना भाव देने की ज़रूरत नहीं है।
उसने कहा कि कई सालों तक वो सोचती रही कि उसको ओर्गाज़्म होते थे क्या? और हाल ही में उसे ये समझ में आया कि जो वो फील कर रही थी, उसे ही ओर्गाज़्म कहते हैं। जो अच्छा लगे, बस वो करो, ज़्यादा साइंटिस्ट बनने की ज़रूरत नहीं है।
उसकी यह बात मेरे दिल में बैठ गई और मैं सोचने लगी, वाकई, इस पर मैं इतना रिसर्च क्यों करती रहती हूं? उस रात के बाद, काफी समय तक हमारे बीच ओर्गाज़्म का ज़िक्र ही नहीं हुआ। छ: महीने बाद, गर्मियों की छुट्टी के खत्म होने पर, हम पांच सब वापस एक रात सी के कमरे में मिले, एक सस्ती मैजिक मोमेंट्स की बोतल के साथ।
हम सब बैठे हुए थे और मेरे मुंह से अचानक से निकला, वी, तू सही थी।
“तो इसमें कोई अच्चम्भा नहीं, पर किस बारे में?”
मैंने बत्तीसी दिखाते हुए कहा, “रगड़ो रगड़ो। कुछ-कुछ हो रहा है।”
आखिरकार, बिना कोई मैन्युअल पढ़े, हस्तमैथुन के रिकॉर्ड को नज़रंदाज़ करते हुए, मैंने वो पल महसूस कर ही लिया। मैंने वो किया जो मुझे अच्छा लगा। बाकी सब भूल कर, मैं बस उस पल में फ्लो के साथ गई और फिर जादू हुआ और मुझे कुछ-कुछ हुआ!!
मैं बाद में यह समझी कि यह, तो पहले भी मेरे साथ हो चुका है बस तब यह नहीं समझ पाई थी कि ये मेरा ओर्गाज़्म है। मुझे पहले इसका एहसास इसलिए नहीं हुआ, क्योंकि मेरे दिमाग में ओर्गाज़्म कैसे होता है? नाम की अलग ही फिल्म चालू थी, जो मैंने अपने आस-पास की दुनिया से देख-सुनकर बनाई थी।
ओर्गाज़्म क्या होता है? उस सारे शोर को भूल के, अपने बदन की आवाज़ सुनके ही मैं अपने ओर्गाज़्म को समझ पाई। इस बात की चिंता छोड़कर कि क्या मेरी बॉडी वो सब कर रही है जो उसे ओर्गाज़्म में करना चाहिए? जब कोई टच करता है, तो मेरे शरीर में क्या-क्या होता है? उस पर ध्यान दो ना कि इस पर कि क्या जो मैंने पढ़ा सुना है, ये उसके मुताबिक है कि नहीं, काफी समय लगा मुझे मेरे शरीर को समझाने में, कि खुद की सुनो ! जब मैंने अपने शरीर की सुनी, तो जादू की बंद मुट्ठी खुल गई।
जब भी उस समय के बारे में सोचती हूँ, तो मुझे अभी भी कंफ्यूज़न होता है। क्या मेरे बदन ने जवानी की पहली अंगड़ाई 13-14 साल की उम्र में ना लेकर, 18-19 की उम्र में ली थी?
हैरी पॉटर पढ़ी है ? उसमें एक किरदार है, हरमाईनी ग्रेंजर। वो उस हॉगवर्ट स्कूल की चुनौतियों से जूझने के लिए बड़ा सारा रिसर्च करती रहती थी। उसपे बहुत (बहुत ज़्यादा) बतियाती रहती थी। मुझे लगा मैंने भी ओर्गाज़्म के मामले में कुछ ऐसा ही किया था। अब तक की पूरी ज़िन्दगी ओर्गाज़्म के बारे में जानने में निकल गई।
ज्ञान ताकत हो सकता है पर ज़िंदगी के मज़े लेने के लिए, क्या केवल ज्ञानी होना काफी होता है? अपने मन में झांकना भी ज़रूरी होता है, अपने को समझना ज़रूरी है और इसके लिए थोड़ा एकांत चाहिए, थोड़ी चुप्पी चाहिए।
मेरा पहला असली वाला ओर्गाज़्म तब हुआ था, जब मैं अपने रूम में अकेली थी। ना ही कोई दोस्त थे और ना ही कोई डिस्टर्ब करने वाले विचार थे और इसमें अकेलेपन ने मेरी काफी मदद की। मैं किसी बाहरी संकेत का इंतज़ार नहीं कर रही थी और ना ही किसी दोस्त की सलाह, ना ही मेरे दिमाग में बनी हुई ओर्गाज़्म सूचक लिस्ट थी। मैंने बस खुद की और अपने शरीर की सुनी।
उस पल से मेरे लिए ओर्गाज़्म का आनंद पहले से थोड़ा और अन्तरंग हो गया था। मुझे समझ में आया कि कुछ एक्सपीरियंस को लोगों से उसी समय बांटना ज़रूरी नहीं है। उससे वो एक्सपीरियंस समझ के और बाहर हो सकते हैं। उनके साथ खुद वक्त बिताना पड़ता है, उन्हें समझने के लिए।
पहले खुद समझो, फिर अपने करीबियों से शेयर करो। मैं जानती हूं, मैंने अपने पहले ब्रेकअप के बारे में किसी को नहीं बताया था। उसे बताने के लिए मेरे पास सही शब्द नहीं थे और मैं नहीं चाहती थी कि मेरी कहानी मेरे दोस्तों के तजुर्बों के रंग में रंग दी जाए। वो मेरे को जिस नज़र से देखते थे, मैं नहीं चाहती थी कि वो उस नज़र से ही कहानी को समझें और मुझे समझाएं।
दर्द बांटने से सुकून मिलता है, पर कभी-कभी जब भी मैं अपने दिल की बात शेयर करती हूं, मेरा तजुर्बा अपनी असलियत खोने लगता है। किसी और का नज़रिया उस पर हावी होने लगता है। यह शायद इसलिए होता है कि हम हमेशा चाहते हैं कि सब कुछ साफ-साफ बयान हो, हम अपनी कहानी यूं सुनाएं कि लगे कि हम कण्ट्रोल में हैं।
जो बातें सबसे ज़्यादा सुख देती हैं, वही सबसे इमोशनल भी होती हैं। उनको वैसे ही रहने देना चाहिए। इन बातों की असलियत को बनाए रखना चाहिए, उन्हें किसी और की सोच के ढांचे में फिट नहीं करना चाहिए। वो बातें, मेरी सच्चाई है, जो सिर्फ मैं ही समझ सकती हूं।
मुझे अभी भी अपने दोस्तों के साथ बात करना और शेयर करना, अच्छा लगता है। सेक्स में क्या पसंद-नापसंद से लेकर, मज़ेदार हादसों तक, हम सब डिस्कस करते हैं। अपने पार्टनर्स के बारे में डिटेल डिस्कस करते हैं पर मैं कुछ बातें, जानबूझकर नहीं बताती हूं। मेरी बात का वो हिस्सा, सिर्फ मेरा है। वो एहसास, जो मेरे दिल से जुड़ जाता है, वो बातें जो मुझे गहराईयों तक छू जाती हैं।
जो मैं किसी और के साथ शेयर नहीं करूंगी। मानती हूं कि आज़ादी का एक लक्षण है, बेधड़क खुल कर सब कुछ कह पाना पर अगर हम किसी (की) सोच पर खरे उतरने के लिए खुलासा कर रहे हैं, तो ये असली आज़ादी नहीं है। क्या और कितना बोलना है? उसका ख्याल रखना भी एक आज़ादी है। कभी-कभी हम कुछ बातों के बारे में बात नहीं करते, क्योंकि उनके तार हमारे दिल के अन्दर तक जुड़े होते हैं, जिनकी नुमाइश नहीं की जा सकती है। टूटने का खतरा रहता है, अपने बारे में इस तरह की जानकारी होने का मज़ा ही अलग है।
मुझे क्या-क्या मज़ा देता है? खुद के शरीर को इस तरह जान लेना, जैसा और कोई ना जान पाए! या अपने इमोशंस और अनुभवों को खुद पहचानना ना कि दोस्तों की सलाह का इंतज़ार करना। इन सबने मुझे एक अनकही-अनसुनी जगह पर ला दिया है।
हां, लेकिन अपनी निराशाओं के बारे में बतियाने से, बहुत मदद भी मिलती है। अगर नहीं मिलती तो, रुक्मणि रुक्मणि, वहां रगड़ा, पर कुछ न हुआ वाला जोक कैसे बनता। अब जाकर पता चला कि जब लग रहा था, कुछ नहीं हो रहा, तब भी वहां कुछ-कुछ हो रहा था, यार।
ओर्गाज़्म की तलाश करती हरमाईनी तेईस साल की लड़की है, जिसे बुक्स, फिल्में, सड़े जोक्स और घुटने पर लगने वाले कास्ट बहुत पसंद हैं। उन्हें चाय की प्याली या कॉफी के मग या कभी -कभी दोनों के साथ पाया जा सकता है।
लेख – ओर्गास्मिंग हरमाईनी द्वारा
चित्रण – शिखा श्रीनिवास द्वारा
अनुवाद – प्राचिर कुमार