शिक्षा, वो धन है जिसे पा लेने के पश्चात कोई भी व्यक्ति आपसे उसे छीन नहीं सकता। यदि कोई व्यक्ति अच्छी शिक्षा प्राप्त कर ले, तो वह अपने जीवन में किसी भी लक्ष्य को आसानी से हासिल कर सकता है। कहा जाता है कि ज्ञान को जितना ज़्यादा बांटा जाए, वो उतना ही बढ़ता है। अच्छी शिक्षा पाना हर इंसान का सपना होता है और हर माँ-बाप अपने बच्चे को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए पूरी कोशिश करते हैं।
आज के समय शिक्षा का बाज़ार बहुत बड़ा है। बड़े-बड़े विद्यालयों एवं कॉलेजों में बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के नाम पर उनके माँ-बाप से फीस के नाम पर अच्छी-खासी रकम वसूली जाती है, परन्तु इसके बावजूद देश के अधिकतर स्कूलों के बच्चे स्कूल में पढ़ने के साथ-साथ अलग से कोचिंग भी लेते हैं, ताकि जो चीज़े उन्हें स्कूल के शिक्षक नहीं समझाते या वे वहां नहीं समझ पाते हैं, वो चीज़े वे कोचिंग में जाकर सीख सकें।
हमारी शिक्षा प्रणाली की गिरती गुणवत्ता के कारण कोचिंगों का बढ़ता दायरा
हर माँ-बाप अपने बच्चे को आज के समय में स्कूल के साथ-साथ अलग से कोचिंग के लिए भी भेजते हैं, ताकि उसकी शिक्षा में कोई कमी ना रह जाए, आजकल यह धारणा बन गई है कि कोचिंग भेजना ही अच्छी शिक्षा प्राप्त करने का एक मात्र उपाय है।
परन्तु क्या बच्चों के लिए अलग से कोचिंग लेना आवश्यक है? वे माँ-बाप अपने बच्चों को कोचिंग कैसे दिलवाएं, जो उन्हें स्कूल में पढ़ने के लिए भी बड़ी मुश्किल से ही भेज पाते हैं? क्या उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं है? क्या कोचिंग सिर्फ उन्ही बच्चों के लिए हैं, जिनके माँ-बाप उन कोचिंग संस्थानों की मोटी फीस भर सकते हैं? सरकार इस समस्या को ले कर कितनी गंभीर है और वो इस दिशा में क्या कदम उठा रही है? आइए ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं।
असल में कोचिंग वाली मानसिकता वहां से शुरू होती है, जहां से विद्यार्थी के मन में प्रतियोगिता में पिछड़ जाने का डर शरू होता है। स्कूलों में जब शिक्षक परीक्षा में पास होने जितना ही पढ़ाते हैं, तब ये प्राइवेट कोचिंग वाले इश्तेहारों(विज्ञापनों) के ज़रिये बच्चों को कोचिंग की माया का ज्ञान देते हैं।
वे किस तरह उन्हें अपने स्कूल व कॉलेज में टॉप करने लायक अधिक से अधिक अंक दिलवाने में उनकी मदद करेंगे और इसी मायाजाल के कारण आज कोचिंग संस्थानों का कारोबार पूरे देश में फैल चुका है।
कोचिंग संस्थानों की भारी-भरकम फीस के बोझ से आम आदमी त्रस्त है
दिल्ली जैसे शहर में यू.पी.एस.सी की कोचिंग लेने के लिए ओल्ड राजेंद्र नगर और मुखर्जी नगर जैसे इलाके प्रसिद्ध हैं, तो चार्टेड अकाउंटेंट की कोचिंग के लिए लक्ष्मी नगर का इलाका काफी मशहूर है। स्कूल के बच्चों के लिए, तो आज के समय में हर गली-गली में प्राइवेट कोचिंग चल रहे हैं, जहां हर कोचिंग संस्थान की अलग-अलग फीस है और वहां पढ़ाने वाले शिक्षकों के अलग-अलग रेट। हालांकि, सबका मकसद एक ही है कि यहां आए बच्चों को अधिक बुद्धिमान बनाना है।
कोचिंग लेने वाले बच्चों का कहना है कि अच्छे रिजल्ट के लिए सेल्फ स्टडी करना काफी नहीं है, कई ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब उन्हें कोचिंग में आने के बाद ही मिल पाते हैं। बच्चों का कहना है कि सरकार द्वारा चल रहे कोचिंग सेंटर्स का मैनेजमेंट अच्छा नहीं है। सरकारी शिक्षकों को कोई फर्क नहीं पड़ता कि बच्चा क्या सीख रहा है और क्या नहीं?
बच्चे कहते हैं कि किताबों की भाषा कठिन होने के कारण भी उन्हें उसे आसानी से समझने के लिए कोचिंग का रुख करना पड़ता है। बच्चे चाहते हैं कि सरकार इस समस्या का कोई समाधान निकाले, क्योंकि हर माँ-बाप अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा देना तो चाहते हैं, परन्तु उनके पास उतने पैसे नहीं है कि वे इन कोचिंग संस्थानों की भारी- भरकम मोटी फीस भर सकें।
हालांकि, कोई भी माँ-बाप अपने बच्चे को प्रतियोगिता में पिछडा हुआ नहीं देखना चाहते। इसी वजह से कोचिंग संस्थानों के दावों के फेर में फंसते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि भले ही कोचिंग में कितने भी बच्चे पढ़ते हों, परन्तु ऐसा नहीं है कि हर बच्चा टॉप करता है फिर भी बच्चों का मानना है कि अच्छे शिक्षक स्कूलों और कॉलेजों में नहीं, बल्कि कोचिंग संस्थानों में होते हैं।
बच्चों एवं उनके माता-पिता की एक सोच यह भी है कि स्कूल एवं कॉलेज में पढ़ाने वाले शिक्षकों को तनख्वाह मिलती है, चाहे वो कैसे भी और कितने भी दिन पढ़ाएं और उन पर परीक्षा पास कराने की कोई बंदिश नहीं होती है, लेकिन कोचिंग संस्थानों के टीचर्स के ऊपर वहां पढ़ रहे सभी बच्चों की परीक्षा पास कराने की ज़िम्मेदारी होती है और इसी बात के लिए वे इतनी फीस चार्ज करते हैं और इन्ही सब कारणों से आज पूरे विश्व में कोचिंग का कारोबार इतना बढ़ा है।