कोरोना महामारी का संक्रमण भले ही देश में कम होता नज़र आ रहा है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इसका प्रसार अपेक्षाकृत बढ़ा है। यह अलग बात है कि शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में आंकड़ों को इकठ्ठा करना मुश्किल है, इसलिए इन क्षेत्रों में किसी भी प्रकार के सटीक आंकड़ों को जमा करना मुश्किल है।
लेकिन, इस बात से इंकार करना कि ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना नहीं बढ़ा है, किसी भी प्रकार की जल्दबाज़ी होगी। दिल्ली समेत मुंबई और पुणे जैसे महानगरों में भी कोरोना का संक्रमण कम होता दिखाई दे रहा है, लेकिन महाराष्ट्र के गाँवों में इसका प्रसार तेज़ी से बढ़ा है।
ऐसी स्थिति में आमतौर पर ग्राम-पंचायतों के सरपंच कोरोना संक्रमण को रोकने और कोरोना संक्रमित मरीज़ों के उपचार की ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं। दूसरी तरफ, राज्य में ऐसे कई गाँव हैं, जहां सरपंच नियुक्त नहीं होने के कारण कोरोना के खिलाफ लड़ाई में ग्राम-स्तर पर उचित निर्णय लेने में परेशानियां आ रही हैं।
उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र राज्य के पश्चिम में सोलापुर ज़िले की हम बात करें, तो यहां ऐसी 15 ग्राम पंचायतें हैं, जहां सरपंच ना होने से कोरोना महामारी से निपटना मुश्किल होता जा रहा है। आपको बता दें कि सोलापुर ज़िले में करीब साढ़े छह सौ ग्राम-पंचायतों के लिए इसी वर्ष 16 जनवरी को मतदान हुआ और 18 जनवरी को चुनाव परिणाम आया था।
इस चुनाव में कई ग्राम-पंचायतों में सरपंच के पद आरक्षित थे, लेकिन सोलापुर ज़िले में 15 पंचायतें हैं, जहां आरक्षित समुदाय की ओर से किसी भी सदस्य के द्वारा सरपंच पद के लिए चुनाव नहीं लड़ा गया था। लिहाजा इन ग्राम-पंचायतों में सरपंचों के पद खाली हैं। ऐसी स्थिति में ज़िला प्रशासन की ज़िम्मेदारी होती है कि वह एक महीने की समय-सीमा में दोबारा चुनाव कराए और ग्राम-पंचायतों का गठन सुनिश्चित करे।
गाँवों में कोरोना के संक्रमण को रोकने में नाकाम ज़िला प्रशासन
लेकिन, कोरोना के कारण पिछले छह महीने का समय गुज़र जाने के बावजूद ज़िला-प्रशासन द्वारा ऐसे ग्राम-पंचायतों में सरपंच पदों के लिए चुनाव नहीं कराए जा सके हैं। ऐसे में इस आपदाकाल में यह स्थिति बनी हुई है कि इन गाँवों के लोगों को बिना सरपंच के कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ना मुश्किल हो रहा है।
इस साल जनवरी के बाद कोरोना की दूसरी लहर के प्रकोप में फरवरी, मार्च, अप्रैल और मई महीनों के दौरान सोलापुर ज़िले के गाँव-गाँव में कोरोना संक्रमण के मरीज़ों की संख्या दिनों-दिन तेज़ी से बढ़ती गई। इसके लिए राज्य सरकार ने कोरोना संक्रमण पर नियंत्रण के उद्देश्य से पूरे राज्य में सख्त पाबंदियां घोषित की। इन पाबंदियों का पालन ज़िला प्रशासन ग्रामीण स्तर पर ज़िले के सरपंचों के सहयोग से कराता है।
लेकिन, जिन गाँवों में सरपंच नहीं हैं, वहां संस्थागत नेतृत्व के अभाव में ज़िले के 15 गाँवों में कोरोना प्रोटोकॉल से लेकर उपचार तक की समस्याओं में बाधा आई है, जिसका वहां के ग्रामीण क्षेत्रों में काफी नकारात्मक प्रभाव देखने को मिला है। एक तरफ जहां लॉकडाउन को सफल बनाने और लोगों को जागरूक करने की नीतियां तैयार करने और उन्हें क्रियान्वित कराने में बाधा आई, वहीं ग्रामीण स्तर पर लोगों को समय पर उपचार व्यवस्था उपलब्ध कराने में भी समस्या उत्पन्न हुई। यही कारण है कि जिन पंचायतों में सरपंच नियुक्त हैं, वहां अपेक्षाकृत कोरोना प्रोटोकॉल लागू करने में ज़्यादा आसानी देखी गई।
सोलापुर ज़िले के जिन 15 गाँवों में बिना सरपंचों के कोरोना से लड़ाई मुश्किल हो रही है, उनमें सबसे ज़्यादा संगोला तहसील के सात गाँव आगलावेवाडी, बुरंगेवाडी, बोपसेवाडी, खिलारवाडी, निजामपुर, हनमंतगांव, तरंगेवाडी हैं।
इसके बाद बार्शी तहसील में जहानपुरा, उत्तर सोलापुर तहसील में खेड, मोहोल तहसील में बोपले और शेंडगेवाडी और मंगलवेढा तहसील में गणेशवाडी, दक्षिण सोलापुर तहसील में राजूर और टाकली और मालशिरस तहसील में येलीव ग्राम-पंचायत शामिल हैं।
इस बारे में सोलापुर के सरपंच मिलिंद शंभरकर कहते हैं कि बिना सरपंचों की ग्राम-पंचायतों से जुड़ी फाइलें मेरे पास हैं, लेकिन कोरोना से जुड़े नियमों को बहाल करने के कारण अभी चुनाव की प्रक्रिया कराना व्यावहारिक नहीं है। संक्रमण का यह दौर गुज़रे, तो सरपंचों के निर्वाचन के बारे में निश्चित ही विचार किया जाएगा। ऐसे समय में उनकी कमी हमारे लिए भी अड़चन पैदा कर रही है।
महाराष्ट्र का सोलापुर ज़िला देश में कोरोना संवदेनशील ज़िलों में से एक है
कोरोना संक्रमण के मामले में सोलापुर ज़िला ना सिर्फ महाराष्ट्र, बल्कि पूरे देश भर के संवेदनशील ज़िलों में शामिल है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, सोलापुर ज़िले में बीस हज़ार से ज़्यादा सक्रिय संक्रमित मरीज़ हैं, जबकि यहां अब तक डेढ़ लाख से अधिक लोग कोरोना संक्रमण का शिकार बन चुके हैं।
इनमें एक बड़ी संख्या ग्रामीणों की है, जहां तक कोरोना के कारण होने वाली मौतों का मामला है, तो सोलापुर में साढ़े तीन हज़ार से अधिक कोरोना के मरीज़ दम तोड़ चुके हैं, जो एक गहन चिंता का विषय है।
सोलापुर ज़िले में संगोला के रहने वाले मिलिंद कोली बताते हैं कि सरपंच होते तब भी गाँवों में कोरोना का संक्रमण होता, लेकिन सरपंच के होने पर इसी संक्रमण के रोकथाम के प्रयास भी युद्धस्तर पर संभव होते। गाँवों में कोरोना जांच के लिए प्रयास तेज़ किए जाते और ग्रामीण मरीज़ों का अच्छी तरह से उपचार करने में मदद मिलती।
वह कहते हैं कि सरपंच के नहीं होने से गाँव में ना टेस्टिंग, ना उपचार और ना ही निगरानी की कोई सटीक व्यवस्था है। सरपंच होते, तो कोरोना से जुड़ी गलत जानकारियों और अंध-श्रद्धा के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने में मदद मिलती, रोज़गार के साधन जुटाए जाते और लोगों के लिए भोजन उपलब्ध कराने की व्यवस्था संभव होता।अभी तो दवाइयों के लिए ही बड़े कस्बों में जाना पड़ रहा है। सरपंच होता, तो उससे कहते कि दवाइयां, ऑक्सीमीटर और थर्मामीटर खरीदो।
ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना की जांच के लिए सरकार की कोई सफल नीति नहीं है
पंढरपुर में मेडिकल स्टोर संचालक संदीप बेलवलकर बताते हैं कि गाँव-गाँव में सर्दी, जुकाम, खांसी और बुखार के मरीज़ बढ़ रहे हैं। आम दिनों की तुलना में उनके स्टोर पर रोज़ कई गुना मरीज़ आ रहे हैं। ग्रामीणों की जांच नहीं हो रही है, इसलिए उन्हें भी नहीं पता होता है कि उन्हें कोरोना है या नहीं?
ऐसे समय में ही, तो सरपंच की ज़रूरत पड़ती है, क्योंकि वह ग्राम-पंचायत से जुड़े बड़े निर्णय ले सकता है। यदि सरपंच होते, तो वह ज़िला प्रशासन के साथ अच्छी तरह से समन्वय कर पाते और जिससे गाँवों को फायदा होता। वह कहते हैं कि घर-घर में लोग बीमार हैं। एक ही परिवार के कई सदस्य मर चुके हैं, लेकिन मालूम नहीं चल रहा है कि ये मौतें सरकारी रिकार्ड में आ रही हैं या नहीं?
बहरहाल, सोलापुर ज़िले के 15 ग्राम-पंचायतों में सरपंच निर्वाचित नहीं होने से कोविड-19 से जुड़े मरीज़ों की जांच, निगरानी और उपचार में जिस प्रकार से बाधाएं आ रही हैं, वह चिंताजनक हैं, जिसकी तरफ राज्य सरकार को गंभीरता से ध्यान देने की ज़रूरत है।
वैज्ञानिकों ने जिस प्रकार से कोरोना की तीसरी लहर की आशंका जताई है, ऐसे में शहरों से लेकर गाँवों तक पुख्ता तैयारी की ज़रूरत है लेकिन हर सिस्टम की एक प्रक्रिया होती है, एक चेन सिस्टम होता है, जिसके बिना प्रक्रिया को पूरा करना संभव नहीं है। सरपंच भी प्रशासनिक प्रक्रिया की इसी चेन का एक हिस्सा है, जिसकी नियुक्ति के बिना गाँवों को कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर से बचाना संभव नहीं हो सकता है।
नोट- यह आलेख सोलापुर, महाराष्ट्र से शिरीष खरे ने चरखा फीचर के लिए लिखा है।