भारतीय समाज में महिलाओं की आज़ादी और सशक्तिकरण की बात पर भले ही कुछ वर्ग आज भी प्रश्न चिन्ह लगा रहे हों मगर बदलते वक्त के साथ अब महिलाओं ने इसे अपने अंदाज में नज़रअंदाज करना शुरू कर दिया है यानी घर की चौखट के बाहर की दुनिया में भी ग्रामीण महिलाएं उन्नति की सीढ़ियां चढ़ती नज़र आ रही हैं।
आर्थिक विकास में मददगार बनती घरेलू महिलाएं
वे केवल खेती किसानी में ही नहीं, बल्कि बैंकिंग कार्य में भी अपना जौहर दिखा रही हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात, तो यह है कि महिलाएं घर और बाहर दोहरी ज़िम्मेदारियों को एक साथ निभाते हुए सशक्तिकरण और आर्थिक विकास के लिए काम कर रही हैं।
कोरोना महामारी के इस दौर में जब पूरा देश संकट से गुज़र रहा है, लोग घरों से बाहर निकलने से परहेज़ कर रहे हैं, तब ऐसे समय में छत्तीसगढ़ के कांकेर ज़िले के दूर, अंचल गाँवों में महिलाएं बैंक सखियां बन कर अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए ग्रामीणों के लिए मददगार साबित हो रही हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन बिहान
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न शासकीय योजनाओं के हितग्राहियों को भुगतान में होने वाली समस्याओं के निराकरण करने एवं बैंकिंग प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन बिहान द्वारा बीसी सखी माॅडल पर कार्य किया जा रहा है।
राज्य में इसकी टैग लाइन ‘‘बीसी सखी-आपका बैंक, आपके द्वार’’ रखी गई है। ये सखियां वृद्धा पेंशन, विधवा पेंशन, सामाजिक सुरक्षा पेंशन, मनरेगा के तहत मज़दूरी भुगतान और स्व-सहायता समूहों का मानदेय संबंधी अन्य विभिन्न बैकिंग सुविधाएं प्रदान करने का कार्य कर रही हैं।
बैंक सखियां ग्रामीणों के लिए वरदान की तरह
कांकेर ज़िले में आज भी ऐसे पहुंच विहीन दूरस्थ क्षेत्र हैं, जहां ग्रामीणों को बैंक संबंधी छोटे-बड़े कार्य के लिए अक्सर काफी मशक्कत के बाद मुख्यालयों तक आना पड़ता है। इस परिस्थिति में बैंक सखी योजना ग्रामीणों के लिए वरदान साबित हो रही है।
बैंक सखी के लिए ग्रामीण क्षेत्रों की न्यूनतम दसवीं पास महिलाओं का चयन किया जाता है, जिन्हें कम्प्यूटर, लैपटॉप व बैंक संबंधी सामान्य जानकारी से प्रशिक्षित कर, उन्हें बैंकों द्वारा एक निश्चित राशि उपलब्ध कराई जाती है, इसके बाद पीओएस (पैसे लेन-देन की मशीन) के माध्यम से आधार कार्ड के द्वारा बैंक सखी से लोग अपने सामान्य आर्थिक ज़रूरत की राशि त्वरित रूप से प्राप्त कर सकते हैं।
लॉकडाउन में 40 करोड़ से ज़्यादा का लेनदेन इनके हाथ
ग्रामीण क्षेत्र में यह योजना ऐसी महिलाओं के लिए लाभदायक सिद्ध हो रही है, जो शैक्षणिक योग्यता हासिल करने के बाद भी सिर्फ घर-गृहस्थी में ही व्यस्त रहती थीं या फिर खेती-किसानी करके परिवार का हाथ बटा रहीं थीं।
यही वजह है कि एक वित्तीय वर्ष 2020-21 में लाॅकडाउन की समस्या होने के बावजूद केवल कांकेर ज़िले की 113 बैंक सखियों ने मिलकर लगभग 40 करोड़ रुपये का लेनदेन किया है। यह ना केवल उनके लिए, बल्कि ज़िले की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए भी सराहनीय है। इस प्रकार गाँव की इन महिलाओं को बैंक सखी ने एक नई पहचान देने में मदद की है।
बैंक सखी! घरेलू महिलाओं का पैसा और पहचान भी
ज़िले के नरहरपुर ब्लाक स्थित ग्राम मुरूमतरा व आसपास के अन्य गाँवों में ग्रामीण बैंक से जुड़कर बैंक सखी का कार्य कर रही सरिता कटेन्द्र ने बताया कि वह दसवीं पास हैं। वो कहती हैं कि वे पहले केवल सिलाई का कार्य करती थीं, जिससे बहुत कम आय होती थी।
लेकिन, स्व-सहायता समूह से जुडे़ होने के कारण बैंक सखी के रूप में कार्य करने का मौका मिला है। वर्तमान में महीने के आठ से दस हज़ार रुपये की आमदनी हो जाती है। उन्होंने बताया कि घर-परिवार की देखभाल के साथ-साथ करने के लिए यह बहुत अच्छा कार्य है, इसमें सम्मान भी बहुत मिलता है। गाँव में जाने पर लोग मुझे बैंक वाली मैडम कहते हैं।
इसी तरह नरहरपुर ब्लॉक के ही ग्राम मांडाभरी में कार्य कर रही पूनम जैन कहती हैं कि मुझे शुरू से ही बैंक से संबंधित कार्य करने में रूचि थी, हमेशा सोचती थी कि आगे चलकर बैंक में नौकरी मिल जाए, तो अच्छा होगा लेकिन पारिवारिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण कुछ नहीं कर पा रही थी।
उन्होंने बताया कि स्व-सहायता समूह के ज़रिये मई 2020 से बैंक सखी के रूप में कार्य कर रही हूं, तब से लेकर अब तक मैं करीब 30 लाख से ज़्यादा राशि का लेनदेन कर चुकी हूं। प्रत्येक लेनदेन पर हमें कमीशन दिया जाता है, इसमें आठ से दस हज़ार तक मेरी आमदनी हो जाती है।
पेंशन से लेकर मनरेगा राशि तक सब घर-घर पहुंचा रही हैं बैंक सखी
भानुप्रतापपुर ब्लॉक के डुमरकोट गाँव की बैंक सखी नमिता ध्रुव कहती हैं कि लॉकडाउन के समय जब कामकाज बंद था और लोगों के पास पैसे नहीं थे, तब हमें फोन करके बुलाया जाता था।
हम कई किलोमीटर दूर उनके घरों तक जाकर पेंशन की राशि, मनरेगा मज़दूरी भुगतान के साथ ही लॉकडाउन में मिलने वाली प्रोत्साहन राशि पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि वह भानुप्रतापपुर क्षेत्र के डुमरकोट, भैंसाकन्हार, नरसिंहपुर गाँव में कार्य करती हैं और रोजाना करीब 30 से 40 हज़ार रुपये का लेनदेन उनके माध्यम से हो जाता है।
गाँव से दूरस्थ बैंक अब लोगों के घर-घर ही
क्षेत्र के अन्य गाँव बांसला एवं जुनवानी की बैंक सखी दीपिका भुआर्य ने बताया कि मैं अपने काॅलेज की पढ़ाई के साथ-साथ यह कार्य कर रही हूं। इससे मेरी आर्थिक स्थिति भी सुधरी है। यहां से मिलने वाले पैसों का उपयोग अपने पढ़ाई में खर्च करने के साथ परिवार का भी आर्थिक सहयोग कर लेती हूं।
वह कहती हैं कि पहले गाँव के लोगों को पैसों की आवश्यकता होती थी, तो गाँव से दूर बैंक तक जाना पड़ता था, लेकिन जब से मैं बैंक सखी का कार्य कर रही हूं, सभी लोग मेरे पास से ही अपने खाते से पैसा निकालते और जमा करते हैं।
प्रिंटर से स्वाईप मशीन तक सब पर कर रही हैं काम
इस प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों में गाँव के नज़दीक बैंक शाखाएं नहीं होने की कमियों को दूर करने का कार्य इन दिनों विभिन्न बैंकों से जुड़ी हुई सखियां कर रही हैं। इस योजना के तहत अलग-अलग प्रकार की सखियां नियुक्त की गईं हैं।
जिसमें बीसी सखी के पास लैपटाप-प्रिंटर होता है, यह बैंक की तरह सभी लेनदेन कर सकती हैं और खाता भी खोल सकती हैं। एटीएम सखी के पास स्वाइप मशीन होती है, जिससे यह सिर्फ लेनदेन कर सकती हैं।
डीजीपे सखी के पास मोबाइल होता है, जिससे ये भी घर पहुंच कर सिर्फ लेनदेन कर सकती हैं, लेकिन केवल वही खाते, जो आधार से लिंक होते हैं, उनके ही खातों से ये लेनदेन कर सकती हैं।
केवल छत्तीसगढ़ ग्रामीण बैंक में ही 113 सखियां
इनके माध्यम से लेनदेन कराने में किसी प्रकार का फॉर्म नहीं भरना होता है। केवल आधार कार्ड के माध्यम से ही पूरा लेनदेन हो जाता है। कांकेर ज़िले में वैसे, तो बहुत से शासकीय एवं निजी बैंक कार्य कर रहे हैं, लेकिन सबसे ज़्यादा पहुंच एवं शाखाएं छत्तीसगढ़ ग्रामीण बैंक की है। इसलिए अन्य बैंकों की अपेक्षा ज़्यादातर बैंक सखियां ग्रामीण बैंक से जुड़ी हुई हैं।
वर्तमान में कांकेर ज़िले के सभी सात ब्लॉक यानी नरहरपुर में 16, चारामा में 22, कांकेर में 17, भानुप्रतापपुर में 12, दुर्गूकोंदल में 14, अंतागढ़ में 15 और कोयलीबेड़ा में 17, इस प्रकार कुल 113 बैंक सखियां कार्य कर रही हैं।
बीमा, लोन वसूली तक सब इनके जिम्मे
इस योजना के ज़रिये से बीसी सखी को 2500 तथा एटीएम एवं डीजीपे सखी को 1000 रुपये मानदेय के अलावा लेनदेन के आधार पर बैंक से कमीशन भी मिलता है। नज़दीकी बैंक से इनका लिंक होता है, जहां से लेनदेन के लिए इन्हें नगद राशि प्रदान की जाती है, जिससे यह गाँवों में जाकर भुगतान करती हैं।
बैंक सखियों के कार्य एवं उनकी ज़िम्मेदारी पर छत्तीसगढ़ ग्रामीण बैंक रीजनल ऑफिस धमतरी के एफआई मैनेजर रवि कुमार गुप्ता ने बताया कि कोई भी बैंक सखी नियुक्त करने का कार्य काॅर्पोरेट बीसी के द्वारा किया जाता है।
इसमें संबंधित ग्राम पंचायत की भी भूमिका होती है, लेकिन हम प्राथमिकता स्व-सहायता समूहों में कार्य कर रही महिलाओं को देते हैं। इन सखियों का प्राथमिक कार्य खाता खोलना और लेनदेन ही है, लेकिन कोरोना महामारी आने के बाद से इनसे अन्य कार्य भी करवाए जा रहे हैं, जिसमें बीमा, लोन वसूली और केसीसी आदि प्रमुख हैं।
इससे बैंक और बैंक सखियां दोनों को लाभ हो रहा है। अगर केवल कांकेर ज़िले की बात की जाए, तो यहां हमारे बैंक से ही लगभग 90 सखियां जुड़ी हैं और उनके द्वारा बहुत अच्छा कार्य किया जा रहा है।
कांकेर ज़िले में बिहान योजना के समन्वयक सत्या तिवारी ने बताया कि बैंक सखियों के द्वारा पेंशन, मनरेगा का मज़दूरी भुगतान, जननी सुरक्षा योजना के तहत प्रोत्साहन राशि, तेंदूपत्ता बोनस, आगंनबाड़ी कार्यकर्ताओं, मितानिनों का मानदेय व अन्य समस्त प्रकार के बैकिंग सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं।
समाज की नई दिशा तय कर रही ये महिलाएं
ज़िला पंचायत की तरफ से इन्हें लैपटाप, प्रिंटर, बायोमेट्रिक सिस्टम उपलब्ध कराया जाता है तथा आरसेटी व सीएससी के माध्यम से प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाता है। सखियों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधा देने से लॉकडाउन के कारण जहां पेंशनधारी व ग्रामीणों को बहुत राहत व सुविधा हुई है। वहीं ज़िला पंचायत की स्व-सहायता समूह की महिलाओं की आर्थिक व सामाजिक स्थिति भी बहुत सुद्ढ़ हुई है।
भारतीय समाज में लड़कियों और महिलाओं से उम्मीद की जाती है कि वे घर को संभालें। इस समाज में महिला होने का मतलब ही घर में काम-काज करना और अपनी सभी ज़रूरतों के लिए पुरूषों पर निर्भर रहना है। इस मिथक के बावजूद खासकर देश के ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के द्वारा किए जा रहे इस तरह के छोटे-छोटे उत्साहजनक कार्य पूरे समाज को एक नई दिशा देने का कार्य कर रहे हैं।
बैंकिंग सेवाएं आज हर व्यक्ति के जीवन का अनिवार्य अंग बन चुकी हैं और इन सेवाओं का विस्तार अब सुदूर गाँव-गाँव तक किया जा रहा है।
ऐसे में छत्तीसगढ़ की ग्रामीण महिलाओं का इस कार्य में आगे आना ना केवल स्थानीय, बल्कि देश के अन्य राज्यों के लिए भी मार्गदर्शन साबित होगा। इस कार्य से एक तरफ जहां महिलाओं को रोज़गार मिल रहा है, वहीं दूसरी ओर वह आत्मनिर्भरता की ओर स्वतंत्र रूप से अग्रसर भी हो रही हैं।
नोट: यह आलेख संजॉय घोष मीडिया अवॉर्ड 2020 के तहत रायपुर, छत्तीसगढ़ से सूर्यकांत देवांगन ने चरखा फीचर के लिए लिखा है।