सखी सैंया त खूब ही कमात है, महंगाई डायन खाए जात है।’ पीपली लाइव फिल्म का यह गाना आज उतना ही प्रासंगिक है जितना कि यह 2010 में था, जहां एक ओर लोगों के आय स्रोत कम हो रहे हैं और वहीं दूसरी ओर आम जनमानस की आवश्यक दैनिक वस्तुओं पर महंगाई बढ़ती ही जा रही है।
बिजनेस टुडे के रिपोर्ट के अनुसार, सीएमआईई के सीईओ महेश व्यास ने कहा है कि 97 प्रतिशत घरों की आय में कमी आई है। अप्रैल महीने में खुदरा महंगाई दर आरबीआई के अनुमानित आंकड़े को पार कर गई है। थोक महंगाई दर भी पिछले 11 साल के रिकॉर्ड स्तर(10.5 प्रतिशत) पर पहुंच गई है। पेट्रोल-डीजल 100 रुपये तक पहुंच गया है, तो सरसों तेल भी 170-200 रुपये में बिक रहा है।
देश की अर्थव्यवस्था में फिर से गिरावट देखने को मिली है। बेरोजगारी भी तेज़ी से बढ रही है। 31 मई को जारी एनएसओ के आंकड़ों के अनुसार, पहली तिमाही में जीडीपी में 7.3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज़ की गई है। वहीं सीएमआईई के अनुमान के अनुसार कोरोना वायरस की दूसरी लहर के कारण करीब 1 करोड़ नौकरियां गईं हैं और देश में बेरोजगारी दर बढ कर 12 प्रतिशत हो गई है।
हमारे देश की सरकार कोरोना से मुकाबला करने की कुशल रणनीतियों में नाकाम रही
भारत में अर्थव्यवस्था के गिरने एवं मंदी का एक प्रमुख कारण कोरोना, तो है ही लेकिन इसका दूसरा अहम कारण सरकार के द्वारा प्रबंधन में भारी कमी भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नारा दिया था ‘जान भी, जहान भी’, लेकिन सरकार की नीतियों में भारी कमी के कारण हम इन दोनों को ही बचाने में नाकामयाब रहे हैं। इस वक्त जान और जहान बचाने के लिए सबसे उत्तम उपाय टीकाकरण है, लेकिन सरकार की आम जनमानस के लिए टीकाकरण की रणनीति काफी उलझी हुई और विवादित है।
यूके और अमेरिका जैसे देश जहां भारत की तुलना में निजी बाज़ार और विकेंद्रीकरण ज़्यादा है। वहां भी टीके की खरीद एवं वितरण वहां के केंद्र सरकार ने वहां के जनमानस के लिए की है, जिससे टीके की खुराक को ज़ल्दी से आम लोगों को लगाया जा सके।
लेकिन, भारत सरकार ने टीके खरीद एवं वितरण करने का फैसला पहले अपने हाथ में लिया और फिर अचानक से इसको राज्य सरकारों के मत्थे मढ़ दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि ना केंद्र सरकार और ना ही राज्य सरकार पर्याप्त टीके का ऑर्डर दे पाईं। टीकाकरण के पहले चरण में बनी सप्लाई चेन भी अब ध्वस्त होती नज़र आ रही है।
इस कारण दुनिया की वैक्सीन फैक्ट्री कहा जाने वाला भारत अभी तक अपने कुल आबादी का पांच प्रतिशत से भी कम लोगों को ही कोरोना के टीके की दोनों खुराक दे पाया है और कोरोना की पहली लहर के दौरान भारत से दवा आयात करने वाले यूके और अमेरिका जैसे देशों ने अपनी आबादी का क्रमशः 35 और 40 प्रतिशत आबादी को टीके की दोनों खुराक दे चुके हैं।
अब उनकी अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही है। वहीं भारत की अर्थव्यवस्था में अभी ज़ल्द सुधार होने की गुंजाइश बहुत कम ही दिख रही है। एक्सपर्ट्स की राय के अनुसार ,अर्थव्यवस्था अभी L शेप में रिकवरी करेगी यानि मंदी अभी टिकेगी।
देश की सरकार इस महामारी में झूठी घोषणाओं एवं सत्ता प्राप्ति में लगी है
केंद्र सरकार ने इस साल के अंत तक भारत की पूरी आबादी को टीके की दोनों खुराक देने का दावा किया है। ऐसा करने के लिए हमें 2 अरब से अधिक टीकों की ज़रूरत पडेगी। इसके अलावा प्रतिदिन लगभग 6.5 करोड़ व्यक्तियों का टीकाकरण करना होगा।
अभी भारत में प्रतिमाह 8 करोड़ से अधिक टीके का उत्पादन हो रहा है और औसतन 18 से 20 लाख लोगों के टीकाकरण प्रतिदिन हो रहा है, लेकिन वर्तमान में टीके उत्पादन और वितरण की गति को देख कर ऐसा मुमकिन हो पाना मुश्किल ही लगता है।
यदि वाकई में भारत को इस महामारी और मंदी के संकट से उबारना है, तो केंद्र और राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी लेते हुए टीकाकरण की रणनीति को मज़बूत एवं सटीक बनाना होगा। सभी सरकारों को आपसी सहयोग से सप्लाई चेन को एक-दूसरे के लिए सुगम बनाना होगा।
इसके साथ ही केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करे कि टीके का उत्पादन बडी मात्रा में हो और देश के प्रत्येक व्यक्ति तक टीका आसानी से बिना किसी भेदभाव के उपलब्ध हो सके, जिससे लाॅकडाउन खुले और लोग फिर अपनी जीविका की पटरी पर वापिस आ सकें और जब आम आदमी कमाना शुरू करेगा, तभी मांग बढ़ेगी और जब मांग बढ़ेगी, तभी देश की अर्थव्यवस्था गति पकडेगी।