मिल्खा सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे. वह एक ऐसे एथलीट थे, जो भागते नहीं बल्कि उड़ते थे. तभी उन्हें फ्लाइंग सिंह के नाम से बुलाया जाता था.
मिल्खा सिंह अब इस दुनिया से अलविदा कह गए. कोरोना वायरस से एक महीने लंबी लड़ाई के बाद चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में उनका निधन हो गया. कुछ दिन पहले ही उनकी पत्नी निर्मल कौर गुजर गई थीं. वह भी कोरोना से जूझ रही थीं.
पांच दिन पहले ही 13 जून को मिल्खा सिंह की पत्नी निर्मल कौर ने भी कोरोना के चलते अंतिम सांस ली थी. दोनों पति-पत्नी पांच दिन के अंतराल में इस दुनिया को अलविदा कह गए और करोड़ों लोगों की आंखें नम कर गए. मिल्खा सिंह और निर्मल कौर की प्रेम कहानी भी जोरदार रही है. खेल के मैदान में ही दोनों की आंखें चार हुई और फिर प्यार की गाड़ी चल पड़ी. लेकिन निर्मल से मिलने से पहले मिल्खा का नाम कई लड़कियों के साथ जुड़ चुका था.
एक दो नहीं पूरी तीन लड़कियों से अपने प्यार की हसीन दास्तान गढ़ चुके थे, हमारे फर्राटा किंग लेकिन वो कहते हैं न कि होता वही है जो नियति में लिखा होता है. मिल्खा सिंह का चक्कर तो चला पर उन 3 लड़कियों में से किसी के साथ उनकी शादी नहीं हो पाई. अब होती भी कैसे, उनके तार तो खेल के मैदान पर जुड़ने लिखे थे. एथलेटिक्स के राजा को वॉलीबॉल की रानी के प्यार में जो पड़ना था. और, सिर्फ प्यार में ही क्यों जनम भर के लिए एक दूजे का हाथ भी पकड़ना था.
साल 1955 में जगह श्रीलंका का कोलंबो था. भारत की वॉलीबॉल प्लेयर और टीम की कप्तान निर्मल कौर से मिल्खा सिंह की पहली मुलाकात इसी साल, इसी जगह पर हुई थी. दोनों एक टूर्नामेंट में हिस्सा लेने कोलंबो पहुंचे थे. एक भारतीय बिजनेसमैन ने टीम के लिए डिनर पार्टी रखी थी.इसी पार्टी में मिल्खा सिंह ने पहली बार निर्मल कौर को देखा था. और देखा क्या था, देखते ही दिल दे बैठे थे. जैसा कि उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में भी फरमाया है कि उन्होंने निर्मल को देखते ही पसंद कर लिया था. उन्होंने बताया कि हमारे बीच काफी बातें भी हुई. पास में कोई कागज नहीं था, लिहाजा मैंने निर्मल के हाथ पर ही होटल का नंबर लिख दिया था.
अब प्यार हो गया. इजहार हो गया. मिल्खा खिलाड़ी बड़े थे, इसलिए चर्चा भी होने लगी. लेकिन, सवाल शादी का था. अपने प्यार को एक नया नाम देने का था. ये काम आसान नहीं था. क्योंकि मिल्खा सिंह के ससुर जी मानने को जो तैयार नहीं थे. दरअसल, निर्मल हिंदू परिवार से थीं और मिल्खा सिख थे. ऐसे में मसीहा बनकर सामने आए पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों, जिन्होंने समझाबुझा कर परिवारों को राजी किया और दो प्यार करने वाले खिलाड़ियों के एक होने का रास्ता साफ किया. साल 1962 में मिल्खा सिंह और निर्मल कौर आखिरकार शादी के बंधन में बंध गए
वही, मिल्खा सिंह का नाम भारत में किसी के लिए अनजाना नहीं है. हर पीढ़ी उन्हें जानती है, उनकी रफ्तार को जानती है उनकी कामयाबी को जानती है. हो भी क्यों न उन्होंने देश को उनपर गर्व करने के कई मौके दिए. ओलिंपिक खेलों में वह भले ही मेडल जीतने से चूक गए थे लेकिन एक ऐसा समय था जब दुनिया भर में ढंका बजता था. कॉमनवेल्थ और एशियन गेम्स में उन्होंने सभी दिग्गजों को मात देकर देश को गोल्ड मेडल दिलाया था.
दुनिया में उनके वर्चस्व का आलम यह था कि कहा जाता है कि उन्होंने एक समय अपने करियर में केवल तीन ही रेस हारी थीं.
वही, एक बार बीबीसी से बात करते हुए मिल्खा सिंह ने याद किया, ‘रोम ओलिंपिक जाने से पहले मैंने दुनिया भर में कम से कम 80 दौड़ों में भाग लिया था. उसमें मैंने 77 दौड़ें जीतीं जिससे मेरा एक रिकॉर्ड बन गया था. सारी दुनिया ये उम्मीद लगा रही थी कि रोम ओलिंपिक में कोई अगर 400 मीटर की दौड़ जीतेगा तो वो भारत के मिल्खा सिंह होंगे. ये दौड़ ओलिंपिक के इतिहास में जाएगी जहाँ पहले चार एथलीटों ने ओलंपिक रिकॉर्ड तोड़ा और बाक़ी दो एथलीटों ने ओलिंपिक रिकॉर्ड बराबर किया. इतने लोगों का एक साथ रिकॉर्ड तोड़ना बहुत बड़ी बात थी.’
जब माखन सिंह से नेशनल गेम्स में हारे थे मिल्खा
1962 में कोलकाता में आयोजित नेशनल गेम्स में माखन सिंह ने मिल्खा को बुरी तरह हराया था. अपने छह साल के करियर में माखन ने 12 गोल्ड, एक सिल्वर और तीन ब्रॉन्ज मेडल जीते. मिल्खा सिंह ने एक इंटरव्यू में भी माना था, ‘रेस पर अगर मुझे किसी से डर लगता था तो वह माखन सिंह थे. वह एक बेहतरीन धावक थे. 1962 के नेशनल गेम्स के बाद से आज तक मैंने वैसी 400 मीटर की रेस नहीं देखी. मैं माखन को पाकिस्तान के अब्दुल खालिक से भी ऊपर मानता हूं.’
मिल्खा रोम ओलिंपिक में जब दौड़ रहे थे तो वे सबसे आगे चल रहे थे, लेकिन उन्हें लगा कि वे जरूरत से ज्यादा तेज दौड़ रहे हैं. आखिरी छोर तक पहुंचने से पहले उन्होंने पीछे मुड़कर देखना चाहा कि दूसरे धावक कहां पर हैं. इसी वजह से उनकी रफ्तार और लय टूट गई. उन्होंने 45.6 सेकंड का समय तो निकाला लेकिन एक सेकेंड के दसवें हिस्से से पिछड़कर वे चौथे स्थान पर रहे. इसके बाद मिल्खा ने जकार्ता में 1962 के एशियाई खेलों में गोल्ड मेडल जीता लेकिन वे समझ गए कि अब वे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कभी नहीं कर सकेंगे.
नरगिस और मधुबाला के सबसे बड़े फैन थे मिल्खा सिंह
मिल्खा सिंह की रुचि केवल खेलों में ही नहीं बल्कि सिनेमा में भी थी. मिल्खा सिंह को फिल्में देखने का बहुत शौक था. खेलों से जब भी उन्हें समय मिलता तो वह हिंदी फिल्में देख लिया करते थे. हिंदी फिल्म जगत के कई कलाकार ऐसे रहे, जिनके मिल्खा सिंह बहुत बड़े फैन थे.
इनमें दो नाम ऐसे हैं, जिनका हर कोई दीवाना है. जी हां, हम बात कर रहे हैं दिग्गज अभिनेत्री नरगिस और मधुबाला की. मिल्खा सिंह ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें नरगिस और मधुबाला काफी पसंद थीं.वह उनके इतने बड़े फैन थे कि इन दोनों अभिनेत्रियों की कोई भी फिल्म देखना मिस नहीं करते थे. हालांकि, 1960 के बाद मिल्खा सिंह ने कोई भी फिल्म नहीं देखी, पर वह सिनेमा का ज्ञान पूरा रखते थे.