देश में तेल की बढ़ती कीमतों पर, जब हमारे देश की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण देश के आम जनमानस को यह बता रही हैं कि तेल की आसमान छूती कीमतें मोदी जी के हाथों में नहीं हैं। तेल की कीमतों का दाम कंपनी तय करती है, तो फिर जब मोदी जी विरोध पक्ष में थे, तब पेट्रोल, डीजल एवं घरेलू गैस के बढते दामों पर उस वक्त की वर्तमान सरकार को क्यों ज़िम्मेदार ठहरा रहे थे? उस वक्त, तो आप पेट्रोल, डीजल एवं घरेलू गैस के बढते दामों को सरकार की विफलता का जीता-जागता सबूत बता रहे थे, अब जब आप से देश की आर्थिक स्थिति संभाली नहीं जा रही है, तो उसके लिए भी ज़िम्मेदार पिछली सरकार है?
वर्तमान समय की सियासत डकैती की आधुनिक व्यवस्था बन चुकी है। ऐसे में देश की जनता करे, तो करे क्या? गरीब जनता डर की वजह से खामोश है और मिडिल क्लास को फुरसत ही नहीं है और पूंजीपति जनता को इन सब से कोई फर्क पडता नहीं, तो वो कोई झमेले में नहीं पडना चाहती है।
देश में बढ़ती हुई महंगाई और बेरोजगारी ने आम व्यक्ति की कमर तोड़ दी है
वर्तमान समय की सरकार की गलत नीतियों की वजह से मुल्क की जनता इतनी परेशान है कि कल जब मैं एक रास्ते से गुज़र रहा था, तब मुझे कम से कम दो किलोमीटर के सफर में सात लोग बिना चप्पलों के नंगे पैर नज़र आए। उस समय मुझे पता चला कि एक वक्त था, जब प्रधानसेवक एक जुमला बोले थे कि अब तो वक्त वो आने वाला है कि हवाई चप्पल पहनने वाले भी हवाई जहाज में सफर करते हुए नज़र आएंगे। उन्हें क्या पता था कि यह भी 15 लाख वाला जुमला ही था कि हवा में बातें करने वाले प्रधानसेवक हम गरीबों की हवा निकाल कर हवाई जहाज का सफर, तो बहुत दूर की बात है, वो हमारे पैरों से हवाई चप्पल भी छीन लेंगे और आम जन की वर्तमान में यही स्थिति है।
आज गरीब परिवार दिन-प्रतिदिन अति दयनीय स्थिति में जीवन बिताने को मज़बूर है। पूंजीपति दिन-प्रतिदिन सरकारी तरफदारी करते हुए ज़्यादा अमीर बनने की रेस में लगा हुआ है और इस रेस में गरीब एवं मध्यम वर्गीय परिवार कुचले जा रहे हैं, लेकिन इससे हमारे देश की वर्तमान सरकार को कोई फर्क नहीं पडता है। इसका जीता- जागता सबूत यह है कि जब हमारे देश की संतोषी नाम की बेटी भात-भात करती हुई भूख से अपनी दम तोड रही थी और वहीं दूसरी ओर एवंका ट्रम्प के लिए 35 करोड का डिनर सजाया जा रहा था। यह कौन कर रहा था?
देश की सत्तारूढ़ सरकार आम जन के अधिकारों की रक्षा में विफल हुई है
मेरी बात यहीं पर खत्म नहीं होती, जब देश की एक गर्भवती महिला जिसको सरकारी अस्पताल के सामने रास्ते पर जानवरों की तरह बच्चे को जन्म देने के लिए मज़बूर किया जा रहा हो, तो उस देश की चिकित्सा व्यवस्था के बारे में क्या कह सकते हैं? हर जगह दोहरी नीति अपनाते हुए गरीब एवं मध्यम वर्गीय परिवारों पर इतना बोझ डाला जा रहा है कि उन्हें सिर्फ दो वक्त का खाना वक्त पर मिल जाए, तो वे दो वक्त के खाने को ही देश का विकास समझने लगेगें।
डेढ लाख रुपये की पेन जेब में रखने से कोई अर्थशास्त्री नहीं बन जाता ठीक उसी प्रकार किसी गधे को कितना भी मशरूम खिला दें। वो कभी कोई रेस नहीं जीत सकता, वो चाहे मुल्क की अर्थव्यवस्था की रेस हो या शिक्षा, चिकित्सा और रोज़गार की रेस हो। हर क्षेत्र में प्रोफेशनल व्यक्तियों का होना बहुत ज़रूरी है, मनचले बहरूपियों का नहीं।