24 वर्षीय रुखसार उर्फ नंदिनी, जिन्होंने वर्ष 2017 में अपने परिवार से हट कर दूसरे धर्म के लड़के से शादी कर ली। मोहम्मद रईस (27) ने अपने घरवालों की रज़ामन्दी से नंदिनी से शादी कर ली थी। नंदिनी की अब दूसरे धर्म में शादी होने के बाद वह रुखसार कहलाती हैं। उन्होंने शादी के बाद अपना नाम बदल लिया है।
उत्तर प्रदेश के ज़िला सुल्तानपुर, गांव दिलावलपुर और थाना मीरानपुर में रहनी वाली जाति मुराई, जो काफी समय से इस गांव का हिस्सा है। इनका पुश्तैनी काम सब्ज़ियां बेचना है। वर्ष 2017 के कुछ महीनों तक नंदिनी के घरवालों ने उसके दूसरे धर्म में शादी करने से नाराज़गी जताई, मगर 6 महीनों के भीतर ही उन्होंने अपनी बेटी और दामाद को अपना लिया। इसके बाद वर्ष 2018 की जनवरी में नंदिनी के पिता नानकुन को उनके आस-पड़ोस के लोग परेशान करने लग गए।
सभी पड़ोसी उनके घर से अपना संबंध तोड़ने लगे। जब बात आस-पड़ोस के लोगों के उनके घर से दूर होने की शुरू हुई, तो इसके कारण उनके कामकाज पर आंच आनी तो ज़रूरी थी। धीरे-धीरे सब्ज़ी मंडी से उनके काम एवं दुकान को लोगों ने नकारना शुरू कर दिया।
नंदिनी बताती हैं कि जब सारे गाँव में यह बात फैल गई कि मैंने एक मुसलमान लड़के से शादी की है, तो लोगों ने मेरे पापा से सब्ज़ियां खरीदना बन्द कर दिया। बाज़ार और आस-पड़ोस के लोग मेरे परिवार को भी उसी नज़रिए से देखने लगे जिस नज़रिए से मेरे गाँव वाले वहां के मुसलमानों को देखते हैं। कोतवाली में यह अफवाह आम हो गई थी, कि नानकुन के परिवार ने अपने धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण कर लिया है। इस बात की पुष्टि करने के लिए मेरे पिता को कड़कड़ाती सर्दी में सोगरा (एक तालाब) में डुबकी लगानी पड़ी और अग्नि स्नान करवाया गया। मेरे पिता को यह सब करना पड़ा और पूरे गाँव को बताना पड़ा कि हम हिन्दू ही हैं, मुसलमान नहीं बने।
हम लोगों के पास ना खेत-खलियान है और ना गाय भैंस। हम जात के मुराई हैं, हमारा काम सब्ज़ियां बेचना है। जब सब लोग बाबा(पापा) के काम से बचने लगे, तो उन्होंने हमसे भी सब्ज़ियां खरीदना बंद कर दिया। इसके चलते लगभग 6 महीने तक मेरे घरवालों ने ढंग से खाना नहीं खाया। मेरे पिताजी ने नमक से रोटी खाई और मेरी माता हर माह व्रत का बहाना लगा कर भूखी ही रहीं। मैं अपने ससुराल में थी। मुझे अपने घर पर जाते हुए डर लगने लगा था। घर में खाने की तंगी के चलते मेरे पिताजी हैज़े और पीलिया के मरीज़ बन गए और अम्मा के अंदर खून की भारी कमी हो गई।
इसकी भनक जब मेरे पति को लगी, तो उन्होंने मेरे माता-पिता को सुल्तानपुर के मेडिकल कॉलेज में भर्ती करवाया और उनका इलाज करवाया। यहां इंसानियत की मिसाल सामने आई, यहां धर्म का कोई काम नहीं था। इसके बाद मेरे पिताजी को गांव की मंडी में नहीं टिकने दिया गया। अब मेरे पिताजी अपनी सब्ज़ी बेचने के लिए गाँव से 12 किलोमीटर दूर एक अन्य गाँव की सब्जीमंडी में सब्जी बेचने जाते हैं।
रुखसार ने अपने मन की व्यथा बताते हुए बातों को आगे जारी रखा और बताया कि उनकी 3 बहनें और हैं, जिनके साथ उनकी शादी के बाद भेदभाव होना शुरू हो गया है। मेरी बहनें इस शादी के बाद से आज तक प्रताड़ित की जा रही हैं। जो घर के सभी लोगों को आहत करता है। यहां तक की रुखसार को अपने भाई के लिए रक्षाबंधन और भैयादूज जैसे पर्व मनाने के लिए अलग से घर जाना पड़ता है। वह अपनी बहन के साथ बिल्कुल भी अपना घर साझा नहीं कर सकतीं। उनके ससुराल वाले उनको सख्त मना करते हैं।
रुखसार बताती हैं कि मेरे दूसरे धर्म में शादी करने से मेरा पूरा घर तितर-बितर हो गया, बेशक मैं अपने भाई-बहन से सही तरीके से नहीं मिल पाती, लेकिन मुझे भगवान ने पति के रूप में देवता दिया है जिसने मेरे माँ-बाप को नया जीवन दिया है।
सुझाव : मैं खुश हूं, व्यक्तिगत तौर पर मुझे हर सुख है मगर समाज में फैला भेदभाव मुझे बहुत अखरता है। मैं भविष्य में एक कार्यक्रम चलाना चाहती हूं, जिसमें लोगों को भेदभाव से दूर हटने के तरीके बताउंगी और उन्हें समझाना चाहूंगी कि भेदभाव के बिना आपका जीवन किस प्रकार मज़बूत बनेगा और खुशहाली आपके कदम चूमेगी।