केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन, जिन्हें अक्टूबर 2020 में उत्तर प्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार किया था, उनकी पत्नी, रेहंथ नाथ ने भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना को लिखा है कि उनकी हालत गंभीर है। सिद्दीकी कप्पन को हाल ही की कोरोना जांच में संक्रमित पाया गया है और वर्तमान में मथुरा, उत्तर प्रदेश के एक अस्पताल में भर्ती हैं।
इस पत्र में, रेहंथ नाथ ने आरोप लगाया है कि सिद्दीकी कप्पन को अस्पताल के बिस्तर से जानवरों की तरह बांध कर रखा गया है और पिछले चार दिनों से वह ना ही भोजन ले पा रहे है और ना ही शौचालय का उपयोग कर पा रहे हैं। इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप की मांग करते हुए, रेहंथ नाथ ने CJI को कप्पन को मथुरा के. के. एम. मेडिकल कॉलेज, अस्पताल से तुरंत स्थानांतरित करने के लिए गुहार लगाई है।
केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (KUWJ), जो पत्रकार की रिहाई के लिए लड़ रहा मंच है, ने भी 22 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें सिद्दीकी कप्पन को एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान या सफदरजंग अस्पताल) में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया गया है। सिद्दीकी कप्पन को उत्तर प्रदेश पुलिस ने 5 अक्टूबर, 2020 को गिरफ्तार किया था, जब वह हाथरस में 19 वर्षीय दलित महिला, जिसका चार उच्च जातीय लोगों ने बलात्कार कर मार दिया था, के परिवार से मिलने के लिए जा रहे थे। लड़की की मृत्यु का कारण अंदरूनी पीड़ा और बाहरी चोट बताया जा रहा है।
सिद्दीकी कप्पन सहित 4 लोगों के ऊपर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम या यूएपीए के तहत आरोप दर्ज़ किए गए हैं। उत्तर प्रदेश पुलिस ने पत्रकार पर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) से संबंध रखने का आरोप लगाया है। इसके साथ ही पुलिस का यह भी कहना है कि सिद्दीकी और उनके 3 साथी हाथरस में जातिगत आधार पर दंगा भड़काने की योजना के साथ जा रहे थे। गिरफ्तारी के बाद से वह मथुरा की एक जेल में बंद हैं।
रेहंथ नाथ ने जेल अधिकारियों पर आरोप लगाते हुए यह बताया कि उन्हे उनके पति के बारे में किसी प्रकार की सूचना नहीं दी। अपनी बात को आगे बढ़ते हुए उन्होंने बताया कि केवल शनिवार को उन्हें 2 मिनट के लिए कप्पन से बात करने की इजाजत दी जाती है और उसी दौरान मुझे उनकी इस बदहाली का पता चला।
पर, मैं इससे ज़्यादा कुछ पूछ पाती उससे पहले हमारा फोन कट चुका था। कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिज़म के सीनियर एशिया प्रभारी आलिया इफतीखार ने मामले की गंभीरता और कोविड संक्रमण को ध्यान में रखते हुए कप्पन को त्वरित रिहाई की मांग को उठाया है। वही उन्होंने अपनी गहरी संवेदना जताते हुए कहा कि जेल में कप्पन की जान को खतरा है।
कौन हैं सिद्दीकी कप्पन?
रेहंथ नाथ से जब उनके पति के बारे में पूछा गया कि वह किस तरह के इंसान थे, तो उन्होंने अपने जवाब में कहा कि “शायद आप उनसे मिलते और बात करते तब आप एक विनम्र इंसान सिद्दीकी के अंदर पाते। वह अपने काम को लेकर काफी सजग और गंभीर रहने वाले इंसान हैं। जब वह आखिरी बार हमारे साथ थे, तब अभी के हालत में जो कुछ भी देश के अंदर हो रहा है उसे लेकर काफी परेशान थे और वह यहां (केरल) अपने काम पर ध्यान भी ज़्यादा नहीं लगा पाने के कारण भी परेशान थे।
जब वह कोझिकोड़ से ट्रेन ले रहे थे, तब वह एक दिल से भरा हुआ इंसान था जिसकी माँ बीमार थी। वह हाथरस की घटना से काफी आहत था, क्योंकि उसमे एक लड़की का बलात्कार हुआ था और पुलिस उनका केस तक लिखने से इनकार कर रही थी। सिद्दीकी सामान्यतः ऐसे केस पर काम करता था, जहां लोगों का शोषण हो रहा होता था और उनके पास पर्याप्त साधन नहीं होते थे कि जिसके आधार पर वह अपने लिए न्याय की मांग कर सकें।
इसके अलावा वह पिछले कुछ दिनों से पत्रकारिता को छोड़ने की बात भी कर रहा था, क्योंकि उसका मानना था कि अगर मैं खुल के सच्चाई को लिख नहीं सकता, तो फिर ऐसे काम का क्या फायदा? रेहंथ नाथ ने अपनी बात को आगे जारी रखते हुए यह बात बताई।
NCHRO के सदस्य अंसार से हुई बातचीत के दौरान उन्होंने सिद्दीकी के बारे में जानकारी साझा करते हुए बताया कि वह 2017 में उनसे पहली बार मिले। NCHRO के तत्कालीन मुख्य सचिव पी. कोया ने उन्हे अपने साथ रखने के लिए कहा और उसके बाद वह दोनों एक साथ रह रहे थे। कप्पन, पी. कोया के साथ ही मलयाली अखबार तेजस में साथ काम किया करते थे। पर, 2018 में तेजस के बंद हो जाने के बाद उन्होंने किसी अन्य मलयाली पोर्टल के लिए लिखना शुरू कर दिया। इसके अलावा सिद्दीकी दिल्ली में रहते हुए विकिपीडिया के लिए लगातार लिखते रहे हैं।
विकिपीडिया द्वारा आयोजित अनेक क्रॉन्फ्रेन्स में जो कि चंडीगढ़, उत्तर -पूर्वी राज्यों तथा साउथ अफ्रीका, में आयोजित किए गए थे, उनमें भी शिरकत की थी। पत्रकार और लेखक होने के कारण 2017 में हमने इन्हें NCHRO स्टेट कमिटी का सदस्य बनाया। गिरफ्तारी से 8 या 10 महीने पहले कप्पन को केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स के दिल्ली यूनिट के महासचिव के रूप में चुना गया था। इसके अलावा सिद्दीकी का परिवार केरल में ही रहता था और वह 4-5 महीने में 10 या 15 दिनों के लिए ही अपने घर जाया करते थे।
सिद्दीकी मेरा बेटा है और मैं भी माँ हूं
शायद, दुनिया की हर माँ वही चाहेगी जो आज सिद्दीकी की माँ चाहती है कि उसके बच्चे को बरी कर दिया जाए। वह उसे देखना चाहेगी, क्योंकि वह काफी बीमार है और उसने अपने बच्चे को पिछल 6 महीने से देखा नहीं है। लगातार कुछ समय के अंतर पर उनके करीबी उन्हें खबर देते हैं कि जेल में उसके साथ टॉर्चर किया जा रहा है। उससे यह जबरदस्ती कुबूले जाने पर बाध्य किया जा रहा है कि वह एक षडयंत्र के तहत आया था। उसे मलयाली मुसलमान होने के कारण पीटा जा रहा है।
उससे जेल में पूछा जा रहा है कि क्या तुम बीफ खाते हो? पर क्या हर एक कैदी की माँ को यह सब सुनना पड़ता है? बच्चे से दूर होने के गम के साथ क्या उसे धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है? तो इसका जवाब है बिल्कुल नहीं। इस देश में सभी माँ के दुख बराबर नहीं है। जैसे इस देश में सभी इंसान बराबर नहीं है। इस देश के हुक्मरान भी किसी खास तरह के माँ की ममता को ही ममता कहते है नहीं, तो वह माँ जेहादी ममता फैला रही है या अपने जेहादी लड़के के लिए इमोशनल कार्ड खेल रही है।
कहीं पीछे छूट गई हाथरस रेप पीड़िता
सिद्दीकी की लड़ाई के साथ उस बलात्कार पीड़िता का सच भी कहीं गहराई से जुड़ा हुआ है। परंतु, सरकार उस पूरे मामले को भुला देना चाहती है सिद्दीकी को देशद्रोही ठहराकर। 14 सितंबर, 2020 को उत्तर प्रदेश के हाथरस इलाके में 19 वर्ष की एक महिला का उच्च जातीय 4 युवकों द्वारा बलात्कार किया जाता है। पुलिस जांच के दौरान ही महिला की मृत्यु हो जाती है और पुलिस चुपके से रात के समय पीड़िता के शव को बिना उसके परिवार को दिखाए हुए 29 सितंबर को जला देती है। उसके बाद एडीजी का बयान आता है कि हमें किसी भी प्रकार के बलात्कार का प्रमाण नहीं मिला है। इसके साथ ही मीडिया में यह खबर फैलाई जाने लगती है कि यह ऑनर किलिंग का मामला है और महिला पारिवारिक दुश्मनी निकालने के लिए 4 लड़कों का नाम ले रही है।
परंतु, कुछ ही दिनों बाद यह केस सीबीआइ के हाथों में सौंप दिया जाता है, जो अपनी चार्टशीट में सामूहिक बलात्कार होने की पुष्टि करती है। इसके बाद सीबीआइ अपनी जांच में यह यह बात भी जोड़ती है कि पीड़िता का संबंध संदीप(4 लोगों में से एक) के साथ था, तो ऑनर किलिंग के मामले को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि यह दोनों ही तरह की बातों की जांच खुद एजेंसी कर रही है।
स्पेशल कोर्ट में बचाव पक्ष के वकील ने अपनी दलील देते हुए यह कहा कि भारतीय संस्कृति के अनुसार भतीजा, अपने चाचा के सामने किसी महिला का रेप नहीं कर सकता है और यह जवाब अपने आप में कितना असंवेदनशील और बेबुनियाद है। बहरहाल, इस घटना को हुए 6 महीने से ज़्यादा हो चुके हैं और फास्ट ट्रैक कोर्ट कहीं खो गई है।
इस पूरे मामले में सिद्दीकी एक पत्रकार के रूप में अपने काम को प्राथमिकता देते हुए इस पूरी घटना को कवर करना चाहते थे और उस दौरान ही उन्हे इस मामले में गैर कानूनी गतिविधि में संलिप्त बता कर जेल में डाल दिया गया। पर, जब हम आज की परिस्थितियों में इस मामले को देखते हैं कि जहां दवा मांगने पर ही लोगों पर केस लगा दिया जा रहा है, जहां पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ताओं पर किसान आंदोलन के समर्थन के कारण राष्ट्रद्रोह लगाया जा रहा है और जिस व्यवस्था में बीमार लोगों के इलाज में सहायता और खून देने पर अभियोग दर्ज किए जा रहे हैं।
ऐसे में सिद्दीकी कप्पन, एक मलयाली मुसलमान हैं, जो दिल्ली में रहकर राज्य के वर्तमान चरित्र के जनताविरोधी कृत्यों को उजागर करते हैं, तब यह व्यवस्था उन्हें कैसे बाहर छोड़ सकती है? समस्त इंसाफ पसंद लोगों को सिद्दीकी कप्पन और सभी राजनीतिक कैदियों की रिहाई के लिए अपनी आवाज़ उठानी चाहिए।