यह कोई पहली बार नहीं हो रहा है, जब बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था पर प्रश्न खड़ा हो रहा है। बिहार में जब से नीतीश कुमार की सरकार बनी है, तभी से राज्य की स्वास्थ्य कुव्यवस्था पर आए दिन सवाल उठते रहते हैं और दिन-प्रतिदिन कोई ना कोई ऐसे केस सामने आते रहते हैं, जो वहां की स्वास्थ्य व्यवस्था की नाकामी का पर्दाफाश करते रहते हैं। चाहे वो चमकी बुखार के समय मुजफ्फरपुर के सबसे बड़े अस्पताल में आक्सीजन की कमी से लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी हो या बाढ़ के समय गर्भवती महिला को अस्पताल में दवा और समय से एंबुलेंस सेवा प्रदान ना करने के कारण जच्चा एवं बच्चा को अपनी जान गवानी पड़ी है।
ऐसी खबरों से आपका आमना-सामना सुशासन की सरकार में देखने को अवश्य मिला होगा या आपका कोई परिजन इस सुशासन की कुव्यवस्था का शिकार हुआ होगा। इतना सब कुछ होने के बाद बिहार के स्वास्थ्य मंत्री का कुछ अता-पता नहीं है। जिसके कारण कल सोशल मीडिया हैंडल फेसबुक पर तेजप्रताप यादव उनके लापता होने के पोस्टर लगाकर उन्हें ढूंढने की कोशिश कर रहे थे। पिछले वर्ष जब कोरोना महामारी से पूरी दुनिया में हाहाकार मचा, तो देश-दुनिया में सरकारें एवं लोग अपनी स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने में लगे हुए थे। ऐसे में कोरोना महामारी की भयावहता के बीच बिहार अपने चुनावों में उलझा हुआ था।
देश के अन्य राज्यों में जब कोरोना की दूसरी वेव के कारण लॉकडाउन लग रहा था, तब बिहार की जनता वहां की सरकार और प्रशासन की कुव्यवस्था का शिकार हो रही थी। जिसका खामियाजा आज बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों को भुगतना पड़ रहा है और एक आंकड़े के अनुसार बिहार में कोरोना महामारी का लगभग 76% संक्रमण ग्रामीण क्षेत्रों में है।
ऐसे में वहां के सदर अस्पताल में ना, तो ऑक्सीजन है और ना ही पर्याप्त मात्रा में बेड और आई सी यू बेड उपलब्ध हैं। इस दौरान कोरोना महामारी के चलते उसके इलाज में आवश्यक दवाइयां उपलब्ध ना होने के कारण लोग हॉस्पिटल में उपस्थित सरकारी कर्मचारियों पर अपना गुस्सा निकाल रहे हैं। ऐसी ही एक घटना पूर्वी चंपारण के मोतिहारी ज़िले के सदर अस्पताल से सामने आई, जिसमें एक पिता ने अपने बेटे को खोने का कारण अस्पताल प्रशासन को बताया। वह बहुत देर तक एंबुलेंस के पीछे खड़ा होकर कई मिनटों तक सरकार एवं प्रशासन को गालियां देता रहा।