“पिछले साल तक भारत तबाही के दूसरे छोर पर था, लेकिन अब हम इस महामारी का केंद्र बन गए हैं। हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था ध्वस्त हो गई है, पर अगर रोजाना कोविड के 3-4 लाख मामले आएंगे, तो किसी भी देश की स्वास्थ्य प्रणाली इस भयावहता में टिक नहीं सकती है। ”
कोविड महामारी की दूसरी लहर सभी मायनों में विनाशकारी और संकटपूर्ण रही है। इसने देश में अकल्पनीय स्वास्थ्य आपातकाल ला दिया है। संभवतः यह दूरस्थ युग के बाद से मानवता द्वारा देखा गया सबसे चुनौतीपूर्ण समय है। जैसे ही कोविड संक्रमण की दर तेज़ हुई, देश की पूरी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली चरमरा सी गई है। इसके फलस्वरूप, हर गुज़रते दिन के साथ, सैकड़ों-हज़ारों लोगों की जान, ऑक्सीजन की किल्लत, अस्पतालों में बेड की कमी और अपर्याप्त मानव संसाधन की वजह से जा रही हैं।
राज्य-स्तरीय प्रतिबंधों ने लगभग पूरे देश को बंद कर दिया है। इससे पिछले साल की तरह फिर से आजीविका के नुकसान, मज़दूरों के पलायन और नौकरीपेशा लोगों के नौकरी जाने का खतरा बढ़ गया है। हालांकि, पिछले साल यह अचानक हुए बदलाव को स्वीकार करने, भविष्य की योजनाओं से समझौता करने और वित्तीय नुकसान को सहन करने के बारे में था, लेकिन इस बार अप्रैल और मई में मामले गहरी निराशा, घबराहट और अनिश्चितताओं के हैं। इस स्थिति में पहले जीवित रहने की आवश्यकता है। यह महामारी व्यक्ति और समाज की आंतरिक शांति और स्थिरता पर गहरा प्रभाव डाल रही है।
कोरोना हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डाल रहा है
कोरोना वायरस की दूसरी लहर घातक है, यह ना केवल शारीरिक स्वास्थ्य, बल्कि एक व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है, जिसका स्वास्थ्य प्रणाली पर विनाशकरी प्रभाव पड़ सकता है। इससे खुद को बचाने के लिए जो लोग अपने घरों के अंदर हैं, वे टेलिविजन सेट, दैनिक समाचारपत्रों और सोशल मीडिया के माध्यमों से रोगियों और उनकी देखभाल करने वाले परिवारजनों की चीखों और संघर्ष को देख विचलित हो रहे हैं। वे सभी धीरे-धीरे उन अवांछित और अप्रिय दृश्यों के साथ भय, बेचैनी, थकान, घबराहट, बेबसी और अनिश्चितताओं के जाल में गिर रहे हैं।
महामारी के कारण मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ जाती हैं, कई शोधों में यह देखा गया है। वर्ष, 2014 में इबोला के प्रकोप के 1 वर्ष बाद भी पोस्ट- ट्रौमटिक स्ट्रैस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) और चिंता-अवसाद के लक्षण अधिक प्रचलित थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वैश्विक एचआईवी महामारी भी एक समान तस्वीर प्रदान करती है। यह पाया गया है कि एचआईवी संक्रमित व्यक्तियों में मानसिक बीमारियों कि व्यापकता सामान्य आबादी की तुलना में काफी अधिक रहती है।
मानसिक स्वास्थ्य एवं उससे जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी का नितांत अभाव
हमारे देश में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे कम प्राथमिकता वाले क्षेत्र हैं और इसकी कम चर्चा की जाती है। भारतीय मानसिक स्वास्थ्य प्रणाली के सामने प्रमुख चुनौतियां हैं जैसे- मानसिक बीमारियों के बारे में ज्ञान और पर्याप्त मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी। भारत अपने वार्षिक स्वास्थ्य बजट का 2 प्रतिशत से भी कम मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च करता है, जो दुनिया के कई देशों से कम है। लोगों में जानकारी की कमी के कारण, समाज में इसे स्टिग्मा (कलंक) के तौर पर देखा जाता है । किसी भी सामान्य बीमारी के अवसर पर लोग एक सामान्य चिकित्सक के पास जाने से संकोच नहीं करते, लेकिन जब मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा करने और मनोचिकित्सक के पास जाने की बात होती है, तो लोग आमतौर पर पीछे हट जाते हैं।
भारत में कोरोना महामारी के संदर्भ में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे असुरक्षित और कमज़ोर आबादी (महिलाओं, बच्चों, प्रवासी मज़दूरों आदि) के बड़े अनुपात और पहले से मौजूद मानसिक पीड़ा के कारण कई गुना अधिक गंभीर हैं। बच्चों और किशोरों में अपने सामाजिक जीवन पर अंकुश लगाने के लिए परिपक्वता का अभाव होता है, इसलिए वे आसानी से निर्वासित हो जाते हैं। प्रतिबंधों का सामाजिक रिश्तों पर भी गहरा असर पड़ रहा है। संक्रमण का डर लोगों में नए मनोरोग लक्षणों को बढ़ावा दे सकता है, मानसिक रोग से ग्रसित लोगों पर दुष्प्रभाव और इनकी देखभाल करने वालों पर भी बुरा असर डाल सकता है। अपर्याप्त मानसिक स्वास्थ्य प्रणाली के बीच मानसिक स्वास्थ्य चिंताओं का बढ़ना राष्ट्र के लिए एक अनपेक्षित समस्या हो सकती है।
सरकार ने आम जनमानस के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा हेतु हेल्पलाइन भी चालू की हैं
हालांकि, पिछले कुछ महीनों के दौरान स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जिसमें महामारी के दौरान मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों को संभालने के लिए राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन भी शामिल है। बेंगलुरु में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज (NIMHANS) एक 24X7 टोल-फ्री हेल्पलाइन नंबर (080-4611 0007) संचालित करता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल की तुलना में दैनिक कॉल की आवृति में 50% तक का उछाल आया है, जिससे पता चलता है कि लोग अपनी समस्याओं के साथ सामने आ रहे हैं।
देश भर के डॉक्टर और परामर्शदाता इन विकट परिस्थितियों में शांत रहने और रचना करने का एक तरीका सुझाते हैं। वे सलाह देते हैं, जो बहुत सरल लगती हैं जैसे- अपनी नींद पर ध्यान दें, व्यायाम करें, बुनियादी आत्म-देखभाल को प्राथमिकता दें, किसी और की मदद करें, किसी तरह की दिनचर्या बनाएं और उससे नियमित रूप से जुड़े रहें। इस चुनौतीपूर्ण समय में हमें ज़रूरत है कि हम सब एकजुट हों, एक-दूसरे के लिए खड़े हों, आशा न खोएं और अपने निकट एवं प्रिय लोगों से बात करें, इससे हमें आत्मबल मिलेगा। सुरक्षित रहें, ये कठिन वक्त भी बीत जाएगा!