आजकल कोरोना महामारी का कहर ग्रामीण इलाकों में तेज़ी से बढ़ रहा है। चाहे वह उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश हो या फिर कोई अन्य राज्य। जबकि राज्य सरकारों का दावा है कि कोरोना महामारी का संक्रमण गाँवों में बढ़ने से रोकने के लिए ट्रैकिंग, टेस्टिंग और ट्रीटमेंट के फार्मूले पर कई दिन से सर्वे अभियान चलाया जा रहा है। यानी अभी तक सिर्फ सर्वे? ऐसी ही कुछ स्थिति राजस्थान की भी है। खबरों के मुताबिक राजधानी जयपुर के देहाती इलाके चाकसू में एक ही घर में तीन मौतें कोरोना के कारण हुई हैं। यही हाल टोंक ज़िले का भी है। महज़ दो दिनों में टोंक के अलग-अलग गाँवों में दर्जनों लोगों की एक दिन में मौत की खबरें आईं हैं। इसके बाद शासन-प्रशासन हरकत में आया है।
जयपुर व टोंक के अलावा राज्य के कई ज़िलों के गाँवों में बुखार से मौतें होने की सूचनाएं आ रही हैं। राजस्थान के भीलवाड़ा ज़िले में भी गाँवों में बहुत अधिक मौतें हो रही हैं। इसी तरह दूसरे गाँवों में भी कोरोना महामारी के बढ़ने की खबरें आ रही हैं।
कोरोना की पहली लहर में गाँव बच गए थे, लेकिन दूसरी लहर में गाँव भी इस लहर से अछूते नहीं हैं। गाँवों से बुखार-खांसी जैसी समस्याएं ही नहीं, बल्कि मौतों की खबरें भी लगातार आ रही हैं। हालांकि, पिछले साल लॉकडाउन में करीब डेढ़ करोड़ से अधिक प्रवासी शहरों से देश के विभिन्न गाँवों में पहुंचे थे। इसके बावजूद कोरोना से मौतों की सुर्खियां बनने वाली खबरें नहीं आई थीं, लेकिन इस बार परिस्थिति बिल्कुल विपरीत है। कई राज्यों में गाँव के गाँव बीमार पड़े हैं, लोगों की जानें जा रही हैं।
कोरोना की दूसरी लहर ने गाँवों में भी तेज़ी से अपनी पकड़ बनाई
हालांकि, इनमें से ज़्यादातर मौतों के आंकड़े दर्ज़ नहीं हो रहे हैं, क्योंकि अधिकतर जगहों पर या तो टेस्टिंग की सुविधा नहीं है या जागरूकता के अभाव में लोग करा नहीं रहे हैं। जयपुर ज़िले के चाकसू तहसील स्थित भावी निर्माण सोसायटी के सदस्य गिरिराज प्रसाद के अनुसार “पिछले साल शायद ही किसी गाँव से किसी व्यक्ति की मौत की खबर आई थी। लेकिन, इस बार हालात बहुत बुरे हैं। मैं आसपास के 30 किमी के गाँवों में काम करता हूं। गाँवों में ज़्यादातर घरों में कोई ना कोई बीमार है।”
गिर्राज प्रसाद की बात इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि वह और उनकी संस्था के साथी पिछले छह महीने से कोरोना वॉरियर्स की भूमिका निभा रहे हैं। वहीं कोथून गाँव के एक किसान राजाराम (44 वर्ष) जो खुद घर में आइसोलेट होकर अपना इलाज करा रहे हैं। उनके मुताबिक गाँव में 30 फीसदी लोग कोविड पॉज़िटिव हैं। राजाराम फोन पर बताते हैं, मैं खुद कोरोना पॉज़िटिव हूं। गाँव में ज़्यादातर घरों में लोगों को बुखार-खांसी की दिक्कत है।
पहले गाँव में छिटपुट केस थे, फिर जब 5-6 लोग पॉज़िटिव निकले, तो सरकार की तरफ से एक वैन आई और उसने जांच किया, तो कई लोग पॉज़िटिव मिले हैं। जो एक चिंता का विषय है। जयपुर-कोटा एनएच- 12 के किनारे बसे इस गाँव की जयपुर शहर से दूरी 50 किलोमीटर है और यहां की आबादी राजाराम के मुताबिक करीब 4000 है। गाँव में ऐसा क्या हुआ कि इतने लोग बीमार हो गए? इस सवाल के जवाब में राजाराम बताते हैं कि, सबसे पहले तो गाँव में एक दो बारातें आईं, फिर 23-24 अप्रैल को यहां आंधी पानी (बारिश) आया था, जिसके बाद लोग ज़्यादा बीमार हुए। शुरू में लोगों को लगा यह मौसमी बुखार है, लेकिन लोगों को दिक्कत होने पर जांच हुई, तो पता चला कि उनको कोरोना है। गाँव के ज़्यादातर लोग घर में ही इलाज करा रहे हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में मेडिकल सुविधाओं की बदहाली चरम पर है
जयपुर के रहने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ता और जन स्वास्थ्य अभियान से जुड़े सदस्य आरके चिरानियां फोन पर बताते हैं, “कोरोना का जो डाटा है, वह ज़्यादातर शहरों का ही होता है। गाँव में, तो पब्लिक हेल्थ सिस्टम बदतर है। जांच टेस्टिंग की सुविधाएं भी नहीं हैं। लोगों की मौत हो भी रही है, तो इसका वास्तविक कारण पता नहीं चल रहा है। दूसरा अगर आप शहरों की स्थितियां देखिए, तो जो डाटा हम लोगों तक आ रहा है वह बता रहा है कि शहरों में ही मौतों का आंकड़ों से कई गुना ज़्यादा है। अगर ग्रामीण भारत में सही से जांच हो, तो यह आंकड़ा और भी अधिक भयानक होगा।”
ग्रामीण भारत में हालात कैसे हैं? इसका अंदाजा छोटे-छोटे कस्बों के मेडिकल स्टोर और इन जगहों पर इलाज करने वाले डॉक्टरों (डिग्रीधारी और गैर डिग्री वाले, जिन्हें स्थानीय भाषा में झोलाछाप कहा जाता है) के यहां भीड़ से लगाया जा सकता है। गाँवों और कस्बों के मेडिकल स्टोर्स पर इस समय सबसे ज़्यादा लोग खांसी-बुखार की दवाएं लेने आ रहे हैं। एक मेडिकल स्टोर के संचालक दीपक शर्मा बताते हैं, रोज़ करीब 100 लोग बुखार और बदन दर्द की दवा लेने आ रहे हैं। पिछले साल इन दिनों के मुकाबले ये आंकड़ा काफी ज़्यादा हैं।
इतनी ज़्यादा मांग की वजह से कोविड-19 से जुड़ी दवाएं, तो अलग बात है, लेकिन बुखार की सामान्य टैबलेट पेरासिटामोल, विटामिन सी की टैबलेट और यहां तक कि खांसी के सिरप तक नहीं मिल रहे हैं। ज़्यादातर ग्रामीण इलाकों में एक बड़ी दिक्कत यह भी है कि खांसी और बुखार को लोग सामान्य फ्लू मानकर चल रहे हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में जन जागरूकता के अभाव में लोग कोविड की जांच नहीं करा रहे हैं
एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी गाँव में बुखार और कोविड के बारे में पूछने पर कहते हैं, “कोविड के मामलों से जुड़े सवाल सीएमओ (ज़िला मुख्य चिकित्सा अधिकारी) साहब ही दे पाएंगे बाकी बुखार-खांसी का मामला है कि इस बार की अपेक्षा पिछली बार कुछ नहीं था। कई गाँवों से लोग दवा लेने आते हैं। फिलहाल हमारे यहां 600 के करीब एक्टिव केस हैं।”
इस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीन 42 ग्राम पंचायतें आती हैं। यानी औसतन करीब 250 गाँव शामिल हैं। वह कहते हैं, ‘अगर सबकी जांच हो जाए, तो 40 फीसदी लोग कोरोना पॉज़िटिव निकलेंगे। गाँवों के लगभग हर घर में कोई ना कोई बीमार है और उनके लक्षण सारे कोरोना जैसे हैं, लेकिन ना कोई जांच करवा रहा और ना ही सरकार को इसकी चिंता है।
महामारी बेकाबू रफ्तार से ग्रामीण इलाकों पर अपना शिकंजा कसती जा रही है। हालात यह है कि ग्रामीण इलाकों के कमोबेश हर घर को संक्रमण अपने दायरे में ले चुका है। लगातार हो रही मौतों से ग्रामीण दहशत में हैं। बावजूद, प्रशासन संक्रमण की रफ्तार थाम नहीं पा रहा है। यहां तक कि कोरोना जांच की गति भी बेहद धीमी है। कोरोना की पहली लहर में ग्रामीण इलाके महफूज़ रहे थे। लेकिन, दूसरी लहर ने शहर की पॉश कॉलोनियों से लेकर गाँव की पगडंडियों तक का सफर बेकाबू रफ्तार के साथ तय कर लिया है। जिसे रोकना केवल सरकार, प्रशासन और पंचायत ही नहीं, बल्कि हम सब की ज़िम्मेदारी है और यह ज़िम्मेदारी सजगता और जागरूकता से ही संभव है।
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नोट- यह आलेख जयपुर, राजस्थान से मदन कोथुनियां ने चरखा फीचर के लिए लिखा है।