Site icon Youth Ki Awaaz

आखिर हमारे समाज में महिलाएं लैंगिक भेदभाव में क्यों जकड़ी हुईं हैं?

आखिर हमारे समाज में महिलाएं लैंगिक भेदभाव में क्यों जकड़ी हुईं हैं?

कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने लोगों के जीवन को बुरी तरह से प्रभावित कर दिया है। अभी पिछले कुछ ही दिनों की बात है। कोरोना की बढ़ती हुई महामारी के कारण पूरे राज्य में एक सप्ताह का लॉकडाउन फिर से लगा दिया गया है। लोगों के घरों से बाहर आने-जाने पर सरकार द्वारा लगभग पूरी तरह से रोक लगा दी गई है। इस कारण मेरे घर पर काम करने वाला भी नहीं आ रहा था। वह लॉकडाउन के डर से लगभग एक महीने पहले ही अपने गाँव चला गया था। जाहिर सी बात है, इसके चलते घर के सारे काम मुझे ही करने पड़ते हैं।

लॉकडाउन में रोज़ 2 घंटे की ढील सुबह 6 बजे से 8 बजे तक ही दी गई है। इसलिए सब्जी और अन्य ज़रूरी सामान खरीदने के लिए सुबह-सुबह ही बाहर बाज़ार जाना पड़ता था। मैं अपना बैग लेकर सब्जी मार्केट गया हुआ था। गर्मी थी, इसलिए हाफ पैंट और टी-शर्ट में ही था। जब मैं सब्जी ले रहा था, तो वहां पर कुछ लड़कियां भी हाफ पैंट आउट टी-शर्ट में आई हुईं थी।

एक महिला खरीददार नाक मुंह सिकोड़ते हुए बोली, राम-राम , घोर कलियुग आ गया है। पता नहीं इनके माँ-बाप इनको क्या सिखाते हैं? पूरा शरीर तो खोलकर दिखा रही हैं ये बेशर्म लड़कियां? इस कोरोना के समय में क्या पैसे की इतनी तंगी हो गई है कि ढंग के कपड़े पहनने तक के पैसे इनके माँ-बाप के पास नहीं हैं?

मुझे इस वाकये से मुझे एक और घटना याद आ गई। लगभग 10 दिन पहले की बात है, एक केस के सिलसिले में मैं दिल्ली हाई कोर्ट गया हुआ था। कोर्ट में केस खत्म हो जाने के बाद मैं चाय पीने के लिए कैंटीन चला गया। वहां पर कुछ लॉ इंटर्न आए हुए थे, जिसमें कुछ लड़के और लड़कियां थीं। लॉ इंटर्न दरअसल, लॉ के वो स्टूडेंट होते हैं, जो कानून की ट्रेनिंग लेने के लिए हाई कोर्ट में आते हैं। आप इन्हें लॉ ट्रेनी भी कह सकते हैं। नई जेनरेशन के बच्चे थे, जाहिर सी बात है, धड़ल्ले से बेखौफ होकर एक-दूसरे से बातें कर रहे थे। लड़के और लड़कियां दोनों सिगरेट के गोल-गोल गुलछर्रे बना के हवा में उड़ा रहे थे। वे एक-दूसरे से सिगरेट के गोल-गोल गुलछर्रे बनाने में प्रतिस्पर्धा भी कर रहे थे।

मैं दुकानदार के पास पैसे देने गया। दुकानदार मेरी जान-पहचान का था। उसने बड़ी हिकारत भरी नज़रों से लड़कियों की तरफ इशारा करते हुए कहा, पता नहीं किस खानदान की लड़कियां हैं ये? पता नहीं इनके माँ-बाप  इन्हें क्या सिखाते हैं? इस तरह सिगरेट पीना कौन से अच्छे घर की बात हो सकती है भला? मैं चुपचाप पैसे देकर हट गया। लड़के और लड़कियां अभी भी बड़ी बेफिक्री से सिगरेट के गोल-गोल गुलछर्रे बना कर हवा में उड़ाने में व्यस्त थे।

इन दोनों घटनाओं ने मुझे कुछ सोचने पर मज़बूर कर दिया। ये दोनों घटनाएं हमारे समाज की संकीर्ण दूषित मानसिकता को दृष्टिगोचित करती हैं। लड़के और लड़कियां दोनों ही सिगरेट पी रहे थे, पर दुकानदार की उंगली सिर्फ लड़कियों पर ही क्यों उठी? टी-शर्ट और हाफ-पैंट में, तो मैं भी सब्जी लेने बाज़ार गया था, लेकिन वहां  पर महिला को टी-शर्ट और हाफ पैंट वाली लड़कियां ही क्यों दिखाई पड़ी? यह अजीब पैमाना है हमारे समाज का।

लड़का सिगरेट पिए, तो कोई बात नहीं, यदि लड़की पिए, तो उसका पूरा खानदान ही खराब है। यदि मर्द टी-शर्ट और हाफ-पैंट में घूमे, तो कोई बात नहीं, लेकिन यदि कोई स्त्री या लड़की टी-शर्ट और हाफ-पैंट में घूमे, तो इसके माँ-बाप के पास उसके कपड़ों के लिए पैसे ही नहीं हैं। हद तो इस बात की है कि हमारे समाज में स्वयं स्त्रियां भी स्त्रियों के खिलाफ ही इस लैंगिक भेदभाव की संकीर्ण और दूषित मानसिकता का शिकार हैं। इन्हें भी सिगरेट पीने वाली लड़कियों पर ही आपत्ति है, लड़कों पर नहीं। इन्हें भी टी-शर्ट और हाफ-पेंट में घूमने वाली लड़कियां ही आपत्तिजनक दिखती हैं, लड़के नहीं। यह लोगों की अजीब दोहरी मानसिकता है।

हालांकि, सिगरेट पीने को मैं कही से भी उचित नहीं मानता। यह सभी जानते हैं कि धूम्रपान सेहत के लिए बहुत  खतरनाक है। सिगरेट, खैनी या गुटका खाने से लीवर, हार्ट,और फेफड़ों पर बुरा असर पड़ता है। धूम्रपान का बढ़ावा देने का मतलब अपनी मौत को बुलाना है। मेरी राय में तो धूम्रपान को वैधानिक रूप से निषेध ही कर देना चाहिए। मैं किसी तरीके के धूम्रपान का समर्थन नहीं करता, पर यहां पर मुद्दा धूम्रपान का सेवन करना नहीं है।

यहां मुद्दा तो हमारे समाज के दोहरे मापदंड का है। यदि कोई लड़का बड़े मज़े में बिना किसी रोक-टोक के सिगरेट पी सकता है, तो फिर लड़कियां क्यों नहीं? बात यहां पर हमारी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आज़ादी की है। यदि लड़के धूम्रपान करने के लिए स्वतंत्र हैं, तो लड़कियों को भी समानता से वे ही अधिकार मिलने चाहिए। यदि सिगरेट पीने वाले लड़को को हमारे तथाकथित सभ्य समाज में हिकारत भरी नज़रों से नहीं देखा जाता, तो लड़कियों को भी नहीं देखा जाना चाहिए। लड़के भी धूम्रपान के दुष्परिणामों को झेल लेते हैं, तो लड़कियां भी झेल लेंगी। किन्तु मात्र धूम्रपान के कारण लड़कियों एवं उनके खानदान के चरित्र और मानसिकता का आकलन करना कहां तक उचित है?

यही बात हाफ-पैंट और टी-शर्ट में घूमने की बात पर भी लागू होती है। गर्मी तो स्त्री या पुरुष में कोई भेद भाव नहीं करती है। यदि गर्मी पुरुषों को लगती है, तो लड़कियों को भी तो लगती होगी। यदि पुरुषों को हाफ-पैंट और टी-शर्ट में घूमने की आज़ादी है, तो यह आज़ादी लड़कियों को भी समानता से मिलनी चाहिए। केवल इस बात से किसी लड़की को गलत नज़र से क्यों देखा जाता है कि वो हाफ-पैंट और टी-शर्ट में घूम रही है? यदि कम वस्त्र में घूमने का अधिकार पुरुषों को प्राप्त है, तो यही अधिकार महिलाओं को क्यों नहीं प्राप्त है? महिलाओं को हाफ-पैंट और टी- शर्ट में घूमने के कारण हमारे समाज में हिकारत भरी नज़रों से क्यों देखा जाता है? फिर हमारे भारतीय संविधान में किस तरह की समानता का प्रावधान किया गया है?  समानता का अधिकार केवल बात करने के लिए ही तो नहीं है?

भारत में तो गर्मी का मौसम एक कारण है, जिस कारण लड़कियों के लिए हाफ-पैंट और टी-शर्ट में घूमने की बात को तार्किक रूप से प्रस्तुत किया जा सकता है। पर बाहर के देशों में तो बिना किसी कारण के ही यह आज़ादी वहां महिलाओं को प्राप्त है। हमें यह देखना चाहिए कि किस तरह के वातावरण में बाहर के देशों में लड़कियां और महिलाएं जी रही हैं?

मैं कुछ वर्ष पहले बर्लिन और वाशिंगटन गया हुआ था। जर्मनी और अमेरिका में तो काफी ठंड थी, फिर भी वहां  महिलाएं और स्त्रियां हाफ-पैंट और टी-शर्ट में बड़े आराम से घूम रही थी। वहां उन्हें कोई रोक-टोक करने वाला नहीं था। सिगरेट पीने वाली महिलाओं को भी कोई घूरने वाला नहीं था। शायद स्त्रियों की इस निर्भीकता और स्वतंत्रता के कारण ही जर्मनी और अमेरिका इतने विकसित हो पाए हैं। हालांकि, मैं सिगरेट पीने वाली महिलाओं और लड़कियों का समर्थन नहीं करता, तो दूसरी तरफ इस कारण से मैं उनकी निंदा भी नहीं करता। उनका जीवन है, उनकी चॉइस है, उनके परिणाम वो भुगतें पर समाज कौन होता है उनको बुरी नज़र से देखने के लिए या उनके पहनावे, रहन-सहन से उनके चरित्र को आंकने वाला?

आखिर हम इस तरह के निर्भीक समाज की स्थापना हमारे देश भारत में क्यों नहीं कर पा रहे हैं? यहां पर कोई लड़की यदि अपने बॉयफ्रेंड के साथ रात को घूमती है, तो उसके साथ निर्भया जैसी घटना क्यों घट जाती है? हमारे समाज में लड़कियों के कम कपड़े पहनने का अर्थ यौन सम्बंध का निमंत्रण क्यों मान लिया जाता है? रात को लड़का अपनी गर्लफ्रेंड के साथ घूमे, तो किसी की नज़र नहीं जाती पर यदि लड़की घूमे तो वह समाज की नज़रों में कुल्टा घोषित हो जाती है। यहां बात स्त्रियों और लड़कियों पर समाज द्वारा लगाई गई अनगिनत पाबंदियों की है। इस तरह डर के माहौल में स्त्रियां मज़बूत कैसे रह पाएंगी?

हमारा देश इस तरह की संकीर्ण एवं दूषित मानसिकता लिए कैसे आगे बढ़ पाएगा? जब तक हमारे समाज का आधा अंग डरते-डरते जीने के लिए बाध्य होगा तब तक समाज का पूर्ण विकास बहुत मुश्किल है। हमें इस सोच से बाहर निकलना होगा।

हमें हमारे देश भारत एवं समाज में एक ऐसे माहौल की स्थापना करना बहुत ज़रूरी है,जहां पर स्त्रियों और लड़कियों को पुरुषों एवं लड़कों के समकक्ष आज़ादी प्राप्त हो। जहां पर एक लड़की भी उसी निर्भयता और आज़ादी के साथ रातों को घूम सके, जिस निर्भयता और आज़ादी के साथ लड़के घूमते हैं। तब ही हमारे समाज का सच्चे अर्थों में  सम्पूर्ण सर्वांगीण विकास संभव है। आखिर सबकी स्वतंत्रता और निर्भीकता ही तो एक स्वस्थ और प्रगतिशील समाज का निर्माण करती है।

 

Exit mobile version