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जीवन के ऊहापोह में सम्बल देने वाली रचना

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भारतीय ज्ञानपीठ से छपा उपन्यास “किराये का मकान” यह उपन्यास “भूमिका द्विवेदी”जी को स्त्री विमर्श की क़द्दावर लेखिकाओं की अग्रिम पंक्ति में शुमार करता है।           लेखिका की अन्य रचनाओं को यदि आप पढ़ेंगे तब आपको लगेगा कि इनके कथानकों के स्त्री किरदार संघर्ष करते हुये अपने ध्येय को प्राप्त करतीं हैं।

 

भूमिका द्विवेदी का ज्ञानपीठ से छपा किराये का मकान

“किराये का मकान” एक ऐसी ही रचना अभिव्यक्ति है, जिसमें आप शहरी अभिजात्य वर्ग से रु-ब-रु तो होते ही हैं, साथ ही उनके खोखले दम्भ से भी बारीकी से परिचित होंगे। यहां आभिजात्यिक चोला पहने हुए पाखण्ड के नीचे की क्रूर सत्यता को परत-दर-परत उघड़ते देखा जा सकता है।

यह उपन्यास दरअसल एक रोज़ी-रोटी को अपने उद्दाम साहस और विकट परिस्थितियों में भी ईमानदारी से कमाने वाली लड़की की बहादुरी, साहस और स्वाभिमान की कहानी है।

एक घोर जीजीविषा वाली माँ की कहानी!  जो अपने खुद्दारी के चलते अपनी शानदार हवेली से निर्वासित की जा चुकी है, जो हर हाल में अपने दो योग्य और मासूम बच्चों को किस प्रकार सीमित संसाधनों में भी पढ़ाती-लिखाती है और अपने स्वाभिमान को ज़िंदा रखते हुये आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।

उस माँ के अदम्य साहस और उत्कट स्वाभिमान का सम्मान सभी करते हैं, चाहे वह विद्यालय की मालकिन हो, प्रशासन हो, समाज हो, या एक भली मकान मालकिन या कहो उसका युवा बेटा मगर सिवाय लालची और महा पाखण्डी मकान मालिक और उसकी और ‘सोने लदी गधी’ दूसरी किरायेदारनी के।

लेखिका सामान्य पाठक तक पहुंचने में पूरी तरह सफल हुई हैं, ये इनकी भाषा की अद्भुत सरलता और प्रवाह से ज्ञात होता है और सच तो यह है की नाकार का ध्येय यही होना चाहिए। बेहतरीन वाक्य विन्यास और सुदृढ़ अध्याय-विपणन लेखिका के कुशल उपन्यासकार होने का प्रमाण दे रहा है।

 

भूमिका द्विवेदी

“रुख़सती” अध्याय के शुरूआत में जो दार्शनिक बातें हैं, वो उपन्यासकार के पारम्परिक तथा आधुनिक दर्शन-ज्ञान की झलक दिखा रहा है। उपन्यास की भूमिका में ईशावास्योपनिषद के प्रथम मंत्र हो या यत्र-तत्र शेरों-शायरी का प्रयोग ये सब कलम की प्रौढ़ता और गम्भीर अध्ययन शीलता को सिद्ध करता है।
यथा,

ये दबदबा,ये हुकूमत,ये नशा-ए-दौलत,
किरायेदार हैं सब,मकान बदलते रहते हैं।

ये दुनिया ही एक किराये का मकान है, के ध्रुव सत्य से आरम्भ होने वाली भूमिका का रोचक उपन्यास “किराये का मकान” की निर्मिति महिलाओं के समक्ष प्रस्तुत एक ज्वलंत और समसामयिक प्रश्न पर आधारित है।

सिंगल पैरेंट (अकेली) के कठिन संघर्ष की कहानी को लेखिका ने परत-दर-परत बहुत ही संवेदनशील ढंग से उकेरा है। इसी बिंदु को केंद्र में रखकर उड़ीसा और राजस्थान में दो बेहतरीन शोध भी इस उपन्यास पर इसी वर्ष हुए हैं।

युवा लेखिका भूमिका द्विवेदी

इस किताब के ताने बाने में एक युवा होती लड़की की इच्छाओं, आकांक्षाओं और निराशाओं की कहानी के साथ-साथ दो युवा लोगों की प्रेम कहानी को भी बेहद संवेदनशीलता और दक्षता से बुना गया है।

लेखिका ने जिस गंगाजमुनी भाषाशैली, माहौल का चुनाव किया है, वह आज के साहित्य-जगत मे दुर्लभ है।  हिन्दी, उर्दू और  संस्कृत के शब्दों से पाठक खूब समृद्ध होता चलता है। कहानी जीवनगति को सहज रूप से एक साथ पिरोते चलती है।

उपन्यासकार  भूमिका जी और प्रकाशक भारतीय ज्ञान पीठ को बहुत बहुत बधाईयां।

 

 

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