किसी भी देश की युवा आबादी उस देश की रीढ़ की हड्डी मानी जाती है। इसलिए कि एक शिक्षित, कौशल युक्त और समझदार युवा में शक्ति होती है, अपने देश के भविष्य और अर्थव्यवस्था को संवारने की। मगर क्या हो जब उस देश के युवा ही गर्त में हों? भारत की लगभग 60 करोड़ आबादी 25 वर्ष से कम और लगभग 70 प्रतिशत आबादी 40 वर्ष से कम उम्र की है।
सबसे ज़्यादा युवा आबादी वाला देश
भारत दुनिया का सबसे युवा देश है लेकिन इस देश के ज़्यादातर युवा दिशाहीन नज़र आ रहें हैं। इन युवाओं को विभिन्न समस्याओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। जिसका नतीजा है कि देश के विकास में युवाओं की भागीदारी उम्मीद से बेहद कम है। इसके सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, राजनीतिक इत्यादि कई कारण हैं।
वर्ल्ड बैंक के 2017 के रिपोर्ट के अनुसार 2021 में भारत विश्व का सबसे युवा देश है। जहां 0-14 उम्र के 360 मिलियन (36 करोड़) बच्चे हैं। इन बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिलाने में सरकार की अहम भूमिका निभानी पड़ेगी, क्योंकि भारत के 60 प्रतिशत बच्चे सरकारी स्कूलों पर निर्भर होते हैं।
हमारे सरकारी स्कूलों की स्थिति बहुत ही दयनीय है और ज़्यादातर बच्चे आर्थिक रूप से कमज़ोर होने की वजह से प्राइवेट स्कूलों का सहारा नहीं ले सकते। विडंबना यह है कि प्राइवेट स्कूलों में भी भारी खर्च करने के बावजूद बच्चों को वर्तमान समय के अनुकूल नहीं पढ़ाया जाता।
युवाओं में कौशल की भारी कमी
भारत में आज के युवाओं की सबसे पहली चिंता शिक्षा है। भारतीय युवा बेहतर शिक्षा, रोजगार संचालित प्रशिक्षण और उज्जवल भविष्य की मांग करते हैं। युवा यह भी चाहते हैं कि कौशल आधारित शिक्षा और नौकरी का स्थान हर उच्च संस्थान का हिस्सा होना चाहिए। करियर से जुड़े पाठ्यक्रमों पर अधिक ज़ोर दिया जाना चाहिए और केवल किताबी ज्ञान की बजाय वास्तविक जीवन परिदृश्य के साथ एक संबंध होना चाहिए।
गाँव के युवाओं में आमतौर पर अच्छे संचार कौशल का अभाव होता है। यह भी प्रमुख चिंताओं में से एक है, क्योंकि यह नौकरी और प्रगति पाने के रास्ते में एक बाधा के रूप में कार्य करता है।
हाल ही में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने ICSE और CBSE के 1996 से 2015 तक के 86 टॉपर्स को ट्रैक कर उनसे बातचीत की। जिसमें टॉपरों ने स्कूलों का केवल किताबी ज्ञान देना, डिबेट न कराना, पब्लिक प्लेस में बोलने का मौका न मिलना, 10वीं-12वीं में आगे के करियर के बारे न बताना और स्कूल के दौरान कई मुख्य कौशल ना सिखाना जैसी भारतीय शिक्षा व्यवस्था में कई खामियां गिनाई। उन्होंने बताया कि इसकी वजह से उन्हें अपने करियर में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
UNICEF की 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार 19 प्रतिशत भारतीय युवा कौशल की कमी के कारण किसी भी जॉब के लिए अयोग्य हैं। 2030 तक ऐसे अयोग्य युवाओं की संख्या बढ़कर 47 प्रतिशत हो जाएगी। UNICEF प्रमुख ने भारत सरकार से ऐसी पहल करने का आग्रह किया, जो युवाओं के बेहतर भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सके।
ILO के अनुसार 2020 में भारतीय युवाओं में लगभग 24 फीसदी बेरोजगारी दर थी। इनमें भी पढ़े-लिखे युवाओं की संख्या ज़्यादा थी, क्योंकि बिना पढ़ा-लिखा युवा कोई भी काम करने को तैयार था। वहीं पढ़ा-लिखा युवा अपने क्षेत्र में ही रोज़गार ढूंढता है और कौशल की कमी की वजह से रोज़गार ढूंढने में नाकाम रहा।
तनाव में नशे की तरफ रूख करते युवा
ये तो हुई उन युवाओं की बात, जो एक निर्धारित रास्ते पर चल कर अपने लक्ष्य की प्राप्ति में कई बाधाओं का सामना करते हैं। इसके अलावा कई युवा ऐसे हैं, जो वास्तव में भटके हुए हैं। उन्हें सही दिशा ही नहीं पता होता और न ही कोई उचित मार्गदर्शन है। नतीजा यह हो रहा है कि ऐसे युवा असामाजिक कार्यों अथवा जुर्म में संलिप्त हो जाते हैं। घर में माता-पिता से दूरी, तनाव और गलत दिशा-निर्देश की वजह से ये शराब, गांजा, ड्रग्स जैसे नशे के चंगुल में फंस जाते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत की लगभग 30 प्रतिशत आबादी नियमित रूप से शराब का सेवन करती है। शराब न पीने वाले अंडर -15 लड़कों का प्रतिशत 44 प्रतिशत से घटकर 30 प्रतिशत हो गया है और लड़कियों के लिए यह 50 प्रतिशत से घटकर 31 प्रतिशत हो गया है।
WHO और NIAAA (National Institute of Alcohol Abuse and Alcoholism) की एक रिपोर्ट के अनुसार, शराब का सेवन करने वाले भारतीय युवाओं की संख्या खतरनाक ढंग से बढ़ रही है। विशेष रूप से मेट्रो शहरों में, जहां इसे न केवल वयस्कों के बीच, बल्कि किशोरों के बीच भी समाजीकरण के तरीके के रूप में स्वीकार किया गया है।
अनैतिक गतिविधियों की तरफ आकर्षित होते युवा
इन सब के अलावा सोशल मीडिया और इंटरनेट के आने से आज का युवा जल्द से जल्द मशहूर होकर अपनी पहचान बनाने की फिराक में रहता है। वह योग्य बनने की बात नहीं करता, बल्कि हमेशा एक शाॅर्ट कट के ज़रिए सफलता पाने की कोशिश में रहता है। हमारे युवाओं में तार्किकता की कमी महसूस की जा रही है। किसी भी फैसले पर उनका अपना मत नहीं होता।
अधिकांश युवा और छात्र बिना किसी तथ्य और सूचना के हैं और निर्णय लेने के लिए तथ्यों की बजाय केवल धारणा पर निर्भर हैं। वे कुछ रचनात्मक कार्य, अध्ययन, अनुसंधान आदि करने की बजाय सोशल मीडिया पर समय गुजारना पसंद करते हैं। मुख्यधारा पर किसी का ध्यान केंद्रित नहीं है। आज के ज़्यादातर युवा वासना, घमंड, अहंकार, अनादर, अवज्ञा और अनुशासनहीनता से लिपट हैं।
ये ऐसे लक्षण हैं जो केवल खराब आदतों से ही विकसित हो सकते हैं।
उभरते भारत में युवाओं में नैतिकता की गिरावट एक महत्वपूर्ण समस्या है। नैतिकता एक सही नैतिक निर्णय लेने में मदद करती है। युवा शक्ति एक राष्ट्र की प्रेरक शक्ति है; अगर यह सही दिशा में चलता है। मगर अब युवाओं को विभिन्न अनैतिक गतिविधियों की ओर सोशल मीडिया के माध्यम से आसानी से भटका दिया जा रहा है।
जो न केवल वर्तमान भारतीय समाज को प्रभावित करता है, बल्कि यह हमारी सभ्यता की भावी पीढ़ी को भी प्रभावित करता है। नैतिक मूल्य सामाजिक समस्याओं जैसे अशांति, सामाजिक क्षरण, अपराध, अलगाववाद, वर्ग-समुदाय संघर्ष, अलगाव, सेवा भाव की कमी और सभी सामूहिक दूरी कम करते हैं।
युवाओं के लिए युवा सोच ही नीति निर्धारण करे
वर्तमान में भारतीय युवा हर क्षेत्र में तीव्र दबाव का सामना कर रहा है। युवाओं को राजनीति में कोई दिलचस्पी ही नहीं है, क्योंकि राजनीतिक वर्ग उस चीज़ के बारे में बात नहीं कर रहा है, जो उनमें दिलचस्पी जगाए। जैसे विज्ञान, इनोवेशन, शिक्षा, स्वास्थ्य, जलवायु इत्यादि। कुछ युवा तो चाहकर भी राजनीतिक परिवारवाद और चुनावी खर्चों के कारण राजनीति में प्रवेश नहीं कर पा रहे हैं।
हमारे देश के नेताओं और युवाओं के उम्र में भी एक व्यापक अंतर मौजूद है, जो विचारों के बीच भी अंतर पैदा करता है। अगर हम देश की औसत आयु और हमारे नेताओं की औसत आयु को देखें तो यह स्पष्ट है कि देश की औसत आयु 28 वर्ष है जबकि हमारे कैबिनेट मंत्रियों की औसत आयु 65 वर्ष है। यह अंतर किसी अन्य देश के अंतर की तुलना में बहुत व्यापक है।
इससे पता चलता है कि ऐसे परिदृश्य में जहां इस तरह की व्यापक खाई मौजूद है और अधिकांश जनसंख्या युवाओं से युक्त है, तो ऐसे में ज़रूरी हो जाता है कि इस नए समय मे नई सोच के साथ राजनीतिक वर्ग एक नीति निर्धारण करे और इसमे देश का युवा बढ़-चढ़कर हिस्सा ले।