महिला दिवस को आए और गए 1 महीना भी पूरा नहीं गुज़रा है। साथ ही अब चैत्र भी दस्तक देने वाला है मतलब अब नवरात्र भी आ जाएंगे। जहां महिला दिवस पर महिलाओं के आत्मसम्मान, सुरक्षा के कसीदे पढ़े जाते हैं, वहीं नवरात्र लड़कियों को पूजने का भी त्यौहार माना जाता है।
महिला दिवस पर उत्तर प्रदेश सरकार ने मिशन शक्ति का आगाज़ किया था। जिसमें सेफ सिटी परियोजना के तहत यह महिलाओं को समर्पित किया था, लेकिन जहां एक ओर ऐसे मिशन चलाए जा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ महिलाओं पर हो रहे अत्याचार, शोषण में रत्ती भर की भी कमी नहीं आई है।
क्या है असल घटना
हाल ही में उत्तर प्रदेश के ज़िला मेरठ के एक गांव में कक्षा 10 की स्टूडेंट ने ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली और उसकी वजह थी उसके साथ हुआ गैंगरेप गुरुवार के दिन कोचिंग से लौटते वक्त कुछ लोगों ने उसे रास्ते में रोक लिया फिर कहीं सुनसान जगह ले जाकर उसके साथ गैंगरेप किया। इस सबसे लड़की इतनी आहत हुई की घर आकर उसने आत्महत्या कर ली।
मेरठ ग्रामीण के पुलिस अधीक्षक केशव कुमार ने पीटीआई को बताया कि लड़की ने अपने सुसाइड नोट में आरोपी का नाम लिखा है। पुलिस ने अन्य दो आरोपियों की तलाश शुरू कर दी है। कुमार ने कहा, सुसाइड नोट को हम आगे की परीक्षा के लिए फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला में भेजेंगे। परिवार के आरोप के अनुसार प्राथमिकी रिपोर्ट दर्ज की गई है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों के आंकड़े
यह क्या महिलाओं के प्रति अपराध की कोई पहली घटना नहीं है और ना ही आखिरी घटना बनने वाली है? अगर हम आंकड़ों की बात करें, तब नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी की इस साल जनवरी में आई सालाना रिपोर्ट कहती है कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलों में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है।
देश में महिलाओं के खिलाफ 2018 में कुल 378,277 मामले हुए और अकेले यूपी में 59,445 मामले दर्ज किए गए। यानी देश के कुल महिलाओं के साथ किए गए अपराध का लगभग 15.8% है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में कुल रेप के 43,22 केस सामने आए मतलब हर दिन 11 से 12 रेप केस दर्ज किए गए और ये उन अपराधों पर तैयार की गई रिपोर्ट है जो दर्ज हैं।
इन रिपोर्ट में ऐसे केस तो रह ही जाते हैं, जिनकी कभी कोई शिकायत दर्ज ही नहीं की गई। आपको बता दें एनसीआर देश के गृह मंत्रालय के अंतर्गत आता है।
हमारे देश की लचर एवं निष्क्रिय न्यायिक व्यवस्था
सोचिए! जब महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों के आंकड़े इतने डरावने हैं तब उनकी सुरक्षा की स्थिति कितनी भयावह होती होगी। हम एक ऐसे समाज का हिस्सा हैं, जहां महिलाओं की सुरक्षा, उन्हें संस्कारवान बनाए जाने की इतनी बातें की जाती हैं, लेकिन हकीकत यह है कि वो स्कूल से घर तक के रास्तों में सुरक्षित नहीं हैं और इसकी एक बड़ी वजह है हमारे सिस्टम और न्यायिक प्रक्रियाओं का लचर होना।
यदि मुझे मालूम है कि मुझे अपराध की सज़ा क्या भुगतनी है, तब शायद मैं अपराध करने से भी डरूं मगर हमारे देश में महिला सुरक्षा की बातें और कानून बहुत हैं, लेकिन उन्हें सुरक्षित रखने के मज़बूत तरीके कोई नहीं हैं।
आप खुद से प्रश्न कीजिए इस घटना के बाद एक समाज के तौर पर आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या होगी? मैं बताती हूं, यह समाज जिसमें आप, मैं और हम सब जिसमें हमारे माँ-बाप, भाई-बहन आदि सभी आते हैं। इस घटना पर पहली प्रतिक्रिया जहां हमें एक समाज के तौर पर कहना चाहिए था कि आरोपी को जल्द-से-जल्द पकड़ा जाए। वहां हम सबसे पहले अपनी बहन-बेटियों को कहते हैंबाहर थोड़ा सम्भलकर जाया करो, बल्कि जरुरत ना हो तो जाना ही क्यों?
हम एक सभ्य समाज के नाते असफल साबित हुए हैं
दोनों ही बातों में अंतर देखिए कि हमें करना क्या चाहिए था और हम क्या कर रहे हैं? यकीन मानिए एक रेप सर्वाइवर के साथ ये सब होने में हम भी उतने ही अपराधी हैं, जितना एक अपराधकर्ता क्योंकि हम एक समाज के तौर पर एक लड़का, एक लड़की की स्वस्थ्य मानसिकता को कभी समझ ही नहीं पाए हैं और ना ही समझा पाए हैं।
सोचकर देखिए ऐसा क्या है? ऐसी कौनसी मानसिकता है जो इस विकृति को जन्म देती है। पहला हमारे समाज में लड़कियों को दोयम दर्जे पर रखा जाना। जहां लड़कियों को बोलने, उठने, बैठने की आज़ादी तक ठीक से नहीं दी जाती और घरों में लड़का हो या लड़की! हर कोई यही देख-सुनकर बड़ा हुआ है।
एक पुरुषवादी समाज में जहां हम पुरुष को अग्रणी मानते हैं, जो खुद को उनसे आगे समझता है। उसे लगता है यदि किसी का हाथ पकड़ भी लिया तो क्या होगा? ज़्यादा-से-ज़्यादा चीख-चिल्लाकर घर चली जाएगी और ऐसे ही छेड़छाड़ से मामले बलात्कार पर पहुंच जाते हैं। यूं भी एक लड़की घर में भी ऐसे कई बलात किए गए कार्यों को झेलती रहती है, जो उसके मर्ज़ी के नहीं होते हैं लेकिन उसे इतना अधिकार नहीं दिया जाता कि वो उनके खिलाफ आवाज़ उठा पाए।
इन अपराधों पर लगाम कसने के लिए पहली शिक्षा घर और वो वातावरण है, जो सबको एक समान समझे। एक स्वस्थ शिक्षा ऐसे कई अपराधों से हमें, हमारे समाज और खुद को भी बचाने में मदद कर सकती है। जैसा कि पुलिस ने कहा अभी इस सबकी जांच की जाएगी। न्यायिक प्रक्रिया हम सब जानते हैं जहां अपराध साबित करने में सालों-साल लग जाते हैं।
पीड़िता कोर्ट कचहरी के अंदर धक्के खाती रहती हैं और अपराधी ज़मानत पर छोड़ दिए जाते हैं। उम्मीद है इस आत्महत्या को हत्या ही समझा जाएगा और न्यायिक प्रक्रिया अपराधियों को जल्द ही पकड़ पाएगी लेकिन, प्रश्न अब भी वही है क्या अपराधियों को पकड़ भर लेने से महिलाओं के प्रति रोज़ देश में होने वाले अपराध कम हो जाएंगे?