Site icon Youth Ki Awaaz

बाबा साहेब अंबेडकर के नज़रिए से बौद्धिक विकास का असली अर्थ क्या था?

एक विचार को प्रसार की उतनी ही आवश्यकता होती है,

जितना कि एक पौधे को पानी की आवश्यकता होती है।

       नहीं तो दोनों मुरझाएंगे और मर जाएंगे।

हिंदुस्तान के इतिहास और वर्तमान में एक नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है, वो नाम है भीम राव अम्बेडकर। प्यार से हम इन्हें ‘बाबा साहब’ भी कहते हैं। बाबा साहब के जन्म के समय से ही देश अंग्रेजों का गुलाम था। जिस जाति में वह पैदा हुए वो जाति देश के साथ-साथ सामाजिक गुलामी को भी पिछले हज़ार वर्षों से झेल रही थी।

दलित समाज में पैदा हुए

जिस जाति में पैदा होने मात्र से ही व्यक्ति के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता था, जैसे कि वह कोई अछूत जानवर हो। जिसे छूने मात्र से ही कोई बीमारी हो जाती हो। ऐसा माना जाता था कि छूने मात्र से ही लोगों का धर्म भ्रष्ट हो जाता है।

समाज में इनकी स्थिति ऐसी थी कि इन्हें कुएं से पानी भी नहीं लेने दिया जाता था। मंदिर में जाने की इजाज़त नहीं थी। अपना अधिकार मांगना तो दूर, जताने तक की छूट नहीं थी। अगर छूट थी तो बड़ी जातियों की सेवा करने, उनके सम्मान करने व उनके आगे अपनी आवाज़ का गला घोंट कर उनके हां में हां करने की।

समाज के बीच इनका शोषण बढ़ता जा रहा था। इनका शोषण मानसिक, शारीरिक, व दैहिक छुआछूत के रूप मे बड़ी जातियों की रूढ़ीवादी सोच से इस प्रकार घिरी हुई थी कि इससे बाहर निकलना बहुत मुश्किल था।

अंबेडकर ने देश को समानता व बंधुत्व की राह दिखाई

ऐसे समाज से निकलकर उन्होंने‘कोलंबिया विश्वविद्यालय’ व ‘लंदन स्कूल ऑफ इकॉनमिक्स’ तक का सफर तय किया। अपने समाज के बीच से निकलकर इस ऊंचाई पर पहुंचने वाले वे पहले व्यक्ति थे।

आज अगर यह देश एकता, समानता व बंधुत्व को लेकर आगे बढ़ा है, तो इसका श्रेय बाबा साहब की सोच, उनकी कुशल नेतृत्व को ही जाता है। संविधान में सभी धर्म व जाति को एक ही तख्त पर समान रूप से बिठाकर ऊंच-नीच, छोटा-बड़ा, तथा श्रेष्ठता के आधार को खत्म करने का योगदान भी इन्हीं को ही दिया जाना चाहिए।

कभी शिक्षा की बजाय सेवा को अपना कर्तव्य समझने वाली असमर्थ जातियां आज अगर स्कूल जा रही हैं, शिक्षा पा रही हैं, अपने अधिकारों को लेकर जागरूक हुई हैं, तो इसमें सबसे बड़ा योगदान बाबा साहब का ही है। शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है, यह बताने वाले वह पहले व्यक्ति थे।

जिन दलितों के कमर के पीछे कभी झाड़ू बांध दिया जाता था ताकि वह जिस रास्ते से गुज़रे अपने कदम का निशान मिटाते जाए। यह सोच हिंदू धर्म में व्याप्त रूढ़ीवादी सोच की पराकाष्ठा को दर्शाता था। उस दलित समाज का लड़का आज अगर ब्राह्मण और क्षत्रिय के साथ बैठ कर शिक्षा पा रहा है या उनकी बराबरी में चल रहा है, तो यह बाबा साहब की देन है।

बाबा साहेब के नज़रिए से बौद्धिक विकास क्या था?

प्रत्येक साल १४ अप्रैल को बाबा साहब की जयंती मनाई जाती है। किसी भी महापुरुष की जयंती इसलिए मनाई जाती है कि इसके माध्यम से हम उन महापुरुष के विचारों को जान सकें। बाबा साहब ने कहा था कि ‘बुद्धि का विकास मानव जीवन के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए’। बाबा साहब के ये चंद शब्द जीवन को समझने के लिए काफी हैं।

पूरी दुनिया नाम, काम व पैसों के पीछे भाग रही है लेकिन बौद्धिक विकास के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोच रही है। शायद उसे बौद्धिक विकास मालूम ही नहीं है।

बाबा साहब के बौद्धिक विकास से मतलब है, देश, समाज और परिवार के बीच समानता, विकास व अपनेपन की बात करना। बाबा साहब ने उस नज़रिये से विकास की बात की है, जो समाज में फैले रूढ़ीवादी सोच पर प्रश्न करे। समाज के असमानता पर प्रश्न करे। समाज को तोड़ने की बजाय जोड़ने की बात करे तथा समाज के बीच में रहकर सामाजिक विकास के लिए काम करे।

बाबा साहब उस बौद्धिक विकास की बात कर रहे हैं, जो एक मानव का दूसरे मानव के प्रति प्रेम, लगाव और करुणा की बात करे। तभी मानव जीवन का अस्तित्व संभव है, अन्यथा मशीनी विकास तो हो रहा है जहां समाजिकता को कोई स्थान नहीं है।

समकालीन नेताओं से कभी मनभेद नहीं रहा

बाबा साहब का इस देश के कई बड़े नेताओं के साथ मतभेद भी रहा, परंतु मन का भेद कभी न रहा। जहां ज्ञान का प्रकाश होता है, वहीं मतों में भी भेद होता है। आज कुछ पार्टियों द्वारा कांग्रेस पर अम्बेडकर विरोधी होने का आरोप लगाया जा रहा है, किंतु उन्हें इस बात को भी जान लेना चाहिए कि संविधान सभा में बैठने का पहला अवसर बाबा साहब को कांग्रेस से ही मिला था।

आज जिस भारत का सपना बाबा साहेब ने देखा था, जिसमें समानता तथा समरसता हो, उस भारत को हम लगातार बनाने में लगे हुए हैं। यह बाबा साहब के उस कल्पना की जीत है, जिसे उन्होंने कभी अपने कलम की नोंक से संविधान के पन्नों पर उकेरा था। जिसे कांग्रेस ने पूरा करने का हमेशा से प्रयत्न किया है।

आज के इस दौर में दलितों के हक व आवाज़ को लेकर चलने वाली कोई पार्टी है, तो वह कांग्रेस है। उसकी छात्र इकाई NSUI, जो बिना किसी मतभेद के सदैव छात्र हित में अपनी आवाज को बुलंद किया है तथा बाबा साहेब के सपनों को पूरा करने में लगी हुई है।

अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना

हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है

बशीर बद्र

Exit mobile version