बीते दिनों भारत के एक समाजसुधारक, दार्शनिक, विचारक एवं लेखक ज्योतिबा फूले जी की जयंती थी। यह किस्सा ज्योतिबा, उनकी पत्नी सावित्री और उनके पिता से जुड़ा एक संवाद है।
दूसरी शादी को लेकर ज्योतिबा फुले की शर्त
जब शादी के काफी समय बाद भी फुले दम्पत्ति के यहां कोई संतान नहीं हुआ, तो ज्योतिबा पर उनके पिता दूसरी शादी के लिए दबाव बनाने लगे। अंततः एक दिन ज्योतिबा कहते हैं,
“ठीक है मैं दूसरी शादी करने के लिए तैयार हूं लेकिन इस शर्त पर कि पहले सावित्री की मेडिकल जांच होगी और कुछ कमी पाए जाने पर मेरी दूसरी शादी होगी। मेरी दूसरी पत्नी हमारे साथ इसी घर में रहेगी।”
पिता बड़े उत्साह में बोले ठीक है। मगर तभी स्त्री समानता एवं मुक्ति के सच्चे पुरोधा क्रान्ति सूर्य ज्योतिबा बोले कि बात अभी खत्म नहीं हुई है, क्योंकि अगर सावित्री स्वास्थ्य जांच में सही पाई जाती है तो फिर मेरी मेडिकल जांच होगी और अगर मेरे साथ कुछ समस्या हुई तो फिर सावित्री की हम दूसरी शादी करेंगे। उसका दूसरा पति भी हमारे ही घर में हमारे साथ रहेगा। यह सुनते ही पिता जी के होश उड़ गए।
किसी भी पुरुषवादी सोच रखने वाले समाज के लिए यह शर्त उसके अस्तित्व को बुनियादी चुनौती देने के समान था। घर में इसके बाद यह बात हमेशा के लिए खत्म हो गई।
सामाजिक परिवर्तन को महत्व देते हुए कोई संतान पैदा नहीं किया
इसके बाद फुले दम्पत्ति ने निजी संतान पैदा न करने का निर्णय लिया और बहुजन समाज को ही अपना परिवार बनाकर, बहुजन समाज निर्माण एवं उसकी मुक्ति को ही अपने जीवन का ध्येय बना लिया। धन्य है फुले दम्पत्ति जिन्होंने सामाजिक परिवर्तन के आंदोलन के लिए अपनी निजी संतान पैदा नहीं की।
बहुत खुशी और सुकून की बात है कि आज दुनिया भर में उनकी करोड़ों मानस संतानें उनकी महान विरासत का परचम बुलंद कर रही हैं।आप एवं आपके परिवार को सामाजिक क्रान्ति के पितामह जोतिबा फुले के 194वें जन्म दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएं।
सावित्री बाई अगर सफलता पूर्वक समाज के उत्थान में समर्पित रहीं तो उसके पीछे ज्योतिबा फुले का हर कदम पर दिया गया उनका साथ था। इसलिए जब भी लैंगिक संवेदनशीलता की बात हो तो सिर्फ स्त्री या सिर्फ पुरुष की बात नहीं होनी चाहिए। यहां समाज में स्थापित सभी लिंग को समानता से देखा जाना चाहिए।