क्या आप पीरियड्स के बारे में जानते हैं? क्या आपके घर में पीरियड्स को लेकर बातें होती हैं? आप जिस समाज और धर्म को मानते या उसका हिस्सा हैं वो पीरियड्स को कैसे देखता है? क्या पीरियड्स सच में एक अछूत चीज़ है?
ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जो सदियों से हमारे और आपके घरों, स्कूलों, कॉलेजों, गाँव, गली-मोहल्लों में आम होने चाहिए थे। लेकिन, हमने इन सवालों को पर्दे के पीछे करके इनकी गहराइयों को और बढ़ा दिया है। आज हमें पीरियड्स को लेकर हमारे समाज की रूढ़िवादी /पितृसत्तात्मक सोच से बाहर निकलने की सख्त ज़रूरत है।
फरवरी 2020 की घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है, आखिर क्यों?
पिछली साल 2020 के फरवरी महीने में भुज (गुजरात) के श्री सहजानंद गर्ल्स इंस्टिट्यूट में वहां के अथॉरिटी द्वारा 60 से ज़्यादा छात्राओं के कपड़े उतरवा कर यह सुनिश्चित किया गया कि उनको पीरियड्स हैं या नहीं। ऐसा अमानवीय काम इसलिए किया गया, क्योंकि उस इंस्टिट्यूट में पीरियड्स के दौरान मंदिर और रसोई में जाना मना है।
इस तरह की घटनाएं आज भी हमारे शिक्षण संस्थानों में हो रही हैं, यह बहुत ही शर्म की बात है। हालांकि, इस घटना की मीडिया में खबर आने के बाद इस अमानवीय घटना में शामिल वहां के चार लोगों को इस कृत्य के लिए गिरफ्तार कर लिया गया है।
पितृसत्तात्मक और हमारी रूढ़िवादी प्राचीन मान्यताएं : लैंगिक विभेदता की पोषक
आज भी हिंदुस्तान सहित दुनियाभर में बहुत सी जगहों पर लड़कियों और महिलाओं को पीरियड्स के वजह से शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है। हमारे समाज में यहां तक कि पढ़े-लिखे लोग भी पुरानी सामाजिक मान्यताओं के चलते महिलाओं को उस दौरान अछूत मानते हैं।
इस दौरान महिलाओं को पीरियड्स के दौरान कई दिनों तक मंदिरों, बेडरूम, रसोईघर, सामाजिक कार्यक्रमों में जाने से मनाही रहती है। आखिर क्यों? क्या हमारे समाज में महिलाओं का अधिकार पुरुषों के अधिकार से कम है? क्या पीरियड्स महिलाओं के लिए सजा है? आखिर हम इस 21 वी सदी की आधुनिकता और शिक्षा से क्या हासिल कर रहे हैं?
हमारे इस पितृसत्तात्मक समाज को यह समझना होगा कि महिलाओं के पीरियड्स, एक प्राकृतिक शारीरिक घटना है जो कि लड़कियों/महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए बेहद ज़रूरी है। यह कोई गंदी या अछूत चीज़ नहीं है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 क्या कहता है?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 समानता के अधिकार की बात करता है। जो कि देश में हर एक नागरिक का मौलिक अधिकार है।
आप किसी भी नागरिक के धर्म, जाति, वर्ग, लिंग या फिर उसके जन्म स्थान के आधार पर उसके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं कर सकते हैं।
अगर कोई लड़कियों/महिलाओं को उनके पीरियड्स होने के कारण किसी भी जगह जाने से रोकता है या उन्हें उनके अधिकारों से वंचित करता है तो वह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है। इस अनुच्छेद का उल्लंघन करने पर उस व्यक्ति को न्यायालय द्वारा दंड से दण्डित किया जा सकता है।
2018 के सबरीमाला मंदिर केस के निर्णय के अनुसार
जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने साल 2018 के सबरीमाला केस में अपने निर्णय में साफ-साफ कहा था कि आप किसी भी महिला को उसके लैंगिक आधार पर उसके साथ भेदभाव नहीं कर सकते हैं।
वहां के समाज में भी ऐसी मान्यताएं बहुत ही गहरी हैं कि कोई भी महिला जो मासिक धर्म में है, वो अछूत मानी जाएगी। वह मंदिर, रसोई घर, धार्मिक आयोजन इत्यादि जगहों पर नहीं जा सकती है। इसके इतर भी कई मान्यताओं के अनुसार महिलाओं पर उनके मासिक धर्म होने के दौरान अलग-अलग प्रकार की बंदिशें लगाई जाती हैं।
महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव
पीरियड्स की वजह से समाज में महिलाओं को विभिन्न प्रकार के भेदभावों का सामना करना पड़ता है। जिसका सीधा असर उनकी मानसिक स्थिति पर पड़ता है, जिसके चलते उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। हमारे देश में महिला हो या पुरुष हर भारतीय नागरिक को संविधान ने समान अधिकार दिए हैं।