किसी भी लोकतंत्र का आधार स्तंभ उसकी जनता होती है और जब जनता ही लाचार हो जाए तो लोकतंत्र रसातल की ओर बढ़ने लगता है। जिस वक्त विश्व का सब से बड़ा लोकतंत्र कोरोना के प्रचंड तांडव को झेल रहा है और उसी वक्त देश के कुछ राज्यों में लोकतंत्र का महापर्व मनाया जा रहा है। इस बार फिर से महामारी को इतना विकराल रूप देने में ना सिर्फ सरकार की गलती है बल्कि, हमारे देश के नागरिक भी इसके लिए पूरी तरह ज़िम्मेदार हैं।
महाभारत युद्ध और महाविनाश का दोषी केवल धृतराष्ट्र ही नहीं थे बल्कि, पूरी कौरव सेना और उनका लोभ था और उनके इसी लोभ ने उनके महाविनाश को जन्म दिया। कुछ इसी प्रकार सत्ता का लोभ चुनावी राज्यों में देखने को मिल रहा है और इस बार देश में हो रहे महाविनाश का कारण केवल कौरव सेना ही नहीं बल्कि, पांडव और स्वयं धर्मराज भी हैं।
देश फिर से लॉकडाउन के कगार पर है। पूरे एक साल से शिक्षा के नाम पर बस खानापूर्ति हो रही है, वो भी डिजिटल माध्यम की कृपा से और जिनके पास मोबाइल नहीं है उनकी कौन सोचता है? सरकार के द्वारा दसवीं के परीक्षाओं को रद्द करना एक सराहनीय कदम है, लेकिन पिछले 1 सालों में हमने कुछ भी नहीं सीखा इस परिणाम से हमें यही देखने को मिलता है।
2 गज दूरी मास्क है ज़रूरी यह सुरक्षा नियम क्या केवल आम जनमानस के लिए है?
क्या यह मूलमंत्र केवल उन राज्यों के लिए है जहां चुनाव नहीं हो रहे हैं, क्योंकि जहां अभी चुनाव हो रहे हैं वहां का नज़ारा तो बिल्कुल ही विपरीत है। चाहे वह चुनावी सभा हो रैली या फिर बैठक,इन सब कार्यक्रमों में शामिल लोगों को देखकर ऐसा जान पड़ता है कि यह मूलमंत्र इनके कोई काम का नहीं है।
चाहे वह सत्ताधारी पार्टी की चुनावी सभा हो या फिर विपक्ष की रैली अमूमन स्वयं नेताजी के चेहरे से मास्क गायब ही दिखता है और अगर जो कुछ जनता के चेहरे पर कभी मास्क दिख भी जाए तो 2 गज दूरी वाली थ्योरी किसी सरकारी फाइल जैसे सरकारी तंत्र में विलुप्त हो गई है।
जिस तर्ज पर सरकार ने 12वीं की परीक्षाएं स्थगित की हैं, तो उसी नियम के तहत देश के राज्यों में होने चुनाव भी कुछ महीनों के लिए स्थगित हो सकते थे। जनता सकुशल रहेगी तो चुनाव फिर हो जाएगा, सुनिए सरकार अभी देश को इस महाअग्नि से बचाइए नहीं तो चारों ओर चिता ही चिता देखने को मिलेंगी।
आपने कहा थाली बजाओ हमने बजाई, आपने कहा दिए जलाओ हमने जलाए, लेकिन आप स्वयं ही चुनावी रैलियां कर रहे हैं, यह कहां तक सही है? इस वक्त पार्टी पॉलिटिक्स से ऊपर उठ कर हम सभी को एक साथ एक-दूसरे के लिए आकर लड़ना होगा। गरीबों की पीड़ा को समझिए और देश को लॉकडाउन में जाने से बचाइए, क्योंकि अभी मुझसे एक रिक्शा चालक बंधु ने कहा है कि अगर इस बार लॉकडाउन लगा तो कोरोना के साथ-साथ हम भूख से मर जाएंगे।
इतिहास में कहीं ऐसा ना हो कि आने वाली पीढ़ियां आपको भी यही कहे कि “व्हेन रोम वास बर्निंग, नेरो वास प्लेयिंग फ्लूट.”
( जब रोम जल रहा था, नीरो बांसुरी बजा रहा था)
सभी से मेरी एक विनम्र अपील
1) मास्क अच्छे से पहनें और याद रहे मास्क नाक के नीचे नहीं होना चाहिए।
2) हैंड सैनिटाइजर का हमेशा उपयोग करें।
3) समय-समय पर अपने मास्क को बदलें।
4) किसी से भी बात करते वक्त कम से कम 6 फीट की दूरी रखें।