धनक, अर्थात् इंद्रधनुष, सात रंग जीवन के हर मोड़ का अलग-अलग रंग। आपने क्या कभी सोचा है कि अगर ज़िन्दगी बिना रंगों की हो? तब हमारी ज़िन्दगी कैसी होगी? बिना रंगों के हमारी ज़िन्दगी नीरस हो जाएगी, जैसे श्वेत वस्त्रों में जीने वाली विधवा, भगवा में जीने वाला साधु, श्वेत अंबर में जीने वाले जैनमुनि, लाल रंग में जीने वाली सुहागिन, हर किसी के लिए संसार में एक रंग निश्चित है। लड़कियों के लिए गुलाबी रंग, लड़कों के लिए नीला रंग, अर्थी के लिए श्वेत रंग लेकिन, एक नवजात शिशु के लिए इनका कोई मोल नहीं है।
जिस प्रकार इंद्रधनुष या कहें धनक, संसार के सातों रंगों को समेटे है। उसके विपरीत एक दृष्टिहीन इंसान के लिए सिर्फ एक रंग है, श्याम। उस एक रंग श्याम को लेकर जीवन जीना कितना मुश्किल होता है, जबकि खुद श्याम ने इस धनक की रचना की है। इस श्याम रंग को या जीवन के एक ही रंग को इस धनक में कैसे बदलें? शायद, सबसे अच्छा इसका उत्तर होगा कि एक साथी के साथ। इस साथी का अभिप्राय कुछ भी हो सकता है, कुछ लोगों के लिए तन्हाई भी उनका साथी होता है।
एक प्रश्न मेरे मन में उठता है क्या जीवनसाथी सिर्फ पति-पत्नी ही हो सकते हैं? ऐसा कोई भी जो आपके जीवन के हर रंग में, एक रंग से दूसरे रंग में प्रवेश करते समय आपका साथ निभाए, वो ही जीवनसाथी है। क्या विधवा के लिए अपने पति को जीवनसाथी कहना जायज़ है? क्या एक साधु के लिए परमात्मा, जिसमें उसकी आत्मा विलीन हो जाती है, उससे बेहतर उसका कोई जीवनसाथी नहीं हो सकता है। एक बाल-विधवा के लिए, जो रीति-रिवाजों की बेड़ियों में बंधी है, उसके लिए शायद तन्हाई ही उसका जीवनसाथी है। शायद श्याम के लिए रुक्मणि की बजाय राधा उनकी जीवनसाथी हैं, जैसे श्वेत और श्याम एक-दूसरे के लिए जीवनसाथी हैं। जहां एक के बिना दूसरे का कोई अस्तित्व नहीं, वो ही जीवनसाथी हैं। अमीर खुसरो के लिए निजामुद्दीन औलिया ही जीवनसाथी हैं।
ये रंग क्या बताता है? हर रंग,हर जगह, हर समय, हर परिस्थिति के अनुसार अपना रंग बदलता है। कहीं लाल रंग शगुन के लिए आता है, तो कहीं अपशगुन के लिए आता है। वहीं श्वेत वस्त्र पहने विधवा अपशगुन हो जाती है, पर वही श्वेत वस्त्र उसी शगुन की शोभा बढ़ाते हुए शान में उस शगुन की वस्तु के ऊपर विराजमान रहता है। लगता है, इंसान भी इस रंग को देखकर अपना रंग बदल रहा है। इंसान, दूसरे इंसान के वस्त्र के रंग, उसकी चमड़ी का रंग, उसके बालो का रंग देखकर उसकी पहचान कर लेता है।
इनसे उनके चरित्र के रंग का भी निर्णय कर लेता है, जैसे यदि वस्त्र का रंग उड़ गया है, तो वह कंजूस प्रतीत होता हैं, यदि चमड़ी का रंग काला है, तो शायद वह गोरे की बजाय निम्न स्तर का है।
इस रंग ने कईयों को गुलाम बना दिया, कई भूभाग को भी अर्थात् गोरे अंग्रेजों ने काले भारतीयों को, तो कई इंसानों को भी, जैसे श्याम वर्ण के श्याम ने गोरी राधा को। इस रंग ने कई लड़ाईयां देखी और लाल रंग लड़ाई का प्रतीक बन गया और काला रंग डर का। इसी रंग के खेल ने भारतीयों को, अंग्रेजों को भारत से निकालने की प्रेरणा दी।
ज़िन्दगी तस्वीर भी और तकदीर भी, फर्क तो रंगों का है। मनचाहे रंगों से बने तो तस्वीर और अनजाने रंगों से बने तो तकदीर।