देश में दिन-प्रतिदिन बेरोजगारी का स्तर बढ़ता जा रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र (सीएमआईई) की 2 मार्च 2020 को जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक फरवरी महीने में देश में बेरोजगारी की दर बढ़कर 7.78 % हो गई, जो जनवरी 2020 में 7.16% थी।
अक्टूबर, 2019 के बाद बेरोजगारी यह आंकड़ा सबसे ज़्यादा है। सेंटर ऑफ मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के अनुसार फरवरी 2021 में देश में बरोजगारी की दर 6.9% रही है। वहीं देश में रोज़गार का आंकड़ा फरवरी 2021 में घटकर 37.7% रह गया, जबकि 2019-20 में यह 39.4% था। इस एनालिसिस में कहा गया है कि पिछले तीन वर्षों से रोज़गार दर में गिरावट जारी है। इसमें कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां स्टूडेंट्स डिग्री लेने के बाद भी दर-बदर भटक रहे हैं और एक बेहतर नौकरी की आस लगाए हुए बैठे हैं।
इस तरह की तमाम खबरें हमें मीडिया में खबरों के रूप में देखने को मिलती हैं। लेकिन, जायज़ सवाल यह है कि इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है? क्या इसके लिए ज़िम्मेदार मात्र सरकार को ठहराना उचित है? या क्या इसके लिए शैक्षणिक संस्थान भी ज़िम्मेदार हैं? क्या स्टूडेंट्स इसके लिए स्वंय ज़िम्मेदार हैं? ऐसे कई सवाल हैं जिस पर मौजूदा समय में गहन चिंतन व मनन करने की जरूरत है।
जिस मीडिया के माध्यम से आम जन को बेरोजगारी के आंकड़े मिलते हैं। मीडिया में नौकरी की समस्या पर कभी-कभी ही सही लेकिन रोज़गार की बात रखी और आम जन की बात सुनी जाती है या इस पर सवाल खड़ा करते हुए देखते हैं। आज उसी मीडिया क्षेत्र में खुद इस विधा के स्टूडेंट्स के लिए नौकरी के संकट गहराते नज़र आ रहे हैं। हज़ारों युवा अपनी मीडिया की पढ़ाई पूरी कर मीडिया जगत में रोज़गार के अवसर तलाश रहे हैं, लेकिन सफलता कुछ को ही मिल पा रही है। इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है?
मीडिया क्षेत्र में कैरियर बनाने के लिए किताबों के ज्ञान के साथ व्यावहारिक ज्ञान का होना जरुरी
दरअसल, इसके कई कारण हैं जिसकी वजह से मीडिया क्षेत्र में नए लोगों को कदम जमाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। यह समस्या प्रोफेशनल और अकादमिक दोनों स्तर पर है। प्रायः देखने को मिलता है कि मीडिया की पढ़ाई के दौरान स्टूडेंट्स को जो किताबी ज्ञान मिलता है, वह फील्ड में जाकर उन्हें अनुपयोगी महसूस होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि मीडिया क्षेत्र में व्यावहारिक रूप से काम करने का तरीका अलग होता है, जबकि किताब में पढ़ाए जाने वाले सिद्धांत इससे इतर होते हैं। आज भी अधिकतर संस्थानों में मीडिया की पढ़ाई, अपने पुराने ढ़र्रे पर कराई जा रही है।
हालांकि, मीडिया के व्यक्ति के लिए सैद्धांतिक और सभी क्षेत्र का ज्ञान होना आवश्यक है लेकिन उतना ही जरुरी मीडिया के मौजूदा और वास्तविक कार्यप्रणाली से रूबरू होना भी आवश्यक है। यदि छात्र किताब में पढ़ने वाले ज्ञान को व्यावहारिक जीवन में नहीं उतार पा रहा है या उतारने में सक्षम नहीं है तो निश्चित तौर पर नौकरी का संकट एक ना एक दिन उसके सामने जरुर आना है।
ऐसे में सबसे पहले तो मीडिया के स्टूडेंट्स को पढ़ाए जाने वाले सिलेबस में प्रैक्टिकल नॉलेज को बराबर की वरीयता दी जानी चाहिए साथ ही किताबों में पढ़ाए जाने वाले मीडिया नैतिकता के साथ मीडिया जगत की वास्तविक दुर्दशा से भी रूबरू कराना चाहिए।
वहीं किसी भी नौकरी को पाने के लिए काबिलियत की जरूरत होती है। इसी प्रकार मीडिया क्षेत्र में अपने कदम जमाने के लिए केवल पत्रकारिता की डिग्री पर्याप्त नहीं है, खासकर मौजूदा दौर में कम से कम किसी एक विधा में पारंगत होना जरुरी है। पत्रकारिता की पढ़ाई आज देश के कई सरकारी और निजी संस्थान करा रहे हैं, जिनमें निजी संस्थान दिन-प्रतिदिन तेजी से अपने पांव पसार रहें हैं।
वहीं पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले अधिकतर स्टूडेंट्स शुरुआती दिनों से ही चकाचौंध भरी टेलीविजन की दुनिया में अपना भविष्य सवांरने के सपने देखने लगता है। उसके बाद कुछ चुनिंदा स्टूडेंट्स प्रिंट की तरफ रुख करते हैं बाकी बचे हुए “कुछ ना कुछ कर लेंगे” या “कुछ नया और बेहतर करेंगे” की धारणा पर ही साल गुजार देते हैं।
मीडिया क्षेत्र में औपचारिक किताबी ज्ञान के साथ सामाजिक शोधपरक दृष्टि का होना आवश्यक
ऐसे में किसी एक विधा में पारंगत ना हो पाना भी नौकरी संकट का एक बड़ा कारण है। वहीं आज अधिकतर स्टूडेंट्स ऐसे हैं, जो केवल एक लेबर की तरह लम्बे समय तक काम करने की क्षमता तो रखते हैं लेकिन उन्हें समसामायिक ज्ञान नहीं होता है। वह सोशल मीडिया पर ही पूरे दिन व्यस्त रहते हैं, जबकि एक बेहतर पत्रकार होने के लिए किताबों का पढ़ना भी बहुत जरुरी है।
अधिकतर स्टूडेंट्स अपनी पढ़ाई के दौरान केवल तमाम औपचारिकताएं पूरी करते हुए दिख जाएंगे, जैसे कि क्लास के असाइनमेंट, एग्जाम, लैब की क्लास आदि। जबकि किसी स्टूडेंट्स को ये सारे कार्य किसी औपचारिकतावश या मज़बूरी में नहीं बल्कि, सीखने की प्रवृत्ति के साथ पूर्ण करने चाहिए। खासतौर पर एक मीडिया स्टूडेंट्स में जीजीविषा, धैर्य और शोधपरख दृष्टि का होना अनिवार्य है।
वर्तमान में मीडिया शैक्षणिक संस्थानों की स्तरहीन पढ़ाई एवं गुणवत्ता में कमी
आज दिन-प्रतिदिन मीडिया शैक्षणिक संस्थानों की संख्या बढ़ती जा रही है। वहीं हम देखें तो पाएंगे कि किसी संस्थान के एक पूरे बैच के स्टूडेंट्स में से 2 या 3 स्टूडेंट्स किसी अच्छे मीडिया संस्थान में नौकरी पा जाते हैं, जबकि शेष संघर्ष करते रहते हैं या किसी अन्य क्षेत्र में नौकरी कर अपना जीवनयापन शुरू कर देते हैं।
वहीं फील्ड में जीवनयापन ना कर पाने वाला व्यक्ति कुछ सालों में ही अकादमिक जीवन की तरफ रुख करने का मन बना लेता है, लेकिन यह सबके लिए संभव नही हो पाता क्योंकि इसके लिए पहले एक शोधार्थी के रूप में फिर अकादमिक जगत में अपने कदम जमाने के लिए एक लंबा समय देना पड़ता है और इस दौरान तमाम तरह के आर्थिक और मानसिक दबाव का सामना करना पड़ता है।
इंटर्नशिप को मीडिया के सिलेबस में एक आवश्यक अंग की तरह शामिल करना चाहिए
आज मीडिया में बहुमुखी प्रतिभा के धनी लोगों की अधिक तलाश है, ऐसे में स्टूडेंट्स की पढ़ाई के दौरान ही उनके सिलेबस में इंटर्नशिप का एक अंग शामिल करना चाहिए और यदि सिलेबस में ना हो तो सत्र अवकाश के दौरान मीडिया छात्रों को इंटर्नशिप के लिए जाना चाहिए, जिससे पढ़ाई के साथ-साथ मीडिया की वास्तविक और व्यावहारिक कार्यप्रणाली को समझा जा सके। स्टूडेंट्स को एक निश्चित मंजिल तय करने के साथ-साथ अन्य विधाओं की जानकारी भी रखनी चाहिए, जिससे जरूरत पड़ने पर उन्हें पीछे ना हटना पड़े।
पत्रकारिता क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन बढ़ते नौकरी के संकट के लिए शिक्षा व्यवस्था के साथ साथ काफी हद तक स्टूडेंट्स खुद भी इसके लिए ज़िम्मेदार हैं, जो अपना शौकियां तौर पर इससे सम्बंधित कोर्स का चयन तो कर लेते हैं लेकिन दूरदर्शिता, जूनून और शोधपरख दृष्टि के अभाव में किसी निश्चित मंजिल तक नहीं पहुंच पाते हैं, क्योंकि आज भी अधिकतर स्टूडेंट्स शौक के अलावा टेलीविजन की चकाचौंध देखकर इस क्षेत्र का चयन कर लेते हैं।
वहीं आज मीडिया घरानों पर राजनैतिक और वैचारिक दबाव भी देखा जा सकता है, जिसके कारण पत्रकारिता का स्तर गिरता जा रहा है, वहां क्रांतिकारी और जोशीले युवाओं को कम अवसर मिल रहे हैं।
हालांकि, सोशल मीडिया ने अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन के साथ-साथ रोज़गार के नए अवसर भी प्रदान किए हैं, लेकिन वहां भी एक भीड़ सी बढ़ गई है। जिसके कारण इस नए युग की पत्रकारिता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। ऐसे में यहां स्थायित्व और एक पत्रकार के रूप में अपनी छवि बनाना भी युवाओं के लिए चुनौतीपूर्ण है।