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“मैं एक हिन्दू हूं और मेरे धर्म ने मुझे सद्भाव सिखाया है, ना कि भेदभाव”

फोटो फ्रेम में संस्कृति को कैद करने वाले हम जैसे सभी लोगों को, दैनिक जीवन में भी संस्कृति को समृद्ध करने की कोशिशें करनी चाहिए।इसलिए क्योंकि आधुनिकता से कदमताल करती हमारी संस्कृति हमारे पकड़ से बहुत दूर निकल चुकी है।

चैत्र प्रतिपदा का बैनर लगाने वाले मित्रों को यह भी देखना चाहिए कि आपके आसपास या आपके परिवार में कितने लोगों को भारतीय पंचांग के बारहों मास छः ऋतु और सत्ताईस नछत्र का पता है? अगर नहीं है तो कहां कमी है? क्या हमारा यह सनातनी उत्साह दिखावटी है?

मानवीय विचारों के लिए बनी सनातन संस्कृति

हमारी संस्कृति केवल सोच पर आधारित नहीं है, बल्कि रहन-सहन, भाषा, बाज़ार, समाज, सत्ता और सभ्यता, सभी का सांमजस्य समेटे बहुत ही गौरवशाली रही है। आज समाज की संस्कृति में मुझे उस अंतर की बार-बार याद दिलाता है, जो लौंडा नाच और डीजे में है। जो गुड़हा जलेबी के ठेले और पिज्जा बर्गर के काउंटर में है। जो अंग्रेजी स्कूल और कस्तुरबा विद्यालय में है।

जो धोती-कुर्ता, बंडी-पायजामे, स्पार्की के जिन्स और ड्यूक के टीशर्ट में है। जो अंतर माँ के हाथ के बुने स्वेटर और मोंटी कार्लो के स्वेटर में है। जो अंतर वैद्य जी की बुटी और हेरीटेज हॉस्पिटल के ट्रीटमेंट में है। जो अतंर शोषितों के आंसुओं में और भ्रष्टाचारी के अट्टहास में है। जो अतंर गरीबों की भूख और डाइटिंग के भूत में है।

बहुत कुछ है, जो अखड़ता है ऐसे आचरण और दिखावे से। फिर भी अपने मानवीय विचारों के लिऐ सभ्यताओं की परिचय बनी अपनी संस्कृति पर मुझे आज भी गर्व है।

मेरे धर्म ने सद्भाव सिखाया है, ना कि भेदभाव

बीते कुछ पांच से सात सालों में ये एक नया ट्रेंड शुरू हुआ है, जिसमें अचानक से लोग संस्कृति पर गर्व करते हुए, रामनवमी पर विशाल शोभा यात्रा निकालते हैं। जिसमें रामधुन में जय-जय सियाराम या राम राम जय राम राम राम जय सीताराम की जगह उन्माद से भरा जय श्री राम के उद्घोष के साथ सैंकड़ों युवा लाठी, डंडा, तलवार जैसे हथियारों से लैस होकर शहर भर में घूमते हैं।

हमें नहीं मालूम कि इस तरह का न्यू स्टाइल वाले संस्कृति निर्वहन कब और क्यों शुरू की गई? जबकि हमारे संस्कृति में तो रामनवमी पर रामजी के प्रिय हनुमान जी की पूजा होती थी। मंदिरों में और कुछ घरों में ध्वजा रोपण किया जाता था। मेरा धर्म सनातन है और माफ करना दोस्त। मेरे धर्म ने मुझे वह सब नहीं सिखाया जिसकी घुट्टी बनाकर तुम मुझे पिलाने की कोशिश करते रहते हो।

मेरे धर्म ने उदारता सिखायी है, ना कि आक्रामकता। मेरे धर्म ने सद्भाव सिखाया है, ना कि भेदभाव। हम विश्व के कल्याण की प्रार्थना करते हैं, किसी के विनाश की नहीं। हम सत्य के साधक हैं, हमें झूठी तस्वीरों से मत भरमाओ। हम शरणागतवत्सल भगवान राम को पूजने वाले हैं, दानवों की पाशविकता हमें ना सिखाओ।

हिन्दू हृदय सम्राटों का धर्म से कोई नाता नहीं

मेरा धर्म सनातन है। यह धर्म तब भी था जब हम नहीं थे, तुम नहीं थे। यह धर्म तब भी रहेगा जब हम ना रहेंगे, तुम ना रहोगे। जानते हो क्यों? क्योंकि मेरा धर्म जो सिखाता है वह मूल मानवीय मर्म है। इस धरा पर जब मानव रहेगा, यह मानव धर्म रहेगा।

जिन्हें तुम हिन्दू हृदय सम्राट बनाए घूमते हो ना, उनका इस धर्म से कोई नाता-वाता नहीं है। वे ना इस धर्म की रक्षा को थे, ना रहेंगे। जरा पूछकर देखना कभी एकांत में कि उनका मन इस जंबु द्वीप में रमता भी है या उन्होंने अपना बुढ़ापा सात समंदर पार कहीं काटने की सोच रखा है? जंबुद्वीप से याद आया कि आज चैत्र नवरात्रि के साथ रमज़ान माह के पहले रोजा है।

यही खूबसूरती है इस देश की जो संकुचित मानसिकता वाले नहीं समझ पाते हैं। उम्मीद है आज माताजी के जयकारा में जितने हाथ ऊपर उठे और सज़दे में जितने सर झुके वो देशहित और मानवहित के लिए दुआ करें। नवरात्रि और नव संवत्सर की बधाई तो स्वीकार करते जाओ।

#जयमातादी

#2078

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