आज देश उस स्थिति में पहुंच गया है, जहां सबकुछ मिटता हुआ दिख रहा है और मुझे लगता है कि अगर भारत को बचाना है, तो पहले हमें भारत की परिकल्पना पर एक बार नज़र डालनी होगी।
भारत को एक रूप में देखना
जब तक हम भारत को एक सा नहीं देखेंगे तब तक उसे नहीं बचा पाएंगे। भारत की सबसे बड़ी विशेषता उसकी विभिन्नता और आज़ादी से है। देश की यही खूबी कई मायनों में इसे विश्व के बाकी देशों में आगे रखती हैं। हमारी अपनी मान्यताए देश के लिए अलग होना गलत बात नहीं हैं, जैसे कोई देश को माता के रूप में सम्मान दे, तो कोई पिता के रूप में।
कोई प्रकृति के रूप में, तो कोई आकृति के रूप में। कोई भावना के आधार पर, तो कोई आध्यात्म के आधार पर। कोई दैविक शक्तियों के आधार पर, तो कोई संस्कृति व दर्शन के आधार पर। मगर देश को एक साथ देखने का नज़रिया हमारे पास एक सामूहिक इकाई “गाँव” से आती हैं। हमारा देश चंद शहरों से नहीं अपितु हज़ारों गाँवों से बनता है।
हमारा गाँव, हमारी ज़िम्मेदारी
महाराष्ट्र सरकार की एक नीति “मेरा परिवार, मेरी ज़िम्मेदारी” एक बहुत सकारात्मक और सम्पन्न नीति है। जिसका ठीक से क्रियान्वयन करने पर परिणाम वाकई असरदार साबित हो सकते हैं। इस नीति का अन्वेषण मैंने खुद अपनी डॉक्यूमेंट्री स्पेशल-१९ से किया हैं। वैसे ही इसे अगर बड़े आयाम पर लाया जाए, तो कह सकते हैं, “हमारा गाँव, हमारी ज़िम्मेदारी”।
गाँवों की चरमराई चिकित्सा व्यवस्था सुधारने या बदलने में वक्त लग सकता है, उसी कारण आज पॉज़िटिव मरीज़ भी गाँवों में खुले घूम रहे हैं। पूरा गाँव अगर अपनी व्यवस्थाओं से पता करे कि कौन कहां बीमार हो रहा है और उनकी छोटी बड़ी समस्याओं में अपनी भागीदारी दिखाए, जैसे पहले लॉकडाउन में हुआ था तो संक्रमण कम हो सकता है।
इसलिए कि गाँव वो इकाई है, जहां हज़ारों लोग किसी ना किसी तरह एक दूसरे को जानते और जुड़े होते हैं।
युवाओं में सकारात्मक शक्ति का संचार
हर गाँव या छोटे कस्बों में युवाओं का अपना एक टशन होता है, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। जिन युवाओं के समूह को हमेशा बेरोज़गार और खाली समझा जाता है, यही ज़रूरत पड़ने पर पूरे गाँव के सामाजिक, सामूहिक, धार्मिक और राजनैतिक जगह पर व्यवस्थाओं की ज़िम्मेदारी लेते हैं। कई मसलों को आपस में सुलझाने की शक्ति भी रखते हैं।
यही शक्ति अगर अपने भिन्न विचारधाराओं को छोड़ दे और अपने उन्हीं गाँवों को सुरक्षित करने की ठाने, तो मुझे नहीं लगता कि उन्हें कभी किसी के सुझाव की भी ज़रूरत पड़ेगी।
युवा बस ये समझ जाएं कि असली ताकत किसी भी सरकार या राजनैतिक पार्टियों में नहीं होती, बल्कि जनता के पास होती है। सिर्फ इस समझ और एहसास की ज़रूरत है। जिस दिन जनता नेताओं को राजाओं की जगह, सेवक और कार्यकर्ता के रूप में देखेगी, तब जाकर जनता अपने लिए व्यवस्थाओं की मांग भी कर सकती है।
जब ऐसी समझ आ जाएगी तो सभी पार्टीवाद से उठकर मानवतावाद, समाजवाद और कल्याणवाद की तरफ अपना रूख मोड़ सकते हैं।
सभी अपने अपने गाँवों के सभी नेताओं (पार्षद, नगरसेवक, विरोधी, प्रमुख कार्यकर्ता या उम्मीदवार) के पास पहुंचें, चाहे वह किसी भी पार्टी विशेष से हो। वहां जाएं और उन्हें पूरे हक से दबाव बनाकर कहे कि अपने गाँव की व्यवस्थाओं को सही करने में, आप कैसे हमारी मदद कर सकते हैं?
क्रमबद्ध तरीके से योजना बनाएं और उसका क्रियान्वयन करें
ऊपर लिखे बिंदुओं को बिना समझे, एकता और जागरूकता का भाव जगा पाना बड़ा मुश्किल है। इसीलिए पहले उपरोक्त बिंदुओं को समझना ज़रूरी था, क्योंकि जब सब लोग एक विचार से जुड़ेंगे तो वाद-विवाद से दूर, तर्क संगत होकर जन कल्याण के प्रति अपना समर्पण दे पाएंगे।
नीचे लिखी क्रमबद्ध प्रक्रिया बस सुझाव को बेहतर बनाने और समझने के लिए एक उदाहरण का प्रतीक है। जो अपने-अपने गाँव के लोगों के हालात और व्यवस्था के स्तर पर निर्भर करती हैं, तो हालात को सुधारने के लिए उन प्रभावी लोगों को अपने-अपने गाँव के लिए अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी निर्धारित करनी होगी।
व्हाट्सएप्प ग्रुप बनाएं और सारी जानकारी इकट्ठा करें
गाँव-कस्बों के युवा अपने ग्रुप्स को इकट्ठा करे और ऊपर लिखे बिंदुओं पर एक साथ आकर अपने गाँव को बचाने की मुहिम “हमारा गाँव, हमारी ज़िम्मेदारी” को अपना मकसद बना ले। सभी कोरोना से जुड़ी ऑनलाइन जानकारियों से युक्त हो जाएं।
अपने गाँव को बचाने के लिए एक व्हॉट्सएप्प ग्रुप तैयार करे और वहां सक्रिय रहकर, गाँव के संक्रमित लोगों की जानकारी, उन्हें क्वॉरंटीन करने की जगह, डॉक्टरों और लगने वाली दवाइयों, खाने-पीने का इंतज़ाम आदि जानकारियों पर लाइव अप्डेट्स लेते रहें।
कुछ भी शुरू करने से पहले स्वयं पर से अनुशासनहीनता का लांछन हटाएं और सबको बताएं कि आप कोरोना के सभी नियमों का बखूबी पालन करते हैं। बाद में पुलिस की भी ना मानने वाले, अशिक्षित, अनुशासनहीन, नियमों को ना मनाने वाले सभी लोगों को अनुसाशासन में लाकर, पूरे गाँव को नियमबद्ध कर संक्रमण की शृंखला को रोके।
गाँव के बड़े बुज़ुर्ग और जानकार लोगों से व्यवस्था में काम करने वालों लोगों की जानकरियां इकट्ठा करें। सभी बड़े स्तर के लोगों की भी जानकारी, आसपास के स्वास्थ्य व्यवस्था से जुड़े संस्थान, चिकित्सक, पास के शहरों के अस्पताल की भी जानकरियां इकट्ठा करें। जानिए जानकारी आज के युग की सबसे बड़ी शक्ति है। इसलिए हर प्रकार की जानकरियां अपने पास रखते चलें।
अपने गाँव के आंकड़ों के अनुसार आने वाले वक्त में लगने वाले बेड्स, क्वॉरंटीन सेंटर्स, दवाइयों और ऑक्सीजन की आपूर्ति का अनुमान लगाएं।
जनप्रतिनिधियों से भी मदद लें
अपने गाँव के सभी पार्टियों के उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओं से सम्पर्क करें। सभी को झूठी बखानी छोड़ उनके कर्तव्य और निष्ठा याद दिलाएं। अपनी योजनाओं के प्रति उनकी ज़िम्मेदारी तय करें। चाहे अपने क्षेत्र की सरकारों से जल्द से जल्द व्यवस्था की पूर्ति करवाए या उन सबसे लगने वाली राशि का अनुदान इकट्ठा करने की एक पक्की अपील करे।
वैसे तो विश्वास है कि ऐसे समय में जमा की गई धन राशि का गलत प्रयोग हमारे युवा नहीं करेंगे पर ऐसे कुछ प्राणी हों तो उन्हें अलग रखें। अलग-अलग कामों की प्लानिंग कर, अलग-अलग टीम बनाएं। जैसे अनुशासन, राशन, दवाई, आने वाले दिनों की व्यवस्था करने वाले, आज के दिन के काम निपटाने वाले, इत्यादि।
योजनाबद्ध तरीके से काम और हर ज़रूरी व्यवस्थाओं का ध्यान रखें
गाँव की बंद स्कूलों, हॉल्स, मंडियों, खलिहानों आदि ऐसी जगहें क्वॉरंटीन सेंटर्स और हॉस्पिटल बेड के लिए उपयोग में ली जाए। वहां लगने वाले लोगों के खाने पीने आदि सभी ज़रूरतों को उनके घरों से या जिनकी व्यवस्था नहीं है, तो कहीं और से पहुंचाने की व्यवस्था करें। कई जगह से खबरें आ रही हैं, कि कांटेक्ट पर्सन की चेन खोजना मुश्किल है। शहरों में ये जितना मुश्किल है, गाँव में उतना ही आसान हो सकता है।
लोगों के सम्पर्क की भी उनसे लिस्ट ली जाए और उन्हें भी अलग कर उनकी टेस्टिंग की जाए। हम बीमारी को खत्म नहीं कर रहे हैं, बस संक्रमित को अलग कर संक्रमण रोक रहे हैं। इस उम्मीद के साथ जितनों को हो गया ठीक, पर उनके उपचार के साथ बाकी चेन को रोक दें, ताकि सुरक्षा की एक दीवार खड़ी हो जाए।
कोशिश करें जिन्हें माइल्ड लक्षण हैं, उन्हें होम ट्रीटमेंट पर रखें। जिन्हें घर में कहीं अलग कमरा ना मिले, उन्हें प्राथमिकता दें। गाँव में अंबुलेंस तैनात रखें। ना हो तो २-५ गाड़ियां अंबुलेंस के रूप में आपातकालीन वक्त के लिए तैयार रखें। आपातकालीन परिस्थियों के लिए ऑक्सीजन, दवाई व अन्य चिकित्सा व्यवस्था तैयार रखें।
गाँव में एक सकारात्मक माहौल तैय्यार करें, बिल्कुल जांबाज़ जंग जीतने वाले योद्धाओं की तरह। याद रखें आपके इस युद्ध में योद्धा बनने से आप शायद अपने ही माँ या पिता की जान बचा पाएंगे।
ऊपर लिखी प्रक्रिया कोई ठोस प्रक्रिया नहीं है, बल्कि ये बस एक उदाहरण है। मकसद हैं देश के युवा मतलब गाँव के युवाओं को एक साथ में लाने का और सुचारू रूप से पूरे गाँव को संगठित करने का। युवा शक्ति अगर इकट्ठा हो जाए, तो वो कुछ भी कर सकती हैं। मुझे लगता है शायद यही शक्ति इस देश को बचा भी लेगी। बस एक बार इस रास्ते पर सब प्रयास ज़रूर करें।