आज भारत व पूरा विश्व करीब डेढ़ साल से वैश्विक महामारी “कोविड-19” यानी कोरोना वायरस से लड़ रहा है। यहां की जनता इससे जंग में लगी हुई है और इसका डटकर मुकाबला कर रही है।
हाल ही में भारत समेत कई देशों में कोरोना का नया वैरिएंट (यानी वायरस वही, लेकिन नये स्वरूप में) ने देश को हिला कर रख दिया है। एक और जहां जनवरी 2021 में हमें लग रहा था कि अब कोरोना खत्म हो रहा है, वहीं इस नए वैरिएंट का एकदम से यूं समूचे देश पर हमला हम सह नहीं पा रहे हैं। क्योंकि, इस अप्रत्याशित हमले के लिए हम तैयार ही नहीं थे। अब की बार कोरोना का जो नया वैरिएंट आया है, यह सीधा हमारे लंग्स यानी फेफड़ों पर असर डाल रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो इस नए कोरोना वायरस से हमारे फेफड़ों पर असर पड़ रहा है और फेफड़ोंं का रिश्ता तो सीधे हमारी प्राणवायु अर्थात ऑक्सीजन से होता है।
आइए जानते हैं कि मेडिकल ऑक्सीजन क्या है?
वैसे, तो हमें ऑक्सीजन पर्यावरण से मिलती है, लेकिन जब किसी व्यक्ति को खुद से ऑक्सीजन लेने में दिक्कत होती है, तो उसे मेडिकल ऑक्सीजन दी जाती है। मेडिकल ऑक्सीजन को लेते समय मरीज़ को कोई दिक्कत नहीं आती, क्योंकि वह खुद ही उसके शरीर में जाती रहती है।
हमारे वातावरण में मौज़ूद विभिन्न गैसों में से ऑक्सीजन को अलग किया जाता है। पर्यावरण में सभी गैसों के साथ- साथ ऑक्सीजन करीब 21 प्रतिशत तक व्याप्त होती है। फिर वातावरण में से निकाली गई इस ऑक्सीजन को तरल रूप में बड़े-बड़े टैंकरों में एकत्रित किया जाता है और जहां इसकी ज़रूरत होती है, वहां पर एक निर्धारित तापमान पर रख इसे पहुंचाया जाता है।
आज देश के कई राज्यों में कोरोना संक्रमित मरीज़ ऑक्सीजन ना मिलने की वजह से काल के ग्रास में असमय ही समा रहे हैं। सभी की निगाहें ईश्वर की ओर टिकी हुई हैं। लेकिन, यहां गौर करने वाली बात यह है कि आज देश में मेडिकल ऑक्सीजन की कमी पड़ी, तो देश में हाहाकार मचा हुआ है, जिस दिन प्राकृतिक ऑक्सीजन की कमी हुई उस दिन हम क्या करेंगे?
हम बिना प्राकृतिक ऑक्सीजन के जीवित ही नहीं रह पाएंगे, केवल इसकी कल्पना मात्र से ही हमें डर लगता है। लेकिन, एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा जब इस धरा से ऑक्सीजन खत्म हो जाएगी या पूरी तरह से प्रदूषित हो जाएगी।
क्या हम भूल गए ! सर्दियों के वो दिन जब दिल्ली जैसे देश के बड़े शहरों में हवा प्रदूषित हो जाती है और लोगों को सांस लेने में कितनी दिक्कतें होती हैं। अब भी थोड़ा ही सही, लेकिन वक्त हमारे पास बचा है। इस बचे हुए वक्त में हम ज़्यादा से ज़्यादा पेड़ लगाएं और ना केवल लगाएं उनका पालन-पोषण भी करें।
आइए एक नज़र डालें, सर्वाधिक ऑक्सीजन देने वाले पेड़ों पर :-
पीपल का पेड़। फोटो : गूगल
पीपल
पीपल का पेड़ काफी बड़ा होता है, इसका फैलाव भी और पेड़ों की अपेक्षा ज़्यादा होता है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं में इसको विशेष दर्जा प्राप्त है। पीपल बाकी पेड़ों के मुकाबले ज़्यादा ऑक्सीजन देता है। 24 घंटों में से अकेला पीपल का पेड़ 22 घंटे ऑक्सीजन, हमारे पर्यावरण को देता है।
नीम का पेड़। फोटो : गूगल
नीम
अर्जुन
बांस का पेड़। फोटो : गूगल
बांस
एनवायरमेंट क्लब के सदस्य वृक्षारोपण करते हुए।
जिस तरह हमारे माता-पिता का ध्यान रखना हमारी एक ज़िम्मेदारी है, उसी प्रकार धरती मां का ध्यान रखना भी हमारी ही ज़िम्मेदारी है। जिससे हम अधिकाधिक पेड़ लगाकर हमारी इस धरा को प्रदूषण से मुक्त कर सकें।