देश में कोरोना महामारी दिन-प्रतिदिन तेज़ी से बढ़ रही है। कोरोना की दूसरी लहर पिछले साल के मुकाबले ज़्यादा घातक साबित हो रही है। 21 अप्रैल 2021 तक भारत में कोविड-19 के कुल मामले बढ़कर 1,56,16,130 पर पहुंच गए हैं।
वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक उपचाराधीन मामले 20 लाख के करीब पार पहुंच गए हैं। मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक मरने वालों की संख्या बढ़कर 1,82,553 पर पहुंच गई है।
कोरोना की दूसरी लहर में भयावह स्थिति
एक तरफ जहां कई राज्यों में कोरोना से बचाव के लिए लॉकडाउन जैसे कठोर कदम उठाए जा रहे हैं, वहीं देश के कई राज्यों में अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से सरकारें खुद कोरोना को बढ़ावा देने का काम कर रही हैं।
महाराष्ट्र, दिल्ली, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश सहित ऐसे कई राज्यों में कोरोना अपने चरम पर मौत का तांडव मचा रही है। लोग अस्पतालों के चक्कर काट रहे हैं। बेड उपलब्ध नहीं हैं, रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए लोग भटक रहे हैं, ऑक्सीजन की कमी से लोग मर रहे हैं, लोग प्रशासन से मदद की गुहार लगा रहे हैं लेकिन प्रशासन भी जैसे असहाय महसूस कर रही है।
ऐसे में कई राज्यों ने एक बार फिर लॉकडाउन को हथियार बनाकर कोरोना से जंग शुरू कर दी है। वहीं केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा लोगों से कोरोना गाइडलाइंस का सख्ती से पालन करने को कहा जा रहा है, जिसके लिए सख्त नियम भी बनाए गए हैं। कोरोना नियमों का पालन नहीं करने पर चालान भी किए जा रहे हैं।
फिर से नए गाइडलाइंस को लागू किया गया
कोरोना गाइडलाइंस के अनुसार लोगों को सामाजिक दूरी, मास्क लगाना अनिवार्य, भीड़-भाड़ से परहेज़, सैनिटाइज़र के उपयोग आदि शामिल हैं। वहीं कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच स्कूल-कॉलेज आदि भी बंद कर दिए गए हैं। साथ ही शादी-विवाह सहित ऐसे कई अवसरों पर सिमित व्यक्तियों के इकट्ठा होने की अनुमति दी गई है।
जैसे शादी विवाह में 20 से अधिक लोग इकट्ठा नहीं होंगे, अंतिम यात्रा में 20-30 लोगों से ज़्यादा संख्या नहीं होनी चाहिए आदि आदि। सरकार व स्वास्थ्य विभाग के अनुसार ऐसा इसलिए किया जा रहा है, ताकि कोरोना का संक्रमण तेज़ी से न फैले।
यदि अधिक लोग एक साथ इकट्ठा होते हैं, तो इससे लोगों के संक्रमित होने का खतरा पूरा है और इसके बाद इस महामारी का विस्तार एक जगह से दूसरे जगह तक आसानी और तेज़ी से होगा। इसलिए इन नियमों का पालन न करने वालों पर सरकार व प्रशासन सख्ती भी बरत रही है।
सरकार और प्रशासन के प्रति आम जनता का आक्रोश
वहीं ऐसे कई लोग हैं, जो इन नियमों की धज्जियां उड़ाते दिख रहे हैं और प्रशासन द्वारा सख्ती बरते जाने पर उनसे बहस कर या हाथापाई तक उतर जा रहे हैं। हाल ही में दिल्ली के दो अलग-अलग इलाकों के इन मामलों से संबंधित वीडियो वायरल हुए हैं। जिसमें पुलिस द्वारा मास्क लगाने को कहने और मास्क न लगाने की वजह से युवक का चालान काटा जाता है तो युवक भड़क जाता है और नेताओं के मास्क न लगाने का हवाला देता है।
इस बीच वहां मौजूद जनता भी आक्रोशित हो जाती है और पुलिस के साथ हाथापाई तक नौबत आ जाती है।
वहीं एक और वीडियो बहुत वायरल हो रहा है, जिसमें पति-पत्नी कार से जा रहे होते हैं और मास्क ना लगाने की वजह से पुलिस जब उनका चालान करने लगती है, तो पति और पत्नी दोनों बुरी तरह भड़क उठते हैं। उनका कहना होता है कि कार के अंदर हम क्यों मास्क लगाएं और वहीं बातों ही बातों में वे कभी नेताओं, तो कभी रैलियों का हवाला देते हैं।
अप्रैल के पहले सप्ताह में मध्यप्रदेश के इंदौर से एक वीडियो वायरल होता है, जिसमें पुलिस वाला एक दुकानदार को बीच रोड पर जमकर पीटता हुआ नज़र आता है, क्योंकि उसने मास्क नहीं पहन रखा था और ऐसा भी कहा गया कि उसने चालान देने से मना कर दिया था। ऐसे तमाम मामले हैं, जब आम जनता पर नियमों के पालन को लेकर सख्ती बरती गई और कहीं-कहीं बर्बरता भी की गई।
देखा जाए तो इन दिनों आम जनता के बीच सरकार और प्रशासन के प्रति एक आक्रोश भरा पड़ा है।
नियम बनाने वाले खुद उसकी धज्जियां उड़ा रहे हैं
दरअसल एक तरफ जहां सरकार व प्रशासन द्वारा आम जनता से कोरोना से बचाव के नियमों का पालन करने को कहा जा रहा है और आमजन पर सख्ती दिखाई जा रही है, वहीं नियमों को बनाने वाले और उनके पालन करने की दुहाई देने वाले खुद उन नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं।
अब जब पिछले महीने से कोरोना साल 2021 में अब तक अपने चरम पर है, इसी बीच बंगाल और असम जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव और उत्तरप्रदेश जैसे राज्य, जहां कोरोना महामारी के चलते हालात खराब होते जा रहें है, वहां पंचायत चुनाव चल रहे हैं। इन चुनावों के दौरान बड़ी-बड़ी रैलियां, जनसंपर्क, रोड शो आदि आयोजित किए जा रहे हैं। जिनमें भाजपा, कांग्रेस, टीएमसी सब पार्टियां शामिल हो रही हैं।
हालांकि, बढ़ते मामलों को देखकर कांग्रेस ने अपनी सारी जनसभाओं को रद्द करने का फैसला लिया है। यहां तक कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह खुद इन आयोजनों का एक बड़ा हिस्सा हैं, जो बंगाल में सत्ता पाने की लालसा में देश की जनता के साथ दोहरी नीति अपना रहे हैं।
जनता को मुश्किलों में डालकर जनता के हित की बात
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बंगाल की जनता के लिए चिंतित होने की बजाय अपनी कुर्सी को ज़्यादा तवज्जो दे रही हैं। बंगाल में भले ही राहुल गांधी ने अपनी जनसभाएं रद्द कर दी हो लेकिन तमिलनाडु और आसाम में खुद उन्होंने बड़ी-बड़ी रैलियों को संबोधित किया।
वहीं अपने चुनावी प्रचार के दौरान मंचों से ये सारे राजनेता कोरोना महामारी की भयावह स्थिति और लोगों के दयनीय हालात को भूलकर पता नहीं जनता के किस हित, सरोकार और विकास की बात करते नज़र आते हैं? चुनावी प्रचार खत्म होते ही खुद देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री आम जनता के समक्ष कोरोना नियमों का पालन करने और मौजूदा हालात पर चिंता ज़ाहिर करते हैं, वहीं विपक्षी पार्टियां कोरोना को लेकर सरकार पर हमला बोलने लगती हैं।
ऐसे में कई सवाल उठते हैं और सरकार खुद कटघरे में खड़ी दिखाई पड़ती है।
सरकारों पर उठने वाले कुछ सवाल
क्या सरकारें और राजनैतिक पार्टियों को वास्तव में आम जनता की चिंता है? क्या नियम बनाने वाली सरकार खुद उन नियमों का पालन कर रही है? क्या कोरोना संबंधित नियम केवल आम जनता के लिए बनाए गए हैं? क्या सरकार अपनी स्वार्थसिद्धी के लिए आमजन को खतरे में डाल रही है?
क्या रैलियों और रोड शो में हज़ारों/लाखों की संख्या में इकट्ठा होने वाली भीड़, कोरोना गाइडलाइंस का उल्लंघन नहीं है? क्या इन आयोजनों से कोरोना संक्रमण का विस्तार नहीं हो रहा है? क्या केवल स्कूल-कॉलेजों और छोटे दुकानदारों से ही कोरोना फैल रहा है?क्या मास्क केवल आम जनता के लिए ही ज़रूरी है?
आज मेरी सभा में इतनी भीड़ दिखाई दे रही है, जहां तक मेरी नज़र जा रही है चारों तरफ लोग ही लोग दिखाई दे रहे हैं : @narendramodi #WestBengalPolls #PMModi pic.twitter.com/IwDWhR4Q5L
— News24 (@news24tvchannel) April 17, 2021
यदि नहीं तो बंगाल और आसाम में चुनावी प्रचार के दौरान कितने नेताओं और लोगों ने मास्क पहन रखा है? क्या वहां कोरोना नियमों का पालन हुआ है? ऐसे कई सवाल हैं जो आम जनता के मन में उठ रहे हैं और उठाना भी जायज़ है, क्योंकि इन नियमों और पाबंदियों की वजह से आम जनता को कई बार चालान भी भरना पड़ रहा है।
लोगों को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है। सामाजिक दूरी के नाम पर शिक्षा व्यवस्था खराब हो चुकी है। लोगों का भविष्य अधर में है। लोग रोजी-रोटी को मोहताज हैं। ऐसी तमाम समस्याएं और अव्यवस्थाएं हैं, जिनका सामना केवल और केवल आम जनता को करनी पड़ रहा है।
राजा पालन करता है, तभी प्रजा प्रभावित होती है
हालांकि, इसका तात्पर्य यह बिल्कुल नहीं है कि कोरोना गाइडलाइंस का पालन न किया जाए। निश्चित रूप से इस भयावह स्थिति में जनता को मास्क सहित सभी नियमों का पालन करना चाहिए। मगर खुद नियम बनाने वालों द्वारा उन नियमों की धज्जियां उड़ाई जाय और आम जनता को नैतिकता का पाठ पढ़ाया जाए तो जनता निश्चित रूप से खुद को बेवकूफ ही समझेगी और उनका आक्रोशित होना भी जायज़ है।
शुरुआत से बताया जाता रहा है कि किसी राज्य/ देश की प्रजा में बदलाव के लिए सबसे पहले राजा स्वयं उन नियमों या बदलाव का पालन करता है। इससे उसकी प्रजा ज़्यादा प्रभावित होती है और उसका अनुसरण करती है।
बचपन में महात्मा गांधी को पढ़ते हुए यह मालूम पड़ा कि एक बार जब कस्तूरबा की तबियत ज़्यादा खराब थी, तो डॉक्टर ने उन्हें नमक खाने से मना किया था, जिसमें कस्तूरबा सहज नहीं थीं। जब बापू उन्हें ऐसा करने को कहते तो वो इनकार कर देती थीं। ऐसे में बापू ने खुद बिना नमक के भोजन ग्रहण करना शुरू कर दिया, जिससे कस्तूरबा भी प्रभावित हुईं और उनकी बात मान लीं।
ऐसे में आज जब देश का राजा प्रजा की चिंता करने की बजाय, खुद के बनाए नियमों की धज्जियां उड़ा रहा हो तो प्रजा से उसके पालन की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
सालभर बाद भी पार्टियां बस सरकार बनाने और बचाने में परेशान
मौजूदा स्थिति यह सोचने को मजबूर करती है कि इस लोकतांत्रिक देश में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार किस हालत में हैं? सही मायने में ये सब ठप पड़े हुए हैं। यदि महामारी के कारण जनता के हित के लिए स्कूल, कॉलेज, संस्थान, दुकान, यात्रा, सामाजिक उत्सव, आयोजन, शादी-विवाह आदि स्थगित हो सकते हैं तो चुनाव और बड़ी-बड़ी रैलियां क्यों नहीं? क्या चुनाव आम जनता के जीवन, शिक्षा और स्वास्थ्य से ज़्यादा ज़रूरी है?
हालांकि, कोरोना महामारी से मरने वालों की संख्या, रिकवर करने वालों से बहुत कम है। हाल ही में स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी बताया कि कोरोना के कारण मृत्यु दर मात्र 1.87% है लेकिन देखा जाए तो इनमें से अधिकतर मृत्यु पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं के न होने के कारण हुई हैं।
The #PmCares fund has received huge contributions from PSUs & major public utilities like the Railways.
It’s important that PM ensures the fund is audited & that the record of money received and spent is available to the public.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) May 9, 2020
साल 2020 की शुरुआत में जब कोरोना की लहर शुरू हुई थी, तो सरकार द्वारा तमाम प्रयास किए गये। ढेर सारे फंड पास किए गए और इससे मुक्ति के दावे किए गए। बेहतर व्यवस्था का आश्वासन दिया गया। कुछ महीनों बाद कोरोना से जंग में जीत का डंका पीटा गया और एक बार पुनः सब सामान्य होने का दावा किया गया। मगर वास्तविकता यह है कि आज लगभग एक साल बाद भी हम वहीं खड़े हैं, जहां मार्च 2020 में थे।
आज भी देश की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराई हुई है। लोग अस्पतालों में बेड, वैक्सीन, ऑक्सीजन और सुविधाओं को लेकर परेशान और बेहाल हैं। कोरोना पर नियंत्रण नहीं है और तमाम दावे और सवाल उठाने वाली पार्टियां आज बस अपनी सरकार बचाने और बनाने में परेशान हैं।