आजकल हवा का रुख कहीं भी हो, लेकिन वो बह पश्चिम की तरफ ही रही है और यदि मैं यह जोड़ दूं कि पश्चिम बंगाल की तरफ! तब कुछ गलत नहीं होगा। जहां एक ओर देश में कोरोना का कहर थम नहीं रहा है। हर एक राज्य से भयावह तस्वीरें आ रही हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल से आ रही हैं सिर्फ और सिर्फ चुनावों की खबरें उसमें भी मोदी-शाह, दीदी और चुनावी उठापटक की।
इसी तरह इस चुनावी घमासान के चार चरण के मतदान हो चुके हैं। वहीं आठ चरणों में हो रहे चुनाव की आधी प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है और अब पांचवें चरण के मतदान से पहले का चुनाव प्रचार चल रहा है।
यूं तो देश में चारों ओर माहौल ऐसा है कि हर किसी को देश की कोरोना की परिस्थितियों की भयावहता पर बात करनी चाहिए, लेकिन दुखद! यह बात चुनावी रैलियों से एक दम नदारद है। यूं भी पक्ष हो या विपक्ष सभी का काम वाहवाही लूटना और विरोधी दल पर आरोप-प्रत्यारोप करना है।
लेकिन, इन सब चुनावी दौरों के बीच प्रधानमंत्री का एक बात बार-बार, लगातार कहना इस पर हमें बात करनी चाहिए। बहरहाल, हम सभी जानते हैं कि चुनाव और प्रचार का पहला नियम ही आरोप-प्रत्यारोप है लेकिन, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जिन्हें सभी ‘दीदी’ कहकर संबोधित करते हैं। वहीं हमारे देश के प्रधानमंत्री का बार-बार उन्हें एक अजीब ढंग से दीदी ओ दीदी कहना कहां तक एक सभ्य तरीका है।
आप इस बात को तो छोड़िए प्रधानमंत्री ने हाल ही में बारासात में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा मैंने ‘दीदी ओ दीदी कहा तो दीदी सच में नाराज़ हो गईं। अब तो बंगाल का हर बच्चा हर महिला को दीदी ओ दीदी कहना सीख गया है। इसके साथ ही उन्होंने कहा, कितने ही लोगों ने मुझे अपने बच्चों के वट्सएप्प पर वीडियो बनाकर भेजे हैं।
महामारी में देश के आम जन के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को छोड़ प्रधानसेवक चुनाव में व्यस्त है
जहां एक ओर देश में कोरोना जैसी खतरनाक महामारी फैली हुई है। देश में स्वास्थ्य व्यवस्थाएं एक बूढ़ी पुरानी इमारत की तरह ढह रही हैं। देश में रोज़ होने वाली रिकॉर्ड मौतों से श्मशान और कब्रिस्तान सब एक हुए जा रहे हैं। देश में रोज़गार, महंगाई, आर्थिकी और मूलभूत सुविधाएं अपनी बारी के लिए जैसे मुद्दे मुंह बाएं खड़े हों, तब बाकी सारे संवेदनशील मुद्दे छोड़कर किसी लोकतांत्रिक देश के सर्वोच्च व्यक्ति का एक महिला मुख्यमंत्री को चिढाना ( ‘दीदी..ओ…दीदी’) कितना सभ्य है?
यदि आपको लगता है कि उनका किसी राज्य की महिला मुख्य्मंत्री का चिढ़ाने के लिए यह कहना सहज़ था, तब आप वो सारे ही क्लिप निकाल कर एक बार ज़रूर सुनें, जिनमें माननीय प्रधानमंत्री एक सहज भाव से यह सब कह रहे हैं। आप खुद से पूछिए, एक लड़की के तौर पर आप यह सुनकर कितना सहज हैं? भले ही यह बात प्रधानमंत्री ने कही हो, लेकिन ये सुनना मुझे उतना ही असहज करता है, जितना किसी सड़क चलते मनचले का हम महिलाओं एवं लड़कियों पर फब्तियां कसना।
दीदी ओ दीदी केवल एक तंज मात्र नहीं, हमारे समाज और देश का असल सच
यह चुनावी रण में किसी सत्तारूढ़ महिला मुख्यमंत्री पर कसा गया तंज़ भर नहीं है, बल्कि प्रधानमंत्री का बार-बार यह कहना हर उस महिला को चिढाने जैसा है, जिसके लिए कोई सम्बोधन तय है।
यदि एक सर्वोच्च पद पर रहते हुए आप भाषा, भाषा शैली और हाव-भाव की गरिमा का ख्याल नहीं रख सकते, तब निचले स्तर पर उन आम लोगों से क्या उम्मीद की जा सकती है, जिन्हें गली, चौक-चौराहे, बस-ट्रेन, और अंधेरे में कोई देख सुन नहीं रहा होता है। मतलब आपको कोई, कुछ भी कहकर निकल सकता है, लेकिन हमें बुरा नहीं मानना चाहिए, क्योंकि वो वही तो कह रहा है, जो हम हैं।
यानी मैं एक लड़की हूं और यदि कोई मुझे बार-बार कहे ओ लड़की ओ लड़की तब इस लिहाज़ से शायद मुझे बुरा नहीं मानना चाहिए। यूं भी एक समाज के तौर पर हम लोगों को क्या नाम देना चाहते हैं? यह हमारे शब्दों से ज़्यादा हमारी मानसिकता तय करती है फिर लड़कियों को तो मुंह खोलकर कुछ भी कहा जा सकता है ! खैर! वैसे भी हमारे देश के प्रधानमंत्री ने उन्हें दीदी ओ दीदी ही तो कहा है। चुड़ैल या डायन तो नहीं जो ममता बनर्जी इतना बुरा मानें।
हमारे देश एवं तथाकथित सभ्य समाज में लड़कियों को तो चुड़ैल, डायन से लेकर जाने क्या-क्या कह दिया जाता है, मतलब ऐसा तो कुछ नहीं जिसका ममता बनर्जी इतना बुरा मानें। लेकिन, यह कहा जाना हर किसी को नागबार गुज़रेगा और नहीं गुज़रता तो गुज़रना चाहिए कि कैसे एक गरिमामय पद पर बैठे प्रधानसेवक व्यक्ति एक महिला के लिए ऐसा कैसे कह सकते हैं?