पिछले गत महीनों सुशांत सिंह राजपूत की मौत के कारण और उनके केस में ड्रग्स के नाम आने पर बॉलीवुड में ड्रग कनेक्शन को लेकर पूरे देश के लोगों में यह चर्चा का विषय बन गया। हर कोई ड्रग्स से संबंधित बडे़-बड़े डाटा के साथ ज्ञान देने में लगा हुआ था। हमारी पूरी मीडिया जगत भी दिन-रात बस इसी को लेकर बहस करने में लगी हुई थी। हर नुक्कड़-चौराहों की छोटी-मोटी दुकानों की टीवी पर यही चल रहा होता और वहां बैठे तथाकथित ज्ञानी भी इसी मुद्दे पर अपनी शोखी बखारने में लगे हुए थे। बिहार की राजधानी पटना की गलियां और सड़कें भी इन चीज़ों से अनजान नहीं थीं । क्योंकि, सुशांत इन्हीं गलियों-सड़कों पर तो कभी दौड़ा-खेला करता था जिसकी मौत की वजह ड्रग्स को बताया जा रहा था।
लेकिन, उसी समय पटना के उन्हीं सड़को पर एक किनारे में तीन-चार 12-16 वर्ष के बच्चे नशे में धुत होने की तैयारी में लगे हुए थे। यह वही सड़कें हैं, जिन्हें पटना की शान माना जाता है। इन सड़कों पर चौबीसों घंटे हर समय नेताओं, पुलिस की आवाजाही लगी रहती है, लेकिन उन्हें कोई देखने वाला नहीं, ना ही कोई पूछने वाला है।
नेताओं को उनसे क्या मतलब है? यह कोई वोटबैंक तो है नहीं कि उसे कम से कम अगले पांच सालों तक बचाया जा सके। पुलिस भी बेचारी इनका क्या करे? इन्हें पकड़कर इनके रिहेब्लिटेशन के लिए कहां रखे? उन्हीं सड़को से दिन-रात नेताओं की गाड़ियों का पीछा कर रहे मीडियाकर्मियों की भी इन पर नज़र नहीं पड़ती है। क्योंकि, वह तो आजकल सिर्फ अपनी चाटुकारिता के धर्म निभाने व मसालेदार खबर खोजने में लगी हुई है ।
युवाओं में बढते नशे की लत एक बड़ी सामाजिक समस्या बन चुकी है
पूरे देश में बच्चों के बीच ड्रग्स का सेवन का प्रचलन आज एक गंभीर मसला बन चुका है। दिनों दिन इसके सेवन करने वालों की संख्या में बहुत तेजी से बदलाव देखे जा रहे हैं। आज इनका सेवन ना सिर्फ सड़को के किनारे रह रहे ये किशोर वर्ग कर रहे हैं, वरन आर्थिक रूप से सम्पन्न घरानों के बच्चों में भी इस नशे की लत बढ़ती जा रही है। कभी फैशन में पड़ कर तो कभी दोस्तों के उकसावे पर ये मासूम बच्चे इन मादक पदार्थों के भंवर में फंस जाते हैं।
आजकल तो महिलाओं में भी नशे की आदत आम होती जा रही है, विशेषरूप से बड़े शहरों में, जहां महिलाओं के लिए नशा ‘स्टेटस सिंबल’ माना जाता है। नशा करना ठीक वैसा ही जैसे कोई बैल के सामने खड़ा हो कर आह्वान करे कि आ बैल मार मुझे। समूची दुनिया के साथ ही भारत में नशे का प्रतिशत बढ़ना चिंताजनक है।
नशे से सम्बन्धित एक सर्वेक्षण के अनुसार
भारत सरकार के एक सर्वेक्षण में खुलासा हुआ है कि 10 से 17 वर्ष आयु समूह के लगभग 1.48 करोड़ बच्चे और किशोर अल्कोहल, अफीम, कोकीन, भांग सहित कई तरह के नशीले पदार्थों का सेवन कर रहे हैं। पटना में भी जहां आर्थिक रूप से सम्पन्न बच्चे हेरोइन, अफीम, कोकीन, ब्राउन सुगर आदि का सेवन धड़ल्ले से कर रहे हैं। वहीं गरीब बच्चे बीड़ी, दारू, सिगरेट से शुरू कर चरस, गांजा, भांग, अफीम, ह्वाइटनर, कफ-सीरप आदि का सेवन कर रहे हैं।
चिकित्सीय दवाईयों का नशे के रूप में उपयोग
यह जान कर आश्चर्य होता है कि आजकल नशे के आदी युवा टोरेक्स, कोदेन, ऐल्प्राजोलम, अल्प्राक्स, कैनेबिस जैसे दवाओं को भी नशे के रूप में प्रयोग में लाने लगे हैं। इसके लिए गलत संगति सबसे बड़ी ज़िम्मेदार है जिसके प्रभाव में आ कर युवा गुटखा, सिगरेट, शराब, गांजा, भांग, अफीम और धूम्रपान सहित चरस, स्मैक, कोकीन, ब्राउन शुगर जैसे घातक मादक दवाओं के गुलाम बन जाते हैं। पहले उन्हें मादक पदार्थ मुफ्त में उपलब्ध कराकर इसका लती बनाया जाता है और फिर लती बनने पर ये युवा इसके लिए चोरी से लेकर हत्या जैसे जघन्य अपराध तक करने को तैयार हो जाते हैं।
बिहार में शराबबंदी के बाबजूद भी नशे का कहर जारी है
आज भले ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आव्हान पर पूरे बिहार में शराबबंदी की घोषणा हो चुकी है। लेकिन, परिणाम उतना भी सुखद नहीं मालूम पड़ता है। आज शराब घरों तक पहुंचाई जा रही है और जिन्हें शराबबंदी के चलते शराब नहीं मिल रही है, उन्होंने इसका नया तरीका ढूंढ लिया है। वे अब उसके विकल्प के तौर पर नशे के अन्य मादक पदार्थों का सेवन करने लगे हैं।
कई सर्वे के अनुसार, शराब बंदी के बाद, राज्य में नशा करने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है। लोग अब हेरोइन, शराब, मारिजुआना, इंजेक्शन सहित अन्य नशे के वैकल्पिक तरीकों का उपयोग तेजी से करने लगे हैं। शराब के व्यवसाय में लिप्त लोगों ने अब विकल्प के तौर पर इसे अपने एक नये व्यवसाय के रूप में शुरू कर दिया है ।
पिछले वर्ष ही 14 सितंबर को पटना के जक्कनपुर की पुलिस अधिकारियों की एक टीम ने एक छापेमारी के दौरान लगभग 25 ग्राम ब्राउन शुगर जब्त की थी जिसका अंतरराष्ट्रीय बाजार में अनुमानतः कीमत 50 लाख रुपये बताया गया था। राज्य के अन्य भागों से ब्राउन शुगर जैसे नशीले पदार्थों की गोपनीय आपूर्ति और बिक्री में वृद्धि जैसे अनेक खबरें समाचार-पत्रों में लगातार आती रहती हैं, जो चिंता का एक बहुत बड़ा विषय है।
बढ़ते नशे की लत युवाओं को शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक रूप से कमज़ोर कर रही है
बच्चों में नशीले पदार्थों के सेवन की प्रवृत्ति और चलन के लगातार बढ़ने के कारण यह किशोरों के शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।
नशे की लत के चलते दिनोंदिन आज का किशोरवर्ग आक्रामक होता जा रहा है। इसका अधिक सेवन एचआईवी, हेपेटाइटिस, तपेदिक जैसे गंभीर रोगों का कारण तो है ही, इसके अलावा इससे आर्थिक हानि और असामाजिक व्यवहार जैसे- चोरी, हिंसा और अपराध एवं सामाजिक कलंक तथा समाज का समग्र पतन और इसके कई रूपों में दुष्प्रभाव भी देखने को मिल रहे हैं।
आजकल की भागदौड़ की ज़िन्दगी के मानसिक तनाव से भी लोग नशे की ओर रुख करते हैं
अक्सर ऐसा देखा गया है कि जब घर-परिवार का कोई व्यक्ति किसी तरह का नशा करता है तो ऐसी परिस्थितियां भी किशोरों को उस नशे के लिए प्रेरित करती हैं। इसके अलावा यह देखा गया है कि कुछ ऐसी दर्दनाक घटनाएं हो जाती हैं, जिससे व्यक्ति मानसिक-तनाव में आ जाता है। ऐसी परिस्थिति में भी लोग नशे का सहारा लेने लगते हैं।
आज भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में लोग अपने कार्यों में काफी व्यस्त होते जा रहे है । इसके चलते वे बच्चों को ज़्यादा समय नहीं दे पा रहे हैं। ऐसे में बच्चे कई बार खुद को उपेक्षित महसूस करने लगते हैं। इस वजह से भी वे बुरी संगत में पड़कर नशे की गिरफ्त में आ जा रहे हैं। इसलिए अभिभावकों व परिवारजनों को अपने बच्चों और उनकी ज़रूरतों का हमेशा ध्यान रखना चाहिए।
नशा एक ऐसी लत है, जिसे बलपूर्वक छुड़ाया नहीं जा सकता है। दुनिया भर में आज अनेक रिहेब्लिटेशन केन्द्र खुल चुके हैं जो नशे के आदी व्यक्तियों को नशे से छुटकारा दिलाने का काम करते हैं। भारत में भी इस प्रकार के कई केन्द्र हैं किन्तु, रिहेब्लिटेशन केन्द्र में भी नशा छुड़वाने के संबंध में जो सबसे कारगर तत्व रहता है, वह है नशा करने वाले की स्वयं की आत्मशक्ति। यह आत्मशक्ति हर नशेबाज में एक सी नहीं होती है। यह पाया गया है कि जो व्यक्ति जितना अधिक नशे का आदी हो चुका होता है, उसकी आत्मशक्ति उतनी ही कमजोर पड़ चुकी होती है।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पूरे विश्व को नशे के दुष्परिणामों के बारे में सावधान करने की पहल
ऐसा व्यक्ति चाह कर भी नशे की गिरफ्त से खुद को आज़ाद नहीं करा पाता है। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा यह तय किया गया कि क्यों ना व्यक्तियों को नशे के विरुद्ध जागरूक किया जाए ताकि वे नशे की गिरफ्त में ही ना आएं। इसके तहत यह उद्देश्य रखा गया है कि समाज में बढ़ती हुई मद्यपान, तम्बाकू, गुटखा, सिगरेट की लत एवं नशीले मादक द्रव्यों, पदार्थों के दुष्परिणामों से समाज को अवगत कराया जाए, जिससे मादक द्रव्य एवं मादक पदार्थों के सेवन की रोकथाम के लिए उचित वातावरण एवं चेतना का निर्माण हो सके।
बहरहाल, भारत में नशीले पदार्थ की सीमा और स्वरूप संबंधी राष्ट्रीय सर्वेक्षण के आंकड़ें चिंता बढ़ाने वाले हैं। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री रतन लाल कटारिया ने लोकसभा को बताया कि मंत्रालय ने वर्ष 2018 -25 के लिए नशीले पदार्थों की मांग में कमी लाने के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना तैयार की है और उसका कार्यान्वयन किया जा रहा है। बिहार सरकार ने भी इससे जुड़े कई कदम उठाए हैं।
नशे से मुक्ति के लिए समय-समय पर सरकार के साथ-साथ स्वयंसेवी संस्थाएं भी हमेशा पहल करती रहती हैं। इसके लिए स्वयं व्यक्ति और परिवारजनों की भूमिका ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है। नशे का निषेध सबसे पहले घर से ही शुरु होना चाहिए। यदि पिता अपने बच्चे के सामने सिगरेट के धुंए के छल्ले नहीं उड़ाएगा, यदि वह नशे वाले गुटखा नहीं खाएगा और शराब की चुस्कियां नहीं लेगा तो उसके बच्चे के मन में यही धारणा दृढ़ होगी कि नशा करना बुरी बात है।
इसके साथ ही ज़रूरी है कि अभिभावक अपने बच्चों पर नज़र रखें। इसके लिए वे स्वयं नशे से दूर रहें और बच्चों को भी नशे की ओर आकर्षित ना होने दें। अब ज़रूरत है हमें, आपको, हम सबको ज़्यादा जागरूक होने की और दूसरों को अधिक से अधिक जागरूक करने की।