मेरे पास फाइलें हाईलाइट करने के लिए हाइलाइटर समाप्त हो गए थे। मार्कर में स्याही भी गायब थी। इसलिए मैं इसे खरीदने के लिए स्टेशनरी की दुकान पर गया। वहां थोड़ी भीड़ थी। स्टेशनरी लेने के लिए मेरे से पहले 4-5 और लोग पहुंचे हुए थे। मैं वहीं खड़ा होकर और अपनी बारी का इंतजार करने लगा।
एक सज्जन वहां आए थे। वह दुकानदार से शिकायत कर रहे थे कि मार्कर, जो उन्होंने दुकान से खरीदा था, ठीक से काम नहीं कर रहा था। वो दुकानदार बार-बार कह रहा था कि मार्कर उसकी दुकान का नहीं था। सज्जन और दुकानदार दोनों अपनी अपनी जिद पर अड़े हुए थे।
सज्जन बोल रहे थे, आखिर झूठ बोलकर मुझे क्या मिलेगा? मैंने ये खराब मार्कर आपकी ही दुकान से लिया था। चूंकि, यह खराब है, इसलिए इसे कृपया बदल दीजिए। दूसरी ओर, दुकानदार भी अपनी बात पर अड़ा हुआ था कि मार्कर उसकी दुकान का नहीं था। दोनों में विवाद चल रहा था।
एक छोटी सी बात कभी-कभी हमारे लिए आत्मसम्मान का प्रश्न बन जाती है
धीरे-धीरे उनका विवाद, झगड़ा और फिर उनकी आत्म-स्वाभिमान की लड़ाई का प्रश्न बन गया। दोनों की ईमानदारी सत्य के तराजू पर चढ़ गई थी। कोई पलड़ा झुकने को तैयार नहीं था। जिसका पलड़ा ऊपर जाने लगता वो थोड़ा सा आत्मसम्मान का वजन चढ़ाकर पलड़ा नीचे कर देता। सत्य का तराजू कभी इधर को तो कभी उधर को डोलता रहा।
ऐसे कोई फैसला ना होते देख सज्जन पुरुष ने चिढ़कर कहा, “भाई, कोई बात नहीं, आप आप रहने ही दो। इस मार्कर को नहीं देने से, ना तो आप अमीर बनेंगे और ना ही मैं गरीब। मैं ब्राह्मण हूं, झूठ नहीं बोलता और दूसरी बात यह कि ब्राह्मण क्रोधित होने पर तुम्हारा भला तो कतई नहीं हो सकता।
यह सुनकर दुकानदार थोड़ा नरम पड़ गया। उसने कहा भाई, इस छोटी सी बात पर इतना गुस्सा करने की क्या जरूरत है? इतने लोग मेरी दुकान से मार्कर लेते हैं। मैं सबको तो याद नहीं रख सकता? ऐसा कीजिए, आप अपना मार्कर मुझे दे दीजिए और बदले में नया मार्कर ले लीजिए।
सज्जन पुरुष के आत्म-स्वाभिमान को अपेक्षित प्रोत्साहन मिल गया और वे शांत हो गए। दुकानदार ने झुककर बड़प्पन दिखा दिया था। अब सज्जन पुरुष की बारी थी। उन्होंने कहा, अगर ऐसा है तो मैं भी अपनी बात पर जोर नहीं देता। कोई बात नहीं, ऐसा कीजिए, आप पैसे ले लीजिए और मुझे एक नया मार्कर दे दीजिए। दोनों के आत्मसम्मान का मामला सुलझ गया था। लेकिन उन दोनों को ऐसे देखकर मुझसे रहा नहीं गया।
जाति आपके सर्वश्रेष्ठ होने का प्रमाण नहीं है
मैंने सज्जन से पूछा, आप ब्राह्मण हैं, ज़ाहिर सी बात है कि आपने रामायण और महाभारत तो पढ़ा ही होगा। सज्जन पुरुष ने कहा हां, हां, बिल्कुल। मैंने उनसे पूछा महाभारत और रामायण में पुनर्जन्म की अनगिनत कहानियां हैं तब तो आप भी पुनर्जन्म की घटना को भी मान रहे होंगे?
उन्होंने कहा, हां बिल्कुल। मैंने कहा तब तो आपको यह भी मानना होगा कि हर जन्म में आप ब्राह्मण ही नहीं होंगे। किसी ना किसी जन्म में आप कभी महिला, कभी पुरुष, कभी पशु, कभी ब्राह्मण, कभी क्षत्रिय, कभी वैश्य, कभी दलित हुए होंगे?
उन्होंने मुझसे कहा कृपया मुझे पहेलियां मत सुनाइए। मुझे स्पष्ट रूप से बताएं कि आप क्या कहना चाहते हैं? यह सच है कि पिछले जन्मों में मैं कभी स्त्री, कभी पुरुष, कभी पशु, कभी ब्राह्मण, कभी क्षत्रिय, कभी वैश्य, कभी दलित रहा होऊंगा, लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है?
मैंने कहा जब आप स्वीकार कर रहे हैं कि आप कभी एक महिला, कभी एक पुरुष, कभी एक जानवर, कभी एक ब्राह्मण, कभी एक क्षत्रिय, कभी एक वैश्य, कभी एक दलित आदि पिछले जन्मों में रहे होंगे तो फिर आप ब्राह्मण होने में इतना गौरवान्वित महसूस क्यों कर रहे हैं?
संसार के रंगमंच पर हम सब महज़ किरदार हैं
आप जानते ही होंगे कि हम परमात्मा की आत्मा का एक अंश हैं, जो अमर है, चिरंतन है, चिरस्थायी है। यही चिरस्थायी आत्मा है जो सभी में व्याप्त रहती है। यह जाति, देश, क्षेत्र, लिंग आदि से परे है, फिर आप इसे एक जाति से क्यों बांध रहे हैं? आपको स्वयं के ब्राह्मण होने पर इतना गर्व क्यों है? आपकी विभिन्न जातियां, देश, लिंग आदि इस अमर आत्मा के मार्ग पर बस अलग-अलग पड़ाव मात्र ही तो हैं तो फिर इस पड़ाव मात्र पर इतना गर्व क्यों?
यह सुनकर सज्जन थोड़ा चुप हो गए, फिर थोड़ी देर ठहरकर बोले हां, पुनर्जन्म का तथ्य सत्य है और जाति, लिंग आदि एक भ्रम है। चूंकि, हम पुनर्जन्म को भूल जाते हैं, यही कारण है कि हम खुद को एक विशेष जाति, धर्म, लिंग, देश आदि से संबंधित होने पर स्वयं के लिए गर्व पाल लेते हैं। किसी जाति विशेष का स्मरण चिरस्थायी आत्मा की विस्मृति का परिणाम है।
मैंने सहमति में अपना सिर हिलाया और मुस्कुराया। वह भी मुस्कुराए और चले गए।