सरस्वती बाल मंदिर, जो दिल्ली में मुल्तानी ढांडा पहाड़गंज में स्थित है। पांचवी कक्षा की क्लास टीचर वीना (बदला हुआ नाम) से स्कूल के इंस्पेक्शन (निरीक्षण) के दौरान मेरी मुलाकात हुई। दिल्ली सरकार की तरफ से जारी पत्र में प्राइमरी स्कूलों में कुछ शिक्षकों का आना अनिवार्य बताया गया है।
बहरहाल, मैं स्कूल में वीना से मिला और बातों-बातों में हमारी बातें उनकी पर्सनल लाइफ तक पहुंच गईं। वीना का स्कूल उनके घर से महज 2.5 किमी की दूरी पर है। वीना अच्छे पैसे कमा लेती हैं लेकिन उन्होंने वो घर नहीं छोड़ा, जहां वो पैदा हुईं और पली-बढ़ी हैं।
मेरे लिए भगवान और समाज के लिए गाली
वीना दिल्ली में जिस्मफरोशी के काम के लिए मशहूर जीबी रोड में पैदा हुईं। उनकी माँ एक सेक्स वर्कर थीं। वीना बताती हैं, “अपने जिस्म की बोली लगाने के लिए मेरी माँ का लाइसेंस बना हुआ था।” अभी भी वो छोटी लड़कियों को डांस सिखाती हैं। दिन में 2 बजे के बाद वीना ने मुझे उनके घर आने का न्योता दिया, मुझे अच्छा लगा। मैं मना नहीं कर पाया। मैं पिछले 20 सालों से इसी बात की उधेड़बुन में लगा हुआ था कि वेश्यावृति में फंसी हुई लड़कियों की मनोदशा कैसी होती होगी।
दिल्ली के जीबी रोड के कोठा नंबर 19 में एक छोटी सी जगह पर बैठी राखी मानो ऐसी लग रहीं थीं, जैसे उनकी झुर्रियां और उसकी सिकुड़न चीख-चीखकर बता रही थी कि मेरी ज़िंदगी घुंघरुओं और मर्दो के लिए बिस्तर पर सेज सजाने में ही बीत गई। वीना ने बताया कि मेरी माँ मेरे लिए भगवान हैं मगर समाज के लिए एक गाली।
हज़ारों-लाखों लड़कियां देह व्यापार के दलदल में फंस जाती हैं
वर्ष 1990 में राखी नेपाल से भारत लाई गईं थीं। उनकी माँ ने उनको महज़ 250 रुपये में शहर के बड़े बिज़नेसमैन को बेच दिया था। वह छोटी लड़कियों की तस्करी करने में माहिर था। राखी ने हालात के आगे घुटने टेक दिए। 1990 में महज़ वो सिर्फ 17 साल की थीं। उस व्यापारी ने राखी को जीबी रोड स्थित कोठे की मालकिन सितारा बाई के हाथों 900 रुपये में बेच दिया था।
राखी बताती हैं कि सितारा बाई मिजाज़ की अच्छी थीं। मुझे यहां एडजस्ट होने में पूरे दस साल लगे। 1994 में मैं माँ बन गई थी। वैसे तो मेरी अन्य साथी कभी-कभार प्रेग्नेंट होती तो अपना अबॉर्शन करवा लेती थीं मगर मुझे वीना को जन्म देना था। उसको जन्म देने के बाद मेरी ज़िन्दगी बहुत कठिन हो गई थी। उसको पालने के साथ-साथ मर्दों के साथ सोना, यह कोई आसान काम नहीं था।
नारी शक्ति की मिसाल हैं वीना की माँ
वीना आगे बताती हैं, “जिस दिन वीना पैदा हुई थी, मैंने इसकी नाभि पकड़कर कसम खाई थी कि मैं इसको रखूंगी अपने साथ मगर इस पर इस काम की आंच तक नहीं आने दूंगी। मैंने तिरपाल की छत के नीचे इसको पाला है। 4 साल तक इसने सीमेंट से बनी छत नहीं देखी। जब इसने स्कूल जाना शुरू किया, उसके बाद ही इसने पहली बार बाहर का आसमान देखा।”
वीना कहती हैं कि स्कूल में एडमिशन के लिए फॉर्म भरते वक्त मेरी माँ के पास मेरे पिता के नाम पर ना तो कोई जवाब था और ना ही कोई नाम। वो किसका नाम लेतीं? किसको मेरा बाप बनातीं? इस बात पर मुझे बचपन में बहुत ताने सुनने को मिलते थे। अब मैं समाज के ऐसे तानों के जवाब देने लायक हो गई हूं, तो अब मैं सबकी बोलती बंद कर देती हूं। इस समय मैं जिस स्कूल में पढ़ाती हूं, वहां की प्रिंसिपल भी जानती हैं कि मैं किस जगह से आती हूं मगर जो लोग वास्तव में समाज में रहने लायक होते हैं, उनको जगह या काम से कोई मतलब नहीं होता, उनको असली प्रतिभाओं को पहचानना आता है।
कैसे वीना की माँ ने वीना को समाज में सिर उठाकर जीना सिखाया
बेशक राखी ने अपना जीवन हालातों के हाथों बेच दिया हो मगर उन्होंने अपनी बेटी की परवरिश एवं उसकी शिक्षा-दीक्षा में कोई कसर नहीं छोड़ी। मैंने वीना को बताया कि अपनी ज़िंदगी के इतने महत्वपूर्ण पलों को लोगों के साथ साझा करें। आपकी कहानी से बहुत से लोग प्रेरित होंगे। जिनकी आवाज़ देश ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में गूंजती है और लोगों को प्रेरित करती है।
फरवरी माह से वो अपने लेखन की शुरुआत करेंगी और उन्होंने मुझसे वादा किया है कि वो अपनी जैसी लाखों लड़कियों को मोटिवेट कर उनका हौसला बढ़ाएंगी।
नोट- मेरा यह लेख वीना जी से इंटरव्यू के आधार पर लिखा गया है।