आज आप लोगों के लिए हम लेकर आए हैं एक रियल लव स्टोरी। जिसमें प्रेमी अपने प्यार की खातिर साइकल से स्वीडन तक का सफर तय किया। यकीनन यह बहुत कमाल की और दिलचस्प कहानी है।
दलित लड़का जिसने बहुत यातनाएं झेलकर जीवन में आगे बढ़ा
इस लव स्टोरी में मुख्य किरदार एक साइकल है जिसकी वजह से यह लव स्टोरी मुकम्मल हो पाई। तो कहानी शुरू होती है उड़ीसा के एक ऐसे शख्स से जो उड़ीसा के बुनकर दलित परिवार से ताल्लुक रखता है। प्रद्युम्न कुमार महानन्दिया का जन्म 1949 में अंगुल जिले के अठमालिक उप-मंडल के कंधापाड़ा गांव में हुआ था। जैसा कि हम जानते हैं अभी भी कुछ इलाकों में दलितों की स्थिति सुधर नहीं पाई है।
मगर उस दौरान तो ऐसा था जैसे मानो किसी ने बहुत बड़ी गलती कर दी हो। अपने बचपन से ही इस बालक को तरह-तरह की यातनाएं झेलनी पड़ी। उन्हें स्कूल में भी बाकी बच्चों से अलग बैठाया जाता था और समाज के कुछ असामाजिक तत्व भी उनके घर पर पत्थर फेंका करते थे। मगर इन परिस्थितियों को उन्होंने अपने ऊपर कभी हावी नहीं होने दिया। नई-नई चीज़ें करने का जज़्बा उनमें बचपन से ही था।
बचपन से उनको आर्ट्स में बहुत दिलचस्पी थी और वह कला में पढ़ाई करना चाहते थे। मगर पैसों की तंगी उनके रास्ते में मुश्किल बन गई जिसके चलते उनका एक अच्छे कॉलेज में एडमिशन होने के बावजूद वह एडमिशन नहीं ले पाए। मगर वो कहते हैं ना कि “अगर किसी चीज़ को पूरी शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात आपको उससे मिलाने में जुट जाती है।” उनके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। उनकी काबिलियत को देखते हुए उड़ीसा सरकार ने उनकी मदद की और 1971 में दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट्स में उन्हें पढ़ाई का मौका मिला ही गया।
लोगों की स्केच बनाने वाला एक शानदार कलाकार
कहानी लेकिन अभी खत्म नहीं हुई थी। मानो मुश्किलें उनके जीवन में आने ही वाली थी। उनको एडमिशन तो मिल गया था लेकिन रहने के लिए घर नहीं था। ऐसे में उन्हें फुटपाथ पर ही सोना पड़ता था और पब्लिक टॉयलेट का उपयोग करना पड़ता था। कदम-कदम पर उनकी काबिलियत हमेशा उनके साथ थी।
अक्सर वो शाम को दिल्ली के कनॉट प्लेस पर कुछ लोगों के पोर्ट्रेट बनाया करते थे जिससे उन्हें अपने खर्चे के लिए पैसे मिल जाया करते थे। रोज़ाना की तरह एक दिन वह कनॉट प्लेस पर बैठे हुए थे तो उनके सामने एक कार आकर रूकी जिसमें पिछली सीट पर एक विदेशी मोहतरमा बैठी थीं। मोहतरमा ने प्रद्युम्न से अपना पोर्ट्रेट बनाने को कहा।
बिना कुछ बोले प्रद्युम्न ने उनका पोर्ट्रेट बनाकर दे दिया और उस पोर्ट्रेट को देखकर वह मोहतरमा इतनी खुश हो गईं कि उन्होंने प्रद्युम्न से मिलने आने को कहा। अगले दिन प्रद्युम्न उस मोहतरमा से मिलने पहुंचे तो उन्हें पता चला कि वह मोहतरमा और कोई नहीं बल्कि रूस की शार्लेट वॉन शेडिन, जो कि दुनिया की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री थीं। प्रसिद्धि की ओर उनका यह पहला कदम था।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की भी पोट्रेट बनाई थी
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सचिव महानंदिया के पास आए और उनसे इंदिरा जी का पोर्ट्रेट बनाने को कहने लगे। उनके पोर्ट्रेट को देख सभी बहुत खुश हुए और उसके बाद से दिल्ली सरकार का रवैया भी उनके प्रति काफी बदल गया। तब तक प्रद्युम्न कुछ मुश्किल हालातों से गुजर रहे थे, फिर सरकार ने उनको कुछ ज़रूरी सुविधाएं मुहैया करवाने का फैसला किया।
उन्हें देर रात में काम करने के लिए बंदोबस्त किया गया। इसके बाद से वो दिन-रात करके दोगुनी मेहनत करने लगे। मगर उन्हें भी शायद इस बात का बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि कनॉट प्लेस के एक कोने में बैठे-बैठे उनकी ज़िन्दगी बदलने वाली है। यह कहानी साल 1975 की है, जब शार्लेट वॉन शेडिन स्वीडन स्टूडेंट मशहूर हिप्पी ट्रेल को फॉलो करते हुए 22 दिन के एक टूर पर भारत आई थीं।
जब वह कनॉट प्लेस घूमने के लिए गईं और उन्होंने प्रद्युम्न को जैसे ही देखा अपना पोर्टेड बनाने के लिए कहा। फिर वही हुआ ‘Love at First Sight’। उन्हें देख प्रद्युम्न इतना घबरा गए कि उनका पोट्रेट नहीं बना पाए और उनसे फिर कल आने को कहा। अगले दिन प्रद्युम्न ने उनका पोर्ट्रेट बनाकर दे दिया। इसके बाद वह प्रद्युम्न को लगातार मिलने आती रही, दोनों के बीच पहले तो गहरी दोस्ती हुई और फिर एक जबरदस्त कनेक्शन बन गया।
शॉर्लेट के साथ बढ़ती प्रेम कहानी
किसी ने बड़े कमाल की बात की है कि किसी लव स्टोरी में दो प्यार करने वाले कभी ना कभी तो मिलेंगे। मगर वो दिन कौन-सा होगा यह बात किसी को नहीं पता होती है। प्रद्युम्न का केस थोड़ा सा अलग था। दरअसल उनके पिताजी पोस्ट मास्टर के साथ ज्योतिष विज्ञान की भी काफी जानकारी रखते थे।
उन्होंने पहले ही यह भविष्यवाणी कर दी थी कि प्रद्युम्न का विवाह दूसरे देश की वृषभ वाली लड़की से होगी जो एक जंगल की मालकिन भी होगी। शार्लेट वॉन शेडिन से मिलने के बाद उनका ध्यान अपने पिता की भविष्यवाणी पर गया और दिलचस्प बात तो यह है कि जब उन्होंने यह बात बताई तो उन्होंने कहा “हां मैं एक संगीतकार हूं। मेरी राशि भी टोरस है और एक बड़े फॉरेस्ट की मालकिन भी हूँ”।
यह बात करने के बाद प्रद्युम्न को यकीन होने लगा कि शायद यही वो लड़की है जिसके साथ उनकी शादी होने वाली है। धीरे-धीरे यह प्यार आगे बढ़ता गया। फिर उन्होंने ट्रिवीएल रीति-रिवाजों से शादी कर ली। दो-तीन हफ्तों के बाद शेडिन के वीजा खत्म होने का दिन आ गया और उन्हें स्वीडन वापस लौटना पड़ा। दूसरी तरफ प्रद्युम्न ने वहीं पर रहकर अपने काम को आगे बढ़ाने का फैसला लिया।
शॉर्लेट से मिलने साइकल से ही स्वीडन निकल पड़े
करीब डेढ़ साल तक वह अपनी पत्नी से अलग रहे और पत्र के जरिए वह एक-दूसरे से बातें करते थे। आखिरकार, साल 1977 में शेडिन से मिलने स्वीडन जाने का फैसला कर लिया लेकिन उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह हवाई जहाज का टिकट ले पाते। ऐसे में उन्होंने अपना सब सामान बेच दिया जिससे उन्हें उसके 1200 रूपये मिले। फिर एक नए मोड़ की शुरुआत होती है।
उन्होंने उन 1200 रूपये में से 80 रूपये से एक पुरानी साइकिल खरीदी और अपने 6000 किलोमीटर से भी ज्यादा लंबे सफर पर बिना कुछ सोचे-समझे निकल पड़े। जी हां! यह बिल्कुल सही बात है कि वह इतना लंबा सफर साइकिल से तय करने वाले थे। उनके पास केवल स्लीपिंग बैग था। अपने इस प्यार से मिलने की राह में उन्हें बहुत-सी परेशानियां हुई व दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
बीच-बीच में रुक-रुककर वह स्केच बनाते जिसके बदले वह उनसे खाना और एक रात उनके घर में रुकने की मदद मांग लेते थे। कई रातें खुले आसमान में भी उनकाे बितानी पड़ी और कुछ अच्छे व्यक्तियों की मदद से वह ईरान, तुर्की, अफगानिस्तान, बुल्गारिया जर्मनी, ऑस्ट्रिया जैसे देशों से गुजरते हुए पांच महीने के लंबे सफर के बाद आखिरकार स्वीडन की सीमा पर पहुंच गए। फिर एक नया ट्विस्ट आया।
स्वीडन पहुंचने के बाद क्या हुआ?
इमीग्रेशन वीजा ना होने की वजह से उनको वहीं पर रोक दिया जाता है। अपनी शादी का सर्टिफिकेट दिखाने के बाद भी स्वीडिश अधिकारियों ने अंदर जाने की अनुमति नहीं दी क्योंकि अधिकारियों को इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था कि साइकिल के जरिए कोई व्यक्ति भारत से स्वीडन तक कैसे पहुंच सकता है? साथ ही ऐसे व्यक्ति की शादी स्वीडन की अमीर लड़की से कैसे हो सकती है?
शादी की कुछ तस्वीरें देखने के बाद अधिकारियों ने शेडिन से संपर्क साधा और कन्फर्मेशन के बाद प्रद्युम्न को सीमा में दाखिल होने की इजाज़त दी। अपने पति के पहुंचने की बात सुनकर शेडिन खुद प्रद्युम्न को लेने आईं। स्वीडन पहुंचने से पहले प्रद्युम्न को इस बात का जरा सा भी अंदाजा नहीं था कि उनकी शादी स्वीडन की एक रॉयल परिवार से ताल्लुक रखने वाली लड़की से हुई है।
शेडिन का सच जानने के बाद प्रद्युम्न के मन में कई सवाल आने लगे लेकिन पत्नी से मुलाकात के बाद सबकुछ समाप्त हो गया। फिर साल 1989 में दोनों ने स्वीडिश कानून के हिसाब से दोबारा शादी की। हालांकि, प्रद्युम्न के लिए वहां सब कुछ नया था लेकिन उनकी पत्नी ने इसे समझने और वहां की लाइफ स्टाइल में ढलने की पूरी मदद की।
साइकल न होती तो ये लव स्टोरी भी अधूरी रह जाती
आपको जानकर खुशी होगी कि आज इन दोनों की शादी को 40 साल से भी अधिक समय हो गया है और इनके दो बच्चे भी हैं। प्रद्युम्न स्वीडन के नागरिक हैं और वहां स्वीडिश सरकार के कला और सांस्कृतिक विभाग के सलाहकार के रूप में काम करते हैं। दुनिया भर में आज भी उनकी पेंटिंग की प्रदर्शनी लगती रहती है। साथ ही प्रतिष्ठित यूनिसेफ ग्रीटिंग कार्ड में भी उनकी पेंटिंग को जगह मिल चुकी है।
अब दोनों पति-पत्नी उड़ीसा आते रहते हैं और अपने गांव वालों से मिलते जुलते रहते हैं। 4 जनवरी 2012 को उन्हें भुवनेश्वर में उन्हें संस्कृति उत्कल यूनिवर्सिटी के द्वारा मानद डॉक्टरेट की डिग्री से भी सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें उड़ीसा सरकार द्वारा स्वीडन में उड़ीसा कल्चर एंबेसडर के रूप में भी चुना गया है।
उनकी यह कहानी इतनी खास और दिलचस्प है कि इसपर किताब पहले ही लिखी जा चुकी है और बहुत से डायरेक्टर इस पर फिल्म बनाने की बात भी कर रहे थे। इस कहानी की रियल हीरो एक पुरानी साइकल है। यदि उसका साथ नहीं होता तो यह लव स्टोरी भी शायद अधूरी ही रह गई होती।