यह योजना है कैसा, निःशुल्क मुहैय्या पर भी लेते हैं पैसा
निःशुल्क योजनाओं की करते हैं बात, यह तो गरीबों पर है घात।
देश में कई तरह की योजनाएं चल रही हैं, जो आदिवासियों के हित में बनाई जाती हैं। लॉकडाउन के वक्त हमारे प्रधानमंत्री ने लोगों से अपील की थी कि जब तक लॉकडाउन लागू है, तब तक मकान मालिक, किरायेदारों से पैसा ना लें लेकिन ऐसा हुआ? बिल्कुल नहीं।
सोचिए सड़क पर लोग क्यों आए?
चाहे वह प्रवासी मज़दूर हों, कामगार हों या स्टूडेंट्स लेकिन देश में कई जगह मकान मालिक किराया इकट्ठा करने के लिए दबाव बनाते गए। नतीजा यह हुआ कि लॉकडाउन में लोग सड़कों पर आ गए। सभी अपने-अपने घरों के लिए रवाना होने लगे।
जहां एक ओर मज़दूर, कामगार, स्टूडेंट्स पहले से ही खाने-पीने और पैसों की कमी से परेशान थे, अब घर से निकले तो उन्हें पुलिस का डंडा और तरह-तरह की सज़ाओं को झेलना पड़ा। देखा जाए तो निम्न वर्ग और खासकर आदिवासी हर जगह प्रताड़ित होते रहे। चाहे वे घर से बाहर हों या घर के अंदर, किसी-ना-किसी रूप से वे शोषित होते रहे।
बात उस योजना की जो है शोषण की गिरफ्त में
केंद्र सरकार ने 25 सितम्बर 2017 में “सहज बिजली हर घर बिजली” (सौभाग्य योजना) की शुरुआत की। छत्तीसगढ़ के कोरबा ज़िले में सरकार के अनुसार, मार्च 2019 तक 30278 घरों का यानि कि 100% विद्युतीकरण किया जा चुका था, जो गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवार हैं, जिन्हें बिजली निःशुल्क उपलब्ध कराई गई। सामान्य लोगों को, जो गरीबी रेखा से ऊपर हैं, उन्हें मात्र 500 रुपये देकर बिजली कनेक्शन उपलब्ध कराया जाता है।
इस योजना के तहत सरकार की मंशा उन गरीबों को बिजली उपलब्ध कराना है, जो दीया-चिमनी जलाकर रातों में भोजन पकाते हैं या उन गरीब स्टूडेंट्स के लिए है, जो दीया-चिमनी, अंगेठा की आग की रौशनी में पढ़ रहे हैं। दरअसल, गरीबों और आदिवासियों की शिक्षा स्तर में सुधार एवं रोज़गार के अवसर को बढ़ाने के मकसद से इस योजना को चलाया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ के ज़िला कोरबा, ग्राम पंचायत सरभोका में 14 मार्च 2020 को दो वर्ष पुरानी हो चुकी एकल बत्ती मीटर को बदलकर नया मीटर लगाने का कार्य किया जा रहा था। शासन की योजनाओं के अनुसार, यह मीटर निःशुल्क लगाए जाते हैं लेकिन मीटर लगा रहे मज़दूर हितग्राहियों से पैसा लिए जा रहे थे।
मैंने हकीकत जानने के लिए ग्राम पंचायत सरभोका के मोहल्ले नावापारा, जूनापार और इन्दिराबसाहट के हितग्राहियों से सम्पर्क किया तो पता चला कि वाकई में हितग्राहियों से पैसा लिया जा रहा था। इन मोहोल्लों में ज़्यादातर आदिवासी समुदाय बसे हुए हैं।
क्या कहते हैं ग्रामीण?
बाबूराम बिंझवार, नावापार के निवासी ने कहा, “मज़दूरों ने मुझे बताया कि नई मशीन लगेगी, जिसके लिए मुझे पुरानी मशीन उन्हें देनी है, तो पुरानी मशीन मैंने उनको दे दिया। फिर उन्होंने नई मशीन लगाई। उसके बाद उन्होंने फॉर्म में हस्ताक्षर करवाकर मुझसे पैसे मांगे। मैंने उनको बताया कि मैं पैसे नहीं दूंगा, तो उन्होंने मुझे पूछा कि मैंने फॉर्म में हस्ताक्षर दिए ही क्यों? मुझे उन्हें 150 रुपये देने पड़े।”
व्यक्ति यदि सवाल-जवाब करे तो भला कितना करे? लोगों के पास जानकारी होने के बावजूद और सवाल-जवाब करने के बावजूद हितग्राहियों को तरह-तरह की बातों में उलझाकर उनसे पैसा लिया गया।
मंत्री प्रसाद बिंझवार, जो जनापर के निवासी हैं, बताते हैं, “मैंने उनसे पूछा कि पैसा क्यों ले रहे हो? सरपंच से बात कर लो, तो उन्होंने कहा कि वो सरपंच के आदेश से नहीं आए हैं, वो तो ऐसे ही आए हैं। जब उन्होंने पैसे मांगे, मैंने देने से मना कर दिया। मैंने उनको सरपंच से बात करने को ही कहा। वो फिर सरपंच के पास जाकर आए और हमें बताया कि सरपंच ने ही यह लगाने को कहा है। मैंने जब फिर से इंकार किया, तो उन्होंने जबरन लगाए।”
लोगों के पास इतनी तो जानकारी है कि वे मज़दूरों को सरपंच से बात करने को कह रहे हैं। मज़दूर सरपंच से बात ना करने के बहाने निकलते हैं और कहते हैं कि सरपंच ने लेने को कहा है लेकिन यह तो हकीकत है ही नहीं।
सरपंच प्रतिनिधि गुरबाहर टोप्पो, जो सरपंच श्रीमती क्रांति टोप्पो के पति हैं, उनसे मैंने बात की। ग्राम पंचायत सरभोका की कोई भी जानकारी हो या कोई भी शिकायत हो, वह सरपंच प्रतिनिधि गुरबाहर टोप्पो को दी जाती है। बलदेव सिंह बिंझवार ने भी इन्हें ही फोन किए थे। मैंने उनसे पूछा कि क्या उनको पता है कि ग्राम पंचायत सरभोका में एकल बत्ती मीटर लगाया जा रहा है?
सरपंच प्रतिनिधि गुरबाहर टोप्पो ने कहा, “हां, मुझे पता है।” मैंने उन्हें पूछा कि उनको जानकारी कैसे मिली, तो उन्होंने बताया कि उन्हें यह जानकारी हितग्राहियों से मिली थी। उनसे मीटर लगाने वाले व्यक्तियों ने कोई बात नहीं की थी। एक दिन घूमते-घूमते मैं एक घर में पहुंचा, जहां मीटर लगाने का काम जारी था।”
सरपंच आगे बताते हैं, “मैंने उनसे कहा था कि उन्हें किसी से पैसा नहीं लेना है। यदि पैसा लेते भी हैं, तो उन्हें बाक़ायदा उसका वास्तविक पावती (रसीद) देना है, अन्यथा पैसा नहीं लेना है। उनसे मैंने यह भी कहा कि उन्हें रसीद लिखकर नहीं देना है, ओरिजनल रसीद ही देना है।”
मीटर लगा रहे व्यक्तियों ने लोगों की स्थिति देखते हुए भी हितग्राहियों को जांच होने का डर दिखाकर, उनसे पैसा वसूल किया।
सुकमनिया पंण्डो ने बताया कि मोहल्ला इंदिराबसाहट में इस काम के लिए चार घरों से डेढ़-डेढ़ सौ रुपये लिए गए हैं। वो कहती हैं, “उन्होंने मुझे कहीं से पैसे ढूंढकर देने को कहा और यह भी कहा कि अगर मैंने मीटर नहीं लगवाया तो जांच होगी। तो मैंने पैसे दे दिए।” सुकमनिया जी तब गर्भवती थीं।
लोगों की स्थिति को नज़रंअंदाज़ कर मज़दूर गाँव वालों से पैसे ले रहे थे। राम सिंह बिंझवार ने बताया, “हम दोनों परनिया बुखार की हालत में थे। मेरी पत्नी तो पानी कांजी कर लेती थीं। मैं तो निकल भी नहीं सकता था। मुझे उल्टी ने ज़्यादा तंग कर दिया था। तो हॉस्पिटल गए थे, दवाई गोली चल रही थी। मैंने भाई-बहू के पास से खोजकर 50 रुपये दिए उनको।”
मैंने लोगों की हालत का ज़िक्र इसलिए किया है, क्योंकि इस समय गाँव में पैसों की तंगी है। सोचिए सुकमनिया जैसी एक गर्भवती महिला को इन पैसों की आवश्यकता हो सकती थी और राम सिंह बिंझवार बीमारी में तंग थे। फिर भी इनसे पैसे ले ही लिए उन्होंने।
मीटर लगा रहे कर्मचारियों ने क्या कहा?
मैंने मीटर लगा रहे व्यक्तियों से भी बात की। उनमें से एक, गप्पू जवाली, जो मीटर लगा रहे मज़दूरों के मुखिया हैं, वो बताते है, “हम सिर्फ वायर का पैसा, मात्र 20-30 रुपये ही ले रहे हैं। इससे ज़्यादा नहीं ले रहे हैं।”
बलदेव सिंह बिंझवार ने सरपंच से फोन पर बात की थी और सरपंच के साथ मज़दूरों की भी बात करवाई थी। सरपंच ने उनको पैसे लेने से मना किया था और निःशुल्क मीटर लगाने को कहा था, फिर वे गाँव से निकल गए।
मैंने कुल 12-15 घरों में जाकर इसकी जानकारी निकाली। सरपंच प्रतिनिधि गुरबाहर टोप्पो से बात करते हुए उन्होंने कहा, “आपके माध्यम से मुझे पता चल रहा है कि वे फिर से पैसा ले रहे हैं। किसी के घर से 50 रुपये, किसी के घर से 100 रुपये, किसी के घर से 150 रुपये लिए हैं। अब ठीक से जांच करके उन पर उचित कार्रवाई की जाएगी।”
गाँव के कुछ लोगों को सरकारी योजनाओं की जानकारी होती है। अपने स्तर पर वे आवाज़ उठाते हैं लेकिन सामने वाले व्यक्तियों द्वारा तरह-तरह की बातें बनाकर, उन्हें डराकर ठग लिया जाता है। वहीं, कुछ लोग शांतिपूर्वक कार्य होने देते हैं।
यह है छत्तीसगढ़ के गाँव की सच्चाई। गाँव के लोगों के हित को ध्यान में रखते हुए सरकार को इस प्रकार के भ्रष्टाचार पर कार्रवाई करनी ही चाहिए और गाँव के लोगों के लिए ठीक से सोचकर योजनाएं बनानी चाहिए।
अगर योजना में कुछ है लेकिन ज़मीनी स्तर पर कुछ और ही हो रहा है, तो इन योजनाओं का क्या फायदा? गाँव वालों और खासकर आदिवासी गाँव के हित के लिए बनाई गई योजनाएं ही लोगों के लिए बोझ बन रही हैं। भारत के विकास के लिए इस परिस्थितियों को बदलना बहुत आवश्यक है।
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नोट: यह लेख आदिवासी आवाज़ प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।