आजकल डॉक्टरों की लापरवाही की खबरें बहुत आती हैं। ऐसा नहीं है कि लोग उन खबरों को पढ़ते नहीं बल्कि नज़रअंदाज़ करके आगे बढ़ जाते हैं, क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि उनके साथ नहीं हुआ है, तब ध्यान क्यों देना? धरती पर डॉक्टर को भगवान का रुप माना जाता है, क्योंकि वह मरीज को मौत के मुंह से बचा लेता है। हालांकि, भगवान कहना अब अतिशयोक्ति होगी क्योंकि डॉक्टरी अब पेशा बन गया है।
अब गिने-चुने ही ऐसे डॉक्टर होते हैं, जो मरीज की जान बचाने के लिए पैसों की रसीद पहले नहीं थमाते। हालांकि, कोरोना काल के दौरान डॉक्टरों ने जिस लग्न, मेहनत और इंसानियत की मिसाल पेश की है। वह वाकई काबिले तारीफ है।
शेविंग ब्लेड से किया ऑपरेशन
उत्तर प्रदेश में डॉक्टर की लापरवाही ने एक मरीज की जान ले ली। उस डॉक्टर ने एक महिला का सिजेरियन ऑपरेशन शेविंग ब्लेड से कर दिया, जिस कारण महिला समेत बच्चे की भी मौत हो गई। महिला के परिवार के सदस्यों द्वारा जब छानबीन करवाई गई, तब पता चला कि ऑपरेशन करने वाला तथाकथित डॉक्टर 8वीं फेल है, मगर बैठ डॉक्टर की कुर्सी पर रहा है।
इस अमानवीय लापरवाही के लिए केवल डॉक्टर को दोषी मानना गलत है क्योंकि, स्वास्थ्य विभाग ने भी लापरवाही से एक 8वीं फेल आदमी के हाथों में डॉक्टर की ज़िम्मेदारी सौंप दी।
यह उत्तर प्रदेश में बसे सुल्तानपुर ज़िले के बल्दीराय क्षेत्र की घटना है। अशरफपुर गांव के रहने वाले राजाराम कोरी अपनी पत्नी को प्रसव पीड़ा के दौरान अपनी पत्नी को मां शारदा निजी हॉस्पिटल लेकर पहुंचे थे। उनकी पत्नी को दर्द बहुत तेज़ हो रहा था। जिस कारण नाम के डॉक्टर ने शेविंग ब्लेड से ही प्रसूता का ऑपरेशन कर दिया, जिससे उसे बहुत ब्लीडिंग होने लगी। डॉक्टर ने बिना रेफर कागज़ बनाए ही महिला को लखनऊ के अस्पताल में रेफर कर दिया और इसके फलस्वरूप रास्ते में ही दोनों (प्रसूता-बच्चा) की मौत हो गई।
8वीं पास है तथाकथित डॉक्टर और 12वीं पास हॉस्पिटल संचालक
परिवार वाले प्रसूता को खोने के बाद उसका शव लेकर वापस बल्दीराय थाने पहुंच गए। जहां उन्होंने डॉक्टर और अस्पताल प्रशासन की शिकायत दर्ज़ करवाई। पुलिस ने मुकदमा दायर करके अस्पताल के खिलाफ छानबीन शुरु की। उसके बाद अस्पताल संचालक राजेश साहनी और डॉक्टर राजेंद्र शुक्ला को गिरफ्तार कर लिया गया।
पुलिस की छानबीन में पता चला कि यह अस्पताल कई सालों से संचालित किया जा रहा है। संचालन करने वाला संचालक खुद 12वीं पास है और वहां काम करने वाले सभी लोग अप्रशिक्षित हैं और ऑपरेशन करने वाला डॉक्टर 8वीं पास है। इसके साथ ही यह अस्पताल रजिस्टर्ड भी नहीं है।
ऐसे झोलाछाप अस्पतालों और सरकार की लापरवाही की कीमत आम जनता को अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है। जब एक अस्पताल की शुरुआत होती है, तब उसके लिए कागजी कार्यवाही की जाती है। इसके बाद अस्पताल आदि खोलने की प्रक्रिया शुरू होती है। लोगों को भी अपने क्षेत्र के आस-पास संचालित होने वाले अस्पतालों की जानकारी होनी चाहिए।
उन्हें अस्पतालों के बाहर लगे बोर्ड आदि को देखना चाहिए ताकि लोग ऐसे झोला-छाप डॉक्टरों से बचे रहें। स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही ने एक हंसती खेलती ज़िंदगी को लील लिया।