दिल्ली की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी जिसे अपने कामों के लिए जाना जाता था, उसका झुकाव भाजपा के मुद्दों की ओर बढ़ता दिख रहा है! बजट में मुख्यमंत्री यह कहते हैं कि वह बजरंबली के भक्त हैं और बजरंगबली श्रीराम के भक्त, तो इस नाते वो बजरंगबली और श्रीराम दोनों के भक्त हैं।
स्कूली बच्चों को कट्टर देशभक्त बनाने की राह पर केजरीवाल
आम आदमी पार्टी (आप) का जन्म कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए अन्ना आंदोलन से हुआ था। पार्टी के बनने के बाद पार्टी के मुखिया का कहना था कि ‘आप’ जनता के विकास के लिए काम करेगी। भ्रष्ट और सांप्रदायिक राजनीति से परे आम आदमी पार्टी जनता के बीच एक विकल्प बनी। जनता ने आप को राजनीति में अपना हाथ आजमाने का भी अवसर दिया।
आप सरकार की सत्ता दिल्ली में लगातार तीन बार बनी लेकिन देश के बाकि राज्यों में बिल्कुल विपरीत परिणाम देखने को मिले। देश में बीजेपी अपने सांप्रदायिक और कथित राष्ट्रवादी राजनीति के बल पर अपना परचम लहराई हुई है। ऐसे में ‘आप’ अपने विस्तार के लिए कई नये फैसले ले रही है। यह फैसले कहीं न कहीं बीजेपी की राजनैतिक नीतियों से मिलती जुलती दिख रही हैं।
काम के बल पर वोट मांगने वाली पार्टी अब मंदिर की राह पर बढ़ने लगी है। शनिवार 6 मार्च को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बताया कि दिल्ली सरकार दिल्ली की शिक्षा में कुछ बदलाव करने वाली है। उन्होंने दिल्ली का अपना स्टेट बोर्ड (Delhi Board Of School Education) बनाने की बात कही।
Patriotism is not taught in our schools. We've decided to discuss patriotism every day for an hour in schools, to make students 'kattar deshbhakts'. We'll also take teachings of Bhagat Singh and BR Ambedkar to every household: Delhi CM Arvind Kejriwal pic.twitter.com/k4HWD8z69q
— ANI (@ANI) March 14, 2021
कॉन्फ्रेंस में मुख्यमंत्री ने कहा की रट्टा लगाने वाली पढ़ाई की जगह हमें अब समझने वाली शिक्षा कायम करनी है। दिल्ली शिक्षा बोर्ड के 3 मुख्य लक्ष्य हैं, पहला छात्रों को कट्टर देश प्रेमी बनाना, दूसरा एक अच्छा इंसान बनाना और तीसरा नौकरियां उत्पन्न करने वाला बनाना।
दिल्ली सरकार के लिए कट्टर देशभक्ति के क्या मायने हैं?
9 मार्च को दिल्ली बजट 2021-22 के दौरान मुख्यमंत्री जिस तरह से खुद को राम और हनुमान भक्त बताते हैं, हो सकता है यह उनकी निजी आस्था हो लेकिन ऐसी बात सदन में करना कितना सही है जहां उन्हें दिल्ली के सभी धर्म के लोगों ने भेजा है? यह राजनीति बीजेपी करती है जिसका प्रभाव हमने देखा है। बीजेपी देश की बहुसंख्यक आबादी हिन्दू की धार्मिक आस्था पर राजनीति कर रही है।
7 मार्च एक न्यूज़ चैनल के प्रोग्राम पर दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली बोर्ड पर विस्तार से बात की। एंकर के कट्टर देशभक्ति शब्द पर सवाल पूछने पर उपमुख्यमंत्री ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की बातों को आगे बढ़ाते हुए यह बताया कि “महिलाओं का सम्मान देशभक्ति है, पशु-पक्षियों से प्यार करना देशभक्ति है, हर धर्म-जाति का सम्मान करना व अपने बुजुर्गों का सम्मान करना, अपने सिस्टम का सम्मान करना यह सब देश भक्ति है।”
कट्टर देशभक्ति पर सफाई देते हुए उन्होंने आगे कहा कि “अपने तिरंगे से प्यार करना, देश की मिट्टी से प्यार करना, अपने देश के लोगों से प्यार करना और अपने सिस्टम को फॉलो करना कहीं न कहीं देशभक्ति है।” दिल्ली बोर्ड की योजना नए सत्र 2021-2022 से लागू की जाएगी। शुरुआती दौर में 20 से 25 स्कूलों में यह चलाया जाएगा। दिल्ली में मौजूदा समय में 2700 स्कूल हैं जिसमें से 1000 सरकारी तथा 1700 प्राइवेट हैं।
क्या आम आदमी पार्टी भी अब भाजपा की राह पर चल पड़ी है?
इसके साथ दिल्ली सरकार आज़ादी के 75वें वर्षगांठ पर दिल्ली के 500 जगहों पर झंडा फहराने के लिए कार्यक्रम आयोजित करने वाली है। बताया गया है कि इस कार्यक्रम के लिए बजट में से 45 करोड़ राशि अलग से निकाल ली गई है। कथित तौर पर देशभक्ति और सांप्रदायिक राजनीति के लिए मौजूदा केन्द्रीय सत्ताधारी पार्टी भाजपा को जाना जाता है।
The National Capital will be dyed in colors of patriotism for 75 weeks as Delhi celebrates Freedom@75 🇮🇳 pic.twitter.com/4wJKwFdKQ3
— AAP (@AamAadmiParty) March 12, 2021
बीजेपी की पहचान एक कथित कट्टर राष्ट्रवादी पार्टी के रूप में रही है, जो हिन्दू राष्ट्र के लिए कार्यरत है। दिल्ली की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी (आप) का रंग पिछले चुनावों से ही बदलता हुआ दिख रहा है। आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल का चुनाव के दौरान जय बजरंबली का नारा उनकी बदलती राजनीति की ओर इशारा करती है।
दिल्ली चुनाव 2020 में बीजेपी के जय श्रीराम के जवाब में जय बजरंबली का नारा दिया था और पिछले कुछ समय से आम आदमी पार्टी भी बीजेपी की तरह लगातार धार्मिक आस्थाओं पर राजनीति कर रही है। शिक्षा के क्षेत्र में कट्टर देशभक्त जैसी बात करना कितना सही है यह तो केजरीवाल की राजनीति ही बता सकती है।
हर उस राष्ट्र का सम्मान हो जहां सरकारें लोकतांत्रिक मूल्यों पर चलती है
हम अगर कट्टर देशभक्त की भावना पर पढ़ाई कराएंगे तो इसके कई बुरे परिणाम होने की भी संभावनाएं है। कई दशकों से भारत-पाकिस्तान की राजनीति का केन्द्र बिन्दु कट्टर राष्ट्रवाद ही रहा है। जिसमें दोनों देशों की जनता को ‘अपना राष्ट्र सर्वोच्च है’ जैसी भावना को बताया गया है। दोनों देशों की प्रेम भावना की बात बहुत ही कम सुनी गई है। राजनैतिक विशेषज्ञों का मानना है कि 2019 के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की इतनी बड़ी जीत का कारण भारत का पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक ही रहा।
हमें अपने तिरंगे के सम्मान के साथ दुनिया के उन तमाम झंडों का भी सम्मान करना चाहिए जो लोकतान्त्रिक मूल्यों पर चलते हैं। जहां समाज में बराबरी हो, जातिधर्म या नस्ल के नाम पर कोई भेदभाव न हो। जहां समाज के सबसे कमजोर वर्ग को भी आगे बढ़ने का अवसर हो। अपने देश के लोगों के साथ-साथ उनलोगों से भी समान व्यवहार करना चाहिए जो दुनिया की एकता की बात करते हों।
इस बार जो पार्टी भगवान राम की बात कर रही है वो आपकी तरह मुँह में राम बगल में छूरी लेकर नहीं चलती।
इस पार्टी के मुँह में भी राम है, दिल में भी राम है और बगल में संविधान है। pic.twitter.com/7LWnl4GJUT
— AAP (@AamAadmiParty) March 12, 2021
इन बातों को दिल्ली सरकार कट्टर देशभक्त के साथ जोड़ना चाहती है, जिससे साफ है कि आप की राजनीति का केंद्र कहीं न कहीं भाजपा के मुद्दे बनते जा रहे हैं। दिल्ली सरकार चाहे तो देशभक्ति की जगह दुनियाभक्ति कर सकती है जिसकी झलक हमने हाल ही में किसान आंदोलन में देखा और देख रहे हैं।
राष्ट्रवाद किसी मुद्दे पर एक टिप्पणी मात्र से खतरे में आ जाता है
राष्ट्रवाद का दायरा सीमित है, जिसमें यदि कोई सीमा पार से देश के अंदर चलने वाले आंदोलन पर केवल टिप्पणी ही कर दे तो वह खतरे में पड़ जाता है। किसानों के समर्थन में कुछ विदेशी कलाकारों ने ट्वीट कर दिया तो मानो सरकारी महकमें में कुछ ऐसी अफरातफरी मची जैसे लगा कोई विदेशीय हमला होने वाला है।
सरकार और मीडिया ने इन तमाम विदेशी कलाकारों पर कई इल्ज़ाम लगाए। कलाकारों में रिहाना(Rihanna) और ग्रेटा थनबर्ग को खासकर निशान बनाया गया। उनकी निजी ज़िन्दगी को मीडिया में उछालने की कोशिश की गई। दूसरी ओर कुछ कथित भारतीय देशभक्त कलाकार सोशल मीडिया के माध्यम से यह बताने लगे कि ‘देश की एकता को कमजोर किया जा रहा है। हमें अपनी एकता कायम रखनी है इन विदेशियों की बातों में नहीं आना है। यह “हमारा आंतरिक” मामला है।”
इन कथित देशभक्त कलाकारों की सूची में क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर, लता मंगेशवर, अजय देवगन, और एक खास कलाकार अक्षय कुमार भी थे जिनकी नागरिकता खुद कनाडा की है। वह भी इस ट्वीट संग्राम में शामिल रहे। अक्षय विदेशी होने के बावजूद हमारे देश के भीतरी मामलों में बोलने को स्वतंत्र हैं क्योंकि वह सरकार के पक्ष में बोलते हैं।
वह एक ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू माफ कीजिएगा गैर राजनैतिक इंटरव्यू लिया है। मौजूदा समय में यदि आप सरकारों के पक्ष में बात करते हैं तो सही हैं, नहीं तो आपको अलग-अलग टैग दे दिए जाएंगे। एंटी नैशनल, खालिस्तानी, नक्सल, देशद्रोही आदि नामों से आपको पुकारा जाएगा।
क्या आम आदमी पार्टी अब अपनी जिम्मेदारियों से पीछा छुड़ाना चाहती है?
दुनिया के किसी भी कोने में अगर कुछ गलत होता है, तो दुनिया का कोई भी व्यक्ति उस पर अपनी राय रखने के लिए स्वतंत्र है। इसलिए राष्ट्रों की सीमाओं को लांघते हुए दुनिया के तमाम कमजोर तबके के हकों के लिए आवाज उठाए जाने की ज़रूरत है। दिल्ली सरकार दुनिया की कमजोर तबके की न सही पर दिल्ली की कमजोर आबादी की आवाज़ बन सकती है। राष्ट्र कैसे मजबूत हो उसकी बजाए यह सोचना चाहिए कि दुनिया में एक बेहतर लोकतंत्र की स्थापना कैसे की जाए?
केजरीवाल ने कहा कि “हम ऐसे युवा बनाना चाहते हैं जो देश के लिए जान देने को भी तैयार हो।” जान देने-लेने की जगह वह दुनिया को एक करने की भी बात कह सकते थे, लेकिन उन्हें यह मालूम है कि देश की राजनीति में आज कल मार-काट की भाषा काफी चर्चित है तो वह भी कैसे इस मौके का फायदा नहीं उठाते?
दूसरी ओर वह ऐसे युवाओं के निर्माण की बात कहते हैं जो नौकरी लेने वाले न हों, बल्कि नौकरी देने वाले बनें। दिल्ली सरकार के इस बयान से यह मालूम चलता है कि वह नौकरी देने की जिम्मेदारी से भी पीछे हटना चाहती है। इस फैसले से दिल्ली में निजीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
दिल्ली की सबसे बड़ी आबादी दूसरे राज्यों से आए लोगों की है, जो यहां अपने क्षेत्रों को इस आशा से छोड़कर आए थे कि दिल्ली में उन्हें रोजगार की सुविधा मिलेगी। यह सरकार की ही जिम्मेदारी होती है कि वह अपनी बेरोजगार जनता को रोजगार दे।
आम आदमी पार्टी का यह फैसला भी बीजेपी के स्टार्टअप इंडिया से मिलता-जुलता है। जिसमें भारत सरकार युवाओं को अपना स्टार्टअप खोलने के लिए लोन देती है। सरकारी लोन को लेकर युवा अकेला ही बाज़ार की प्रतियोगिता में उतरता है। बाज़ार में बड़ी-बड़ी कंपनी के सामने एक गरीब तबके के युवा के लिए खड़ा हो पाना उतना ही मुश्किल है, जितना गर्मी में आइसक्रीम का जमे रहना।
जहां समृद्ध राष्ट्र बनाने के नाम पर सारे सरकारी ढांचों को बेचने का काम हो रहा हो, वहां कट्टर राष्ट्र जैसे शब्दों से बचना चाहिए। इतिहास और वर्तमान में इस प्रकार के राष्ट्रवाद ने कहीं न कहीं देशों के बीच दूरियां बनाई है।