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2021 जनगणना में आदिवासियों के लिए स्वतंत्र धर्म कोड की मांग को लेकर सम्मेलन

देश में जब अंग्रेजों का शासन था, तब 1871 में देश की पहली जनगणना हुई थी। इस जनगणना में हिंदू, मुस्लिम, पारसी, जैन, इसाई और आदिवासियों को ‘एबोरिजन’ का कॉलम रख के जनगणना की थी। इस जनगणना के अनुसार भारत देश में कितने आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं यह रिकॉर्ड रखा जाता है।

दस करोड़ से अधिक आबादी के बावजूद अपना धर्म कोड नहीं

भारत में अनुसूचित जनजाति समूहों की संख्या 700 से अधिक है। भारत में 1871 से लेकर 1941 तक हुई जनगणनाओं में आदिवासियों को अन्‍य धमों से स्वतंत्र अलग धर्म में गिना गया है। जैसे अन्य धर्म -1871- एबोरिजनल, 1881- एबोरिजनल, 1891- एबोरिजनल, 1901- एनिमिस्ट, 1911- एनिमिस्ट, 1921- एनिमिस्ट, 1931- ट्राइबल रिलिजन, 1941- ट्राइबल इत्यादि नामों से वर्णित किया गया है।

हालांकि, 1951 की जनगणना के बाद से आदिवासियों को अलग से गिनना बंद कर दिया गया है। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में आदिवासियों की संख्या दस करोड़ से कुछ अधिक है। इनमें करीब 2 करोड़ भील, 1.60 करोड़ गोंड, 80 लाख संथाल, 50 लाख मीणा, 42 लाख उरांव, 27 लाख मुंडा और 19 लाख बोडो आदिवासी हैं।

देश में आदिवासियों की 750 से भी अधिक जातियां हैं। अधिकतर राज्यों की आबादी में इनकी हिस्सेदारी है। इसके बावजूद अलग आदिवासी धर्म कोड की व्यवस्था नहीं है। इस कारण पिछली जनगणना में इन्हें धर्म की जगह ‘अन्य’ कैटेगरी में रखा गया था।

जबकि ब्रिटिश शासन काल में साल 1871 से लेकर आज़ादी के बाद 1951 तक आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की व्यवस्था रही है। तब अलग-अलग जनगणना के वक्त इन्हें अलग-अलग नामों से सबोधित किया गया। आज़ादी के बाद इन्हें शिड्यूल ट्राइब्स (एसटी) कहा गया।
इस संबोधन को लेकर लोगों की अलग-अलग राय थी जिस कारण बहुत विवाद हुआ। तभी से आदिवासियों के लिए धर्म का विशेष कॉलम खत्म कर दिया गया।

धर्म कोड की मांग को लेकर जयपुर में सम्मेलन

राष्ट्रीय अदिवासी इंडिजिनीअस धर्म समवय समिति भारत द्वारा अदिवासी धर्म /कॉलम कोड की मांग को लेकर, 13 मार्च 2021 को राजस्थान आदिवासी मीणा सेवा संघ जयपुर महानगर के तत्वधान में गोवर्धन गार्डन, गलता रोड जयपुर में एकदिवसीय राष्ट्रीय आदिवासी सम्मेलन का आयोजन किया गया है।

इसके लिए महाराष्ट्र, गुजरात, झारखंड, छत्तीसगढ़, असम, अरुणाचल प्रदेश, कर्नाटक, गोवा, केरल, उड़ीसा, मेघालय, अंडमान एंड निकोबार, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, दमन दिव नगर, नागालैंड, आंध्र-प्रदेश प्रांत के आदिवासी साहित्यकार, इतिहासकार, चिन्तक, समाजसेवी, बुद्धिजीवी, लेखक आदि आदिवासी प्रतिनिधि अपने-अपने राज्यों से आएंगे।

यह सम्मेलन 13 मार्च को प्रातः सुबह 10 बजे से धरती वंदना पूजन से शुरू होकर सायं 5 बजे तक चलेगा। इस सम्मेलन में अन्य राज्य से आये हुए आदिवासी कार्यकर्ता, पहान, बुमका, राष्ट्रीय आदिवासी इंडिजिनीअस धर्म समवय समिति के प्रतिनिधि द्वारा धर्म/कॉलम पर विचार मंथन किया जाएगा। इसके बाद 4 बजे से 5 बजे तक आदिवासी सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन किया गया है।

इनमें झारखण्ड की पूर्व शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव, प्रेम शाही मुंडा, लालूभाई वसावा, देव कुमार धान, तरुणभाई पटेल, अरविन्द उरांव, निरंजना टोपो, जोराम यालाम नाबाम, कुमुदा वाघरी, नितीशा खलखो, वाहरूदादा सोनवने, नेहरू मडावी, भवरलाल परमार, बिरसा ब्रिगेड के अध्यक्ष सतिशजी पेंदाम, संतोष पावरा, मालती वलवी, मंगला गरवाल, आदि प्रतिनिधी शामिल रहेंगे।

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