हम जब किसी भी नेता को अपने प्रतिनिधि के तौर पर चुनते हैं, तो उनसे उम्मीद रखते हैं कि वो हमारी समस्याओं का समाधान भले ही न करें परंतु कमसे कम उनके साथ खड़े रहें। हर छोटी से बड़ी समस्या को वह अपने घर की तकलीफ मान कर समाधान करने का प्रयास करें।
मगर परिकल्पनाओं से उलट जब हम सच्चाई को देखते हैं, तो यह समझ आता है कि जिस नेता का चुनाव हम अपने प्रतिनिधि के तौर पर करते हैं, चुनाव जितने के बाद वही नेता अपनी जनता को घूम कर दोबारा देखते तक नहीं है। उन नेताओं के दर्शन फिर अगले चुनाव नजदीक आने के बाद ही होते हैं।
मंत्री जी के कार्यक्रम में अपनी फरियाद लेकर पहुंचे थे पति-पत्नी
ऐसी ही एक घटना सोनभद्र में भी घटी। जब वहां के प्रभारी मंत्री सतीश चंद्र दृवेदी आयोजित होने वाले एक कार्यक्रम का हिस्सा बनने पहुंचे। इस बात की खबर मिलते साथ मदद की गुहार लगाते हुए एक पति-पत्नी उस कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंच गए। परंतु मजाल है इस लोकतंत्र में की कोई भी मंत्री जी के आसपास भी पहुंच सके। बहुत प्रयासों के बावजूद भी उक्त पति-पत्नी को मंत्री जी से मिलने नहीं दिया गया।
हो-हंगामे के साथ जब शोर बढ़ता चला गया तो कार्यक्रम की कवरेज कर रहे मीडियाकर्मियों की नज़र उनपर पड़ी। जब मीडियाकर्मियों ने उनसे मामला जानने का प्रयास किया तब पता चला कि इनके बेटे की हत्या एक साल पहले हुई थी लेकिन अबतक उसके कातिल पकड़े नहीं गए हैं। इसी बात की जल्द से जल्द इंसाफ की फरियाद लगाने वो इस कार्यक्रम में पहुंचे थे।
व्यवस्था पर विचार विमर्श नहीं बल्कि सुधार की आवश्यकता है
वहां मौजूद मीडियाकर्मी उनसे कुछ और पूछ पाते कि इससे पहले पुलिसकर्मियों ने उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लिया। साथ ही वहां मौजूद मीडियाकर्मियों के रोकने के बावजूद नहीं रुके और उलट उनपर भी बेरुखी दिखाई। जिसके बाद मीडियाकर्मी हड़ताल पर भी बैठ गए। हालांकि मामला फिलहाल शांत हो चुका है। सबकी जुबान पर अब भी इस बेरुखी के चर्चे हैं।
बावजूद इस चर्चे के हमें जो सोचने की आवश्यकता है वह है हमारे लोकतंत्र की वर्तमान परिस्थिति जो इस तरह की विधि-व्यवस्था से खोखली हो चुकी है। अब सिर्फ विचार-विर्मश की आवश्यकता नहीं है बल्कि इसमें सुधार की भी आवश्यकता है।