भारतीय संसद में जब से नया कृषि कानून पारित किया गया है किसान धरने पर बैठे हुए हैं। सरकार का कहना है बहुत से राज्यों के किसान नए कृषि कानूनों के समर्थन में हैं। वहीं कुछ राज्य के किसान एकदम इसे वापस लेने पर अड़े हुए हैं। सरकार का कहना है कि हम वापस तो नहीं लेंगे मगर संशोधन ज़रूर कर सकते हैं। इसलिये किसानों और सरकार के बीच बात बन नहीं रही।
इतनी कड़ाके की ठंड में भी बच्चे-बूढ़े सड़क पर इन कानूनों के खिलाफ धरने पर हैं। चिंता की बात यह है कि कुछ असामाजिक तत्वों के कारण पूरे किसान को शर्मिंदा होना पड़ रहा है। कोर्ट का फैसला आने से पहले ही किसानों के नेता कोर्ट के फैसलों को मानने से इनकार कर चुके हैं। फिर आखिर कैसे बीच का रास्ता निकाल सकता है?
किसान आंदोलन में हिंसा करने वाले लोगों को चिन्हित किया जाए
किसान आंदोलन में क्या अराजक तत्वों ने घुसपैठ कर लिया है? इस पर भी विचार करना चाहिए और सरकार को ध्यान देना चाहिए। हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल खट्टर के सभा स्थल पर आंदोलनकरियों ने लाठी-डंडे से तोड़-फोड़ किया और हंगामा मचाया। आप सभी ने इसका वीडियो भी देखा होगा। भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने इसकी जिम्मेदारी भी ली। अभी तक 1500 मोबाइल टावरों को आंदोलनकारियों ने तोड़ दिया है।
कृषि कानून के आंदोलन के नाम पर कुछ लोग खालिस्तान की मांग करने वाले भिंडरेवाला की पोस्टर हाथ में लेकर घूमते नज़र आ रहे थे। पिछले हफ्ते आंदोलन स्थल पर जरनैल सिंह भिंडरावाला की महिमामंडन करने वाली शहीद-ए-खालिस्तान की किताबें भी बांटी गई। अगर ये अराजक तत्व ऐसे ही अपना पैर पसारते गए तो इन्हें रोकना मुश्किल हो जाएगा। किसान नेताओं का दायित्व है ऐसे लोगों को पुलिस के हवाले करें और सरकार को भी चाहिए कि ऐसे लोगों को चिन्हित कर बाहर निकाले।