एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में भारत के 60 करोड़ लोग जलापूर्ति के संकट से जूझ रहे हैं। देश के सिर्फ 59 जिलों में ही भूमि का पानी पीने के लिए सुरक्षित है और भारत का 54 फीसदी इलाका पानी के भारी संकट से जूझ रहा है। 40 फीसदी भूमि जल का दोहन हर वर्ष शहरीकरण के लिए, जबकि 80 फीसदी भूमि जल का उपयोग घरेलू उपयोग में होता है।
आंकड़े यह भी बताते हैं कि देश में 65 फीसदी कृषि-भूमि के लिए सिंचाई की सुविधा ही उपलब्ध नहीं है। पानी के बंटवारे को लेकर तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से खबरें आती रहती हैं तो यह स्थिति है अतुल्य भारत में पानी की।
स्वच्छ भारत मिशन का सच
मेरे अमरोहा जिले के पैतृक गाँव से लेकर, आस-पास के कस्बों, शहरों में पेयलज की हालत दिन-ब-दिन बद से बदतर होती जा रही है।
गांवों में भारत सरकार की जो ‘स्वच्छ भारत मिशन’ योजना शुरू हुई है, उसका एक बड़ा कड़वा सच है गाँवों में शुष्क शौचालयों का होना जिनसे मल बस जमीन में एकत्र होता है। यह चलन गाँवों में एक लंबे समय से चलता आ रहा है जिसकी सबसे बड़ी वजह है देश के 90% गाँवों में पानी की निकासी के उचित इंतजाम न होना।
जिसके कारण सरकारी नलों, घरेलू हैंडपंपो में वही मल-मूत्र का पानी आ रहा है जिससे गाँवों में बड़ी-बड़ी घातक बीमारियां चुपके-चुपके जन्म ले रही हैं। जिनमें डायरिया, टायफाइड, मलेरिया, हेपेटाइटिस व हैजा मुख्य हैं। इन बीमारियों एवं इनके पैदा होने के कारणों की तरफ ना राज्य सरकारों का ध्यान है, ना ही इस गंदे पानी को पीने वालों का ध्यान है।
बड़े पैमाने पर जल का होता निर्मम दोहन
हमारे देश के शहरों, कस्बों में सबमर्सिबल पम्प का जमाना जोरों पर है, जो हमारे लिए बहुत ही घातक साबित हो रहा है। शहरों एवं कस्बों में पानी की इतनी बेकारी हो रही है जिसका अन्दाजा भी नहीं लगाया जा सकता। जहां 50 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है, वहां अनावश्यक रूप से 500 लीटर पानी का निर्मम दोहन हो रहा है जिसका कारण सड़कों पर छिड़काव, गमलों में फालतू पानी, रोजाना घर की धुलाई व नहाने-धोने में जरूरत से ज्यादा तीन गुना अधिक पानी खर्च करना है।
इससे साफ जाहिर है की जिसको पानी मिल रहा है वो बर्बादी पर उतरा है और जिसको नहीं मिल रहा वो बुरी तरह इस समस्या से परेशान है। देश के राजस्थान, उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड व पूर्वांचल, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में पानी की कमी के कारण वहां के हालात बद-से-बदतर हो चुके हैं अन्य राज्यों में भी बुरा हाल है। हम बस यह कह सकते हैं कि सिर्फ उत्तर भारत पानी के मामले में कुछ हद तक सम्पन्न है वरना भारत के अन्य राज्यों व मेट्रो शहरों में पानी मंहगा तो हो ही गया है। नहाने व कपड़े धोने के लिए मिलने वाले पानी की बड़ी समस्या पैदा हो गयी है।
इसके लिए सरकारों से लेकर, भारतीय नागरिकों को भी बेहद सजग होना पड़ेगा वरना वो दिन दूर नहीं जब पानी के लिए जनता तड़पेगी और विश्वयुद्ध-गृहयुद्ध छिड़ने की स्थिति आएगी।
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