मेरे बचपन की कल्पना “काश पूरी दुनिया के लोग एक दिन के लिए अपने सभी काम-काज को रोक दें, कैसा लगेगा जब पूरी दुनिया के ट्रांसपोर्ट, फैक्ट्री, कम्पनी सभी बंद हों, सड़कें खाली हों और लोग घरों में आराम कर रहे हों।”
इस कल्पना का मेरा उद्देश्य सिर्फ इतना था की प्रकृति को भी एक दिन की छुट्टी मिलनी चाहिए। पेड़-पौधे, नदियां, झीलें, सागर, पहाड़, पशु-पक्षी, खुला मैदान और खुला आसमान यहां तक कि खुद हवा भी खुल के सांस ले सके। कोविड – 19 महामारी की वजह से मेरी कल्पना ने ‘लॉकडाउन’ का रूप लिया, जिसकी कल्पना मैंने क्या कभी भी किसी ने भी नहीं की थी।’
लॉकडाउन ने हमसे हमारा ग्राउन्ड छीना
मैं आकाश थापा, प्रो स्पोर्ट डवलपमेंट (PSD) संस्था में कार्यरत हूं। लॉकडाउन की घोषणा होते ही हमारे सभी कार्यक्रमों के साथ ही भविष्य में आने वाली हमारी अगली गतिविधियों पर ब्रेक लग गया और हमारी कार्यशैली के साथ–साथ जीवन शैली भी बदल गई।
वहीं प्रतिभागियों का प्ले ग्राउंड पर स्पोर्ट सेशन, उनकी कोचिंग, टीम गेम, चेहरे पर दिखने वाली खुशी और उत्साह और प्रतिदिन कोच का प्रतिभागियों को मोटिवेट करना, यह सब भी लॉकडाउन की चपेट में आ गए।
अचानक हुए इन बदलावों की वजह से मुझे और मेरी पूरी PSD टीम को पूर्ण रूप से डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर निर्भर होना पड़ा गया। कम समय में मुझे और मेरी भुवनेश्वर टीम को डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के बेसिक दांव-पेंच सीखना, उसके अनुकूल होना पड़ा। इसी के साथ सीमित सुविधाएं और सुस्त इंटरनेट ने भी इस प्रक्रिया को लंबा खींचने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।
सॉफ्ट स्किल्स से फिटनेस एक्सरसाइज़ तक सब मिला
हमें शुरुआत में लगा की हमारे पास बच्चों से संपर्क करने के लिए कोई माध्यम नहीं है। हमारी PSD की दिल्ली टीम ने होम क्वॉरंटाइन होते हुए भी ऑनलाइन फंड एकत्रित कर भुवनेश्वर के सभी स्कूलों में प्रतिभागियों को कोविड – 19 हाइजीन किट वितरित करते हुए सबकी सुरक्षा सुनिश्चित की, इसके माध्यम से हमें बच्चों से संपर्क करने के लिए भी जानकारी मिली।
इसके बाद हमने प्रतिभागियों को घर बैठे फिजिकल फिटनेस गतिविधियों में शामिल करने के लिए योगा और फिजिकल एक्सरसाइज के वीडियो तैयार किए व उन्हें बच्चों तक पहुंचाया गया। प्रतिभागियों ने इन वीडियोज को काफी पसंद किया और इससे उनका उत्साहवर्धन भी हुआ।
हमने इसके साथ-साथ सॉफ्ट स्किल्स (कम्युनिकेशन, टीम वर्क, लीडरशिप, सेल्फ स्टीम ) पर आधारित वीडियो और एनिमेटेड वीडियोज भेजना शुरू किया, इन सब गतिविधियों को व्हाटसऐप्प ग्रुप्स के माध्यम से पूरा किया गया।
केवल ग्राउंड पर सीखने की धारणा को बदला
हमें पहले यही लगता था, कि फील्ड पर खेल-कूद के माध्यम से ही सीखा व सिखाया जा सकता है, लेकिन ऑनलाइन प्रणाली से शिक्षा के आसान आदान-प्रदान से हम कोच और ट्रेनर्स को काफी नई तकनीकें सीखने को मिलीं और यह हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण अनुभव रहा। इससे हमारी पूरी टीम की हौसला अफजाई भी हुई और बच्चों को सिखाने के साथ-साथ हमें भी बहुत कुछ सीखने को मिला।
अपनी इस सीख के साथ मैं और मेरी टीम आगे बढ़ रही है और भविष्य में हम ग्राउंड एक्टिविटी के साथ-साथ डिजिटल माध्यम भी अपनाएंगे जिससे हम समय पर खुद को तैयार कर सकें।
“शारीरिक रूप से होम क्वॉरंटाइन होते हुए भी हमने अपने मस्तिष्क को क्वॉरेंटाइन नहीं होने दिया हम सोचते गए, अपने अनुभव साझा करते गए, सीखते गए और आगे बढ़ते गए।”