आज की तारीख में शहरों में वर्किंग वुमन की तादाद बढ़ती जा रही है, इस मामले में कहीं भी वो पुरुषों से पीछे नहीं हैं मगर इसके बावजूद भी उन्हें लेकर समाज एवं उसमें रहने वाले पितृसत्ता से ग्रसित लोगों की दकियानूसी सोच में रत्ती भर भी बदलाव नहीं आया है।
हमारे तथाकथित सभ्य समाज में लड़की भले ही डॉक्टर, इंजीनयिर बन जाए लेकिन समय पर अगर उसकी शादी नहीं हुई तो लोग तुरंत उस पर उंगली उठाने लगते हैं, सिर्फ यही नहीं इसके अलावा भी बहुत सी ऐसी अन्य परिस्थितियां हैं जहां दोष सिर्फ और सिर्फ लड़की को ही दिया जाता है।
किसी लड़की की शादी में देरी होने पर
हमारे मोहल्ले के मिस्टर शर्मा की बेटी स्कूल से लेकर कॉलेज तक टॉपर रही और अब वो MBBS की पढ़ाई करके एक अच्छी डॉक्टर बन चुकी है, मगर अपनी पढ़ाई और करियर में व्यस्त होने की वजह से वह शादी के बारे में नहीं सोच पाई। अब उसकी उम्र 35 साल हो चुकी है उसके परिवार वालों को समय से अपनी बेटी की शादी ना हो पाने से कोई परेशानी नहीं है, मगर उनके अड़ोस-पड़ोस की आंटियों को न जाने क्यों इतनी तकलीफ होती है?
अक्सर वो आपसे में बात करते हुए शर्मा जी की लड़की पर उंगली उठाते हुए ताना मार ही देती हैं कि ‘ज़रूर लड़की में ही कोई कमी होगी तभी तो आज तक कुंवारी है या हो सकता है किसी से चक्कर होगा तभी तो शादी नहीं कर रही है। क्या फायदा ऐसी पढ़ाई-लिखाई का जब घर ही नहीं बस पाया तो पैसे कमाकर क्या करेगी?’
ये है हमारी तथाकथित सभ्य समाज की महिलाओं की सोच जो खुद अपने पड़ोस की बेटी की तरक्की पर खुश होने की बजाय उस पर उंगलियां उठा रही हैं, ऐसा ज़रूरी तो नहीं है कि हर कोई शादी करे ही हो सकता है किसी लड़की की शादी में दिलचस्पी ना हो या फिर वो अपने करियर के प्रति ही समर्पित रहना चाहे।
समाज में किसी महिला का तलाक होने पर
लड़की, लड़के से ज़्यादा पढ़ी-लिखी और उससे ऊंचे पद पर भी क्यों न हो लेकिन उसका तलाक हो गया तो समझ लीजिए की सारा दोष उसी का है। समाज में कहा जाएगा कि उसमें बहुत एटीट्यूड है उसे थोड़ा तो एडजस्ट करके रहना चाहिए आखिर ससुराल है। हमें देख लो हमने तो कितना सहा अपने परिवार के लिए इतने सालों से अपने बारे में नहीं सोचा और ये आजकल की लड़कियां तो बस अपने बारे में ही सोचती हैं, तभी ऐसी लड़कियों का रिश्ता अधिक टिक नहीं पाता है।
अरे आंटी जी, अगर आपने अपने बारे में नहीं सोचा तो ये आपकी गलती है मगर जब आज के ज़माने में लड़कियां लड़कों की तरह ही पढ़-लिख कर आगे बढ़ रही हैं, तो क्यों ना वो भी उनकी तरह ही अपने बारे में सोचें शादी का मतलब बराबरी का रिश्ता होता है और अगर लड़का ये नहीं समझता तो ज़ाहिर है कि लड़की उसके साथ ज़िंदगी नहीं बिता सकती तो ऐसे किसी रिश्ते में घुट-घुट कर रहने से अच्छा है उस रिश्ते को से बाहर निकल जाना चाहिए।
बच्चा ना होने पर क्या-क्या नहीं सहना पड़ता है महिलाओं को
शादी के एक-दो साल बाद ही यदि किसी कपल को बच्चा नहीं हुआ तो रिश्तेदारों से लेकर पड़ोसियों तक में कानाफूसी होने लगती है, ‘फलां की बहू में ज़रूर कोई कमी है तब ही देखो ना अभी तक उसे कोई बच्चा नहीं हुआ है। ‘
वैसे हम हमेशा दूसरों की जिंदगी एवं उनसे जुडी हुई व्यक्तिगत बातों से दूसरों को जज करते समय यह बात भूल जाते हैं कि बच्चा ना होने के लिए सिर्फ़ महिलाएं ही ज़िम्मेदार नहीं होतीं, बल्कि कमी पुरुषों में भी होती है। आजकल की लाइफस्टाइल की वजह से पुरुषों में भी फर्टिलिटी की समस्या हो रही है मगर इससे क्या हुआ! बच्चा नहीं हुआ तो दोष लड़की का ही है, क्योंकि हमारे यहां सदियों से यही होता आ रहा है और हम अपनी इस परंपरा को नहीं बदल सकते।
समाज में बलात्कार जैसी जघन्य घटनाओं के होने पर
इसके बारे में तो आप पूछिए ही मत आए दिन टीवी से लेकर अखबारों तक में ये खबरें छपती रहती हैं। अधिकांश लोगों को तो अब हैरानी उस दिन होती है जिस दिन अखबार या किसी न्यूज चैनल पर ऐसी कोई खबर ना आए, मगर सबसे ज़्यादा हैरानी की बात तो यह है कि महिलाओं के साथ हैवानियत करने वालों की बजाय अधिकांश लोग उस पीड़ित लड़की को ही दोषी ठहराने लगते हैं।
‘अब इतनी रात को घऱ से निकलेगी तो यही होगा न..’ ‘इतने छोटे कपड़े पहनकर मटक-मटक चलने को किसने कहा था.’ वैसे ये सोच सिर्फ़ पुरुषों की नहीं, बल्कि महिलाओं की भी होती है जो दूसरी महिला के साथ ऐसी वारदात होने पर उसे ही दोषी ठहराने लगती हैं।
कुछ तो शर्म आनी चाहिए लोगों को, मगर नहीं दोषी तो तुम ही हो क्योंकि तुम लड़की हो, वैसे भी महिलाएं हैं ही सेकंड सेक्स यानी दोयम दर्जे की, तो हर गलती के लिए वही ज़िम्मेदार हैं।
लड़के तो हमारे परिवार एवं तथाकथित सभ्य समाज की शान हैं, वो कैसे गलत कर सकते हैं ! और यदि उनसे गलती हो भी गई तो इग्नोर कर दो यार बेटा है आखिर वो ऐसी सोच के साथ जो समाज रहेगा वहां लड़कियां कभी सम्मान के साथ और सुरक्षित नहीं रह सकतीं।