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कृपा शंकर सिंह का समाजवादी पार्टी में विलय

कृपा शंकर सिंह

 

पूर्व विधायक एडवोकेट कृपा शंकर सिंह अब समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं, इससे पहले वो बीजेपी में थे, उसके बाद वो बीएसपी में रहे हैं। वह कुर्मी बिरादरी से आते हैं और 2 बार भगवंतनगर( 1996 और 2007 )से विधायक रहे हैं।

वे अपनी पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते बीएसपी से निकाल दिए गए थे और उसके बाद से अब तक सियासी वनवास पर थे, लेकिन अब उन्होंने एक बार फिर नए सिरे से अपनी सियासत की शुरुआत की है। बीते कुछ वक्त से वो सपा में आने को लालायित थे, जब सपा में बात नहीं बनी तो वो फिर बीएसपी नेताओं के संपर्क में आए लेकिन फिर भी अंत में बात बनी नहीं फिर जब उनके क्षेत्र में कांग्रेस में उन्हें लगा कि ऑप्शन बन सकता है।

कृपा बाबू जी के जीवन की राजनैतिक शुरुआत

लेकिन, कांग्रेस में जाकर चुनाव लड़ना उन्हें वर्तमान परिस्थितियों में सही फैसला नहीं लगा इसलिए वो फिर सपा के संपर्क में आए और आखिरकार उन्हें समाजवादी पार्टी में शरण मिल ही गई। 19 फरवरी को कृपा शंकर सिंह सपा में शामिल हो गए। कृपा शंकर सिंह उन्नाव के जाने माने अधिवक्ता हैं, शहर में ही रहते हैं।

इनके परिवार में इनके एक भाई वासुदेव सिंह प्रधान रहे हैं, जिला पंचायत सदस्य भी रहे हैं। हालांकि, अन्य परिवार जन पंचायत चुनाव में उतरे तो सही लेकिन बहुत सफल नहीं हो सके, इसलिए परिवारवाद के आरोपों से इनकी भी दूरी नहीं रही है। उन्नाव में कृपा शंकर सिंह कृपा बाबू के नाम से विख्यात हैं, उनके समर्थक और विरोधी सभी उन्हें बाबू जी कहते हैं।

एक और हैं, जो उन्नाव में बाबू जी के नाम से ही मशहूर हैं

सपा के कद्दावर नेता, पूर्व मंत्री और तकरीबन 2 दशक तक सपा के जिलाध्यक्ष रहे अनवार अहमद भी उन्नाव में बाबू जी के नाम से ही मशहूर थे, लेकिन अब अनवार साहब इस दुनिया में नहीं हैं। अनवार साहब के निधन के बाद से आज तक सपा उनके जैसे रणनीतिकार, उनके जैसा चाणक्य जनपद में नहीं खोज पाई है, उनकी कमी के चलते पार्टी में विकल्पहीनता साफ-साफ दिखती है।

उधर कृपा बाबू के समर्थकों के मन में भी यही सवाल है कि आखिर सपा में कृपा बाबू का कद क्या होगा? पद क्या होगा? जिम्मेदारी क्या होगी? कहीं ना कहीं ये सवाल कृपा बाबू के मन में भी होगा जहां तक चुनाव लड़ने की बात है तो अगर हम नई हवा नई सपा के सिद्धांतों और नए नियमों की बात करें तो पहले 26 जनवरी तक आवेदन मांगे गए थे, फिर यह तारीख बढ़कर 15 फरवरी हो गई थी।

कृपा बाबू जी की राजनैतिक महत्वाकाक्षाएं

बाद में कृपा बाबू 19 फरवरी सपा पार्टी में शामिल हुए हैं,तो टिकट की बात में कोई दम लगता नहीं हालांकि, राजनीति में सबकुछ संभव है। लेकिन जिस क्षेत्र से वो चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं, वहां प्राप्त जानकारी के मुताबिक वहां से 10 से ज्यादा लोगों ने पहले ही आवेदन कर रखा है। वहीं सपा की एक बड़ी नेता का उस क्षेत्र की टिकट से व्यक्तिगत लगाव जग ज़ाहिर है और वर्तमान में उनके कद और सपा मुखिया के साथ ट्यूनिंग को देख कर मामला भारी लगता भी है।

अब हम अगर बात करें संगठन की तो जनपद में लोधी बिरादरी के बाद कुर्मी मतदाता भी निर्णायक स्थिति में रहते हैं। ऐसे में कृपा बाबू को सभी 6 सीटों को जिताने के लिए अगर अपने ही समाज को जोड़ने का काम दे दिया जाए तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

कृपा बाबू समाजवादी पार्टी के लिए कम से कम इस मामले में लाभदायक साबित होंगे लेकिन सियासत में चुनाव लड़ने का इच्छुक व्यक्ति नामांकन दाखिल होने के आखिरी मिनटों तक भी टिकट की आस में रहता है और कृपा बाबू की चुनावी बेताबी लोगों ने देखी है।

सवर्ण विरोधी होने का तमगा

बीएसपी की सरकार में जब कृपा बाबू विधायक हुआ करते थे और उस वक्त के एक बड़े नेता से उनकी अदावत जगजाहिर थी तब कृपा बाबू से लाभ लेकर ठेके पट्टे लेने वाले लोगों ने तन्हाई के दिनों में बाबू जी से किनारा कर लिया था। वो एक बार फिर कृपा बाबू के स्वागत में पलक पांवड़े बिछा रहे हैं और कृपा बाबू जब-जब विधायक रहे हैं, उनके ऊपर सवर्ण विरोधी होने का आरोप लगा है और आज तक वह दाग उनकी छवि से हटा नहीं है।

कृपा बाबू की छवि बाहुबली की नहीं है, अगड़ी जातियों का विरोधी होने की छवि ने उनकी राजनैतिक सियासत को खूब डैमेज किया है। खैर, अब कृपा बाबू जब सपा में आ गए हैं तो लोगों के मन में सवाल यह है भी कि क्या बाबू जी अनवार अहमद के जाने से सपा में पैदा हुए शून्य को क्या कृपा बाबू भर पाएंगे? क्या अखिलेश यादव उसी मकसद से कृपा बाबू को लाए हैं, जिसे लेकर चौराहों पर चर्चाएं हो रही हैं? सवाल कई हैं और उनके ज़वाब हमें धीरे-धीरे मिलते रहेंगे।

फिलहाल कृपा बाबू को बधाई और कभी उन्नाव में खाकी पहनकर निकलने वाले पूर्व आईपीएस और अब मोहान से विधायक बनने को बेताब हरीश कुमार जी को भी सपा में शामिल होने के लिए बधाई, सियासत में परिवर्तन का समय चल रहा है और कई लोगों की शेरवानियों का रंग बदलना अभी बाकी है। कई के सपनों को पंख मिलेंगे और कईयों के सपने छन से टूटेंगे।

 

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