25 वर्षीय नवरीत सिंह की संदिग्ध मृत्यु 26 जनवरी किसान परेड मार्च के दौरान ITO पर हुई थी। पुलिस और मीडिया का कहना है कि नवरीत की मौत ट्रैक्टर से स्टंट करते वक्त हुई है जिसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ। वहीं आंदोलनकारी किसानों का कहना है कि पुलिस की गोली लगने के बाद ट्रैक्टर से गिरकर नवरीत की मौत हुई है।
बतौर किसान नवरीत ने शुरू किया था अपना कैरियर
अभी तक इस तथ्य से पर्दा नहीं उठ सका है, परंतु इस बीच जब नवरीत के विषय में जानने का प्रयास किया जाता है तो कई चीज़ें खुलकर सामने आती है। वह यही है कि जिस किसानी को लोग अनपढ़ों का पेशा समझते हैं, उसी पेशे को पढ़े-लिखे नौजवान नवरीत सिंह ने अपनाया था। नवरीत के पास 15 एकड़ खेत थे।
उत्तरप्रदेश के जिला रामपुर में जन्मे नवरीत सिंह ने दो साल पहले ऑस्ट्रेलिया से बीकॉम की डिग्री हासिल की थी। उनकी शादी दो साल पहले मनस्वीट कौर से हुई थी। उनके कोई बच्चे नहीं हैं और उनकी पत्नी फिलहाल आस्ट्रेलिया में माइक्रोबायॉलजी की पढ़ाई कर रही हैं। आस्ट्रेलिया से भारत आने के बाद से नवरीत सिंह दो साल से अपने गृह क्षेत्र रामपुर में रह कर खेती कर रहे थे। रामपुर में वह अपने माता-पिता के साथ रहते थे, जबकि उनकी छोटी बहन कनाडा में पढ़ाई कर रही हैं।
सोशल एक्टिविस्ट नहीं बल्कि प्योर किसान था मेरा पोता
नवरीत के दादा बताते हैं कि “वह सोशल एक्टिविस्ट नहीं था। वह प्योर किसान था, इसी वजह से वह प्रोटेस्ट में पहुंचा। वह किसानों को लेकर काफी फिक्रमंद था इसलिए उसमें किसान आंदोलन को लेकर क्रेज़ था। किसानों के भविष्य को लेकर फिक्रमंद मेरे पोते को उम्मीद थी कि सरकार ये तीनों कानून वापस लेगी।”
नवरीत सिंह के दादा का नाम हरदीप सिंह डिबडिबा है जो कि एक लेखक भी हैं। हरदीप सिंह की अबतक 5 किताबें प्राकाशित हो चुकी हैं। डिबडिबा प्रोटेस्ट के हरदीप सिंह अपने पोते नवरीत की मौत से टूट गए हैं। वो इस किसान आंदोलन पर एक किताब भी लिख रहे हैं।
वह अब हर तरफ अपने पोते के न्याय के लिए अपनी झोली फैलाए विनती कर रहे हैं। दुखी मन से अपने पोते के बारे में उन्होंने कहा कि मैं क्या कहूं, बस एक शेर कहूंगा,
“वही कातिल, वही हाकिम, वही मुनसिफ ठहरे,
मेरे अकबरां, करें खून का दावा किस पर.”
प्रशासन के ट्रैप में फंसने से हुई मेरे पोते की मौत
“दरअसल सरकार ने रैली के लिए जो रूट दिया था उस रूट से ही रैली निकलती तो मेरा पोता आज ज़िंदा होता। मगर उस रूट से जा रहे युवा आंदोलनकारियों के रूट को प्रशासन डाइवर्ट कर देता था, जिससे कि वो डिस्टर्ब हो रहे थे। साफ शब्दों में कहूं तो युवा किसान सब प्रशासन के जाल में फंसे जिसमें मेरे पोते की मौत हो गई।
मैं आपको एक वीडियो देता हूं जिसमें देखिए किस तरह से हताश लोग चिल्ला रहे हैं कि पुलिस ने गोली मार दी, गोली मार दी। यही नहीं दिल्ली में हर जगह सीसीटीवी कैमरे लगे हैं तो सरकार उसे खंगाले। हम भी चाहते हैं सत्य सामने आए। आखिर मेरे पुत्र को गोली क्यों मारी गई? वह तो बस लंगर सेवा के लिए गया था, हिंसा करने नहीं गया था। किसान प्रोटेस्ट तीन महीने पंजाब में चला और दो महीने से दिल्ली में चल रहा है।
ऐसे में सवाल उठता है कि कभी एक शिकायत नहीं आई प्रोटेस्ट करने वालों की तो फिर कैसे मान लूं कि युवा गलत कर रहे थे? सवाल यह है कि नवरीत की मौत पर पुलिस ने कोई जांच क्यों नहीं की? उसका पोस्टमॉर्टम दिल्ली में क्यों नहीं कराया?”
तीन घंटे सड़क पर ही पड़ी रही लाश
यही हकीकत है जो हमारे हालात बयां करता है। उन्होंने आगे कहा कि दरअसल ITO क्षेत्र में हादसे के बाद नवरीत की लाश कई घंटे पड़ी रही थी। पुलिस की तरफ से लाश को लेकर कोई कदम नहीं उठाया गया। इस बात की खबर गाज़ीपुर बॉर्डर के लोगों तक पहुंची तो कुछ लोग ITO पहुंचे और नवरीत की लाश लेकर गाज़ीपुर बॉर्डर वापस आए। मैं राजस्थान बॉर्डर से अपने भतीजे और कुछ रिश्तेदार के साथ गाज़ीपुर बॉर्डर पर असहाय हालात में पहुंचा।
वह आगे कहते हैं कि “वहां मौजूद पुलिस ने कहा कि लाश का पोस्टमार्टम रामपुर में कराइए। मैंने पुलिस को जवाब दिया कि रामपुर में पोस्टरमार्टम क्यों कराएं? मेरे पोते की लाश तीन घंटे से सड़क पर पड़ी थी। उसे कोई फर्स्ट एड क्यों नहीं दी गई? इसे गोली लगी है लेकिन अगर मैं आपकी ही मान लूं कि ट्रैक्टर से गिर गया तो उसे अस्पताल क्यों नहीं ले गए?
अफसोस पुलिस पर कोई फर्क नहीं पड़ा। फिर भी हमने दिल्ली में ही पोस्टमॉर्टम कराने के लिए विनती की, लेकिन वहां मौजूद पुलिस इसके लिए तैयार नहीं हुई। तब रामपुर के जिलाधिकारी से बात हुई तो उन्होंने हमसे कहा कि लाश रामपुर ले आइए यहीं पोस्टमॉर्टम हो जाएगा। मेरे पोते की बॉडी को बिना किसी पेपर वर्क के गाज़ीपुर बॉर्डर पर स्थित पुलिस ने हमारे हवाले कर दिया।”
न एक्सरे रिपोर्ट मिला और न ही पोस्टमार्टम का वीडियो
डिबडिबा आगे कहते हैं कि “रामपुर के जिलाधिकारी के निर्देश पर हम रामपुर जिला अस्पताल पहुंचे। वहां नवरीत का एक्सरे हुआ। उसके बाद पोस्टमॉर्टम हुआ। पोस्टमॉर्टम के दौरान वीडियो हुआ लेकिन आज जब हम एक्सरे की कॉपी और पोस्टमॉर्टम का वीडियो लेने रामपुर जिला के चीफ मेडिकल ऑफिसर के पास गए तो उन्होंने एक्सरे की कॉपी देने से इंकार कर दिया।
जबकि उस दिन डॉक्टर ने मुझसे कहा कि मुझे लगता है कि इसको गनशॉट से बुलेट लगी है लेकिन हम यह लिख नहीं सकते कि गोली से मौत हुई। फिर भी मैं डॉक्टर को धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में टेक्निकली लिखा। जो साफ दर्शाता है कि नवरीत के होठों के ठीक नीचे दाईं तरफ गहरा सुराख है और बाएं कान के पास भी सुराख है जिसे मैंने छुआ तो उसमें से खून बह रहा था।”
फोन पर उसने कहा था कल आऊंगा, किसे पता था वो कल नहीं आएगा?
नवरीत सिंह के पिता विक्रम सिंह बताते हैं कि “23 जनवरी को नवरीत ने दिल्ली जाने की बात अपनी माता जी को बताई। इसपर मेरी पत्नी ने उसे मना किया कि अब मत जाओ दो बार तो जा चुके हो। इस पर नवरीत ने कहा कि मैं आ जाऊंगा। इस प्रोटेस्ट में शामिल होना ज़रूरी है। वहां पहुंचने के बाद वह अपनी माता जी से रोज़ बात करता था लेकिन मुझ से बात नहीं हुई लेकिन उसने अपनी माता से अंतिम बार बात करते हुए कहा था मम्मी फिक्र मत करो कल आ जाऊंगा। अफसोस, किसे पता था कि वह कल नहीं आएगा।”
किसानों को लेकर फिक्रमंद था नवरीत
ऐसे हादसे का कोई अनुमान था? इस सवाल के जवाब में नवरीत के पिता ने बताया कि “बिल्कुल नहीं। इसकी वजह है एक तो यह कि वह बहुत मिलनसार था, जो उससे एक बार मिल ले वह भूल नहीं सकता था। दूसरा यह कि किसान प्रोटेस्ट बहुत ही शांति सुकून से चल रहा था। इसलिए ऐसी दर्दनाक घटना की उम्मीद नहीं थी। वह वहां जा कर बस लंगर सेवा करता था और आ जाता था।” नवरीत के पिता किसान कानून को लेकर बताते हैं कि “नवरीत इस कानून को लेकर बहुत फिक्रमंद था और मुझ से हमेशा कहा करता था कि यह कानून जबरन थोपे जा रहे हैं. सरकार को यह कानून वापस लेना चाहिए.”